अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 7/ मन्त्र 6
ऋषिः - दुःस्वप्ननासन
देवता - साम्नी बृहती
छन्दः - यम
सूक्तम् - दुःख मोचन सूक्त
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निर्द्वि॒षन्तं॑दि॒वो निः पृ॑थि॒व्या निर॒न्तरि॑क्षाद्भजाम ॥
स्वर सहित पद पाठनि: । द्वि॒षन्त॑म् । दि॒व: । नि: । पृ॒थि॒व्या: । नि: । अ॒न्तरि॑क्षात् । भ॒जा॒म॒ ॥७.६॥
स्वर रहित मन्त्र
निर्द्विषन्तंदिवो निः पृथिव्या निरन्तरिक्षाद्भजाम ॥
स्वर रहित पद पाठनि: । द्विषन्तम् । दिव: । नि: । पृथिव्या: । नि: । अन्तरिक्षात् । भजाम ॥७.६॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
शत्रु के नाश करने का उपदेश।
पदार्थ
(द्विषन्तम्) वैरकरनेवाले [कुमार्गी] को (दिवः) आकाश से (निः) पृथक्, (पृथिव्याः) पृथिवी से (निः) पृथक् और (अन्तरिक्षात्) मध्यलोक से (निः भजाम) हम भागरहित करें ॥६॥
भावार्थ
शूर धर्मात्मा लोगदुराचारियों को आकाशमार्ग, पृथिवीमार्ग और अन्य मार्ग से सर्वथा निकाल देवें॥६॥
टिप्पणी
६−(निः) पृथक् (द्विषन्तम्) वैरयन्तम् (दिवः) आकाशात् (निः) (पृथिव्याः)भूलोकात् (अन्तरिक्षात्) मध्यलोकात् (निर्भजाम) भागरहितं कुर्याम ॥
विषय
समाज-विद्वेष-आत्मविद्वेष
पदार्थ
१. हे प्रभो! (यः) = जो (अस्मान् द्वेष्टि) = हम सबके प्रति द्वेष करता है, (तम्) = उसको (आत्मा द्वेष्टु) = आत्मा प्रीति न करनेवाला हो। (यं वयं द्विष्मः) = जिसको हम सब प्रीति नहीं कर पाते (सः आत्मानं द्वेष्टु) = वह अपने से प्रीति करनेवाला न हो। वस्तुत: जो एक व्यक्ति सारे समाज के प्रति प्रीतिवाला न होकर स्वार्थसिद्धि को ही महत्त्व देता है, वह सारे समाज का अप्रिय होकर अन्तत: अपनी ही दुर्गति कर बैठता है। यह समाजविद्वेष आत्म-अवनति का मार्ग है, अत: यह समाज के प्रति द्वेष करनेवाला व्यक्ति आत्मा का ही द्वेष कर रहा होता है। २. (द्विषन्तम्) = इस द्वेष करनेवाले को (दिवः निर्भजाम) = द्युलोक से दूर भगा दें[भज to put to flight]| केवल धुलोक से ही नहीं, (पृथिव्या निर्) [भजाम] = पृथिवीलोक से भी भगा दें तथा (अन्तरिक्षात् नि:) = अन्तरिक्ष से भी दूर भगा दें। इस द्वेष करनेवाले का इस त्रिलोकी में स्थान न हो। त्रिलोकी में कोई भी इसका न हो। त्रिलोकी से दूर भगाने का यह भी भाव है कि इसका मस्तिष्क. [धुलोक], हृदय [अन्तरिक्ष] व शरीर [पृथिवी] सभी विकृत हो जाएँ। इसके मस्तिष्क हृदय व शरीर की शक्ति का भंग हो जाए। द्वेष का यह परिणाम स्वाभाविक है।
भावार्थ
समाजविद्वेष्य पुरुष वस्तुत: आत्मा की अवनति करता हुआ अपने से ही द्वेष करता है। इसके लिए त्रिलोकी में स्थान नहीं रहता। यह 'शरीर, मन व मस्तिष्क' सभी को विकृत कर लेता है।
भाषार्थ
अथवा (द्विषन्तम्) द्वेष करने वाले का (दिवः) द्यूलोक के ताप-प्रकाश से (निर् भजाम) हम प्रजाजन भागरहित कर देते है, (पृथिव्याः) राष्ट्र की भूमि में स्वच्छन्द विचरने से (निः -) हम भाग रहित कर देते हैं, (अन्तरिक्षात्) अन्तरिक्ष की खुली और स्वच्छ वायु के सेवन से (निः -) हम भाग रहित कर देते हैं।
टिप्पणी
[अपराधी को दण्ड देने की यह भी विधि है कि उसे बन्दीकृत कर के उपर्युक्त अधिकारों से वञ्चित कर दिया जाय। मन्त्र में "भजाम" पद बहुवचन में है। इस द्वारा प्रजाजनों के बहुमत को सूचित किया है-अपराधी को अपराधानुसार दण्ड की व्यवस्था में। राजसभाओं की नियमों के निर्माण में प्रजाजनों के बहुमत की स्वीकृति, साक्षात् या प्रतिनिधियों द्वारा, होनी आवश्यक है]
विषय
शत्रुदमन।
भावार्थ
(द्विषन्तम्) द्वेष करने वाले को (दिवः पृथिव्याः अन्तरिक्षात् निः, निः, निः भजाम) द्यौ लोक, पृथिवी लोक और अन्तरिक्ष तीनों लोकों से निकाल बाहर करें।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
यमऋषिः। दुःस्वप्ननाशनो देवता। १ पंक्तिः। २ साम्न्यनुष्टुप्, ३ आसुरी, उष्णिक्, ४ प्राजापत्या गायत्री, ५ आर्च्युष्णिक्, ६, ९, १२ साम्नीबृहत्यः, याजुपी गायत्री, ८ प्राजापत्या बृहती, १० साम्नी गायत्री, १२ भुरिक् प्राजापत्यानुष्टुप्, १३ आसुरी त्रिष्टुप्। त्रयोदशर्चं सप्तमं पर्यायसूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Atma-Aditya Devata
Meaning
We dispense with the hater’s share from the earth, from the sky and from the heavens.
Translation
Out of heave, out of earth and out of midspace we drive away the hater.
Translation
We drive away him who hates from the earth, from firmament and from heavenly region.
Translation
We deprive the man who hates us from enjoying the heaven and earth and firmament.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
६−(निः) पृथक् (द्विषन्तम्) वैरयन्तम् (दिवः) आकाशात् (निः) (पृथिव्याः)भूलोकात् (अन्तरिक्षात्) मध्यलोकात् (निर्भजाम) भागरहितं कुर्याम ॥
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