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अथर्ववेद के काण्ड - 16 के सूक्त 7 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 7/ मन्त्र 2
    ऋषिः - दुःस्वप्ननासन देवता - साम्नी अनुष्टुप् छन्दः - यम सूक्तम् - दुःख मोचन सूक्त
    46

    दे॒वाना॑मेनंघो॒रैः क्रू॒रैः प्रै॒षैर॑भि॒प्रेष्या॑मि ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    दे॒वाना॑म् । ए॒न॒म् । घो॒रै: । क्रू॒रै: । प्र॒ऽए॒षै: । अ॒भ‍ि॒ऽप्रेष्या॑मि ॥७.२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    देवानामेनंघोरैः क्रूरैः प्रैषैरभिप्रेष्यामि ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    देवानाम् । एनम् । घोरै: । क्रूरै: । प्रऽएषै: । अभ‍िऽप्रेष्यामि ॥७.२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 16; सूक्त » 7; मन्त्र » 2
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    शत्रु के नाश करने का उपदेश।

    पदार्थ

    (एनम्) इस [कुमार्गी]को (देवानाम्) [परमात्मा के] उत्तम नियमों के (घोरैः) घोर [भयानक] और (क्रूरैः)क्रूर [निर्दय] (प्रैषैः) शासनों से (अभिप्रेष्यामि) मैं सामने से प्राप्त होताहूँ ॥२॥

    भावार्थ

    दुराचारी लोग परमात्माके नियमों से घोर क्रूर क्लेशों में पड़ते हैं ॥२॥

    टिप्पणी

    २−(देवानाम्) ईश्वरस्यदिव्यनियमानाम् (एनम्) कुमार्गिणम् (घोरैः) भयानकैः (क्रूरैः) दयारहितैः (प्रैषैः) प्र+इष वाञ्छायां गतौ च-घञ्। शासनैः (अभिप्रेष्यामि) आभिमुख्येनप्राप्नोमि ॥

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    विषय

    द्वेष से विनाश

    पदार्थ

    १. पञ्चम मन्त्र में कहेंगे कि 'योऽस्मान् दृष्टि'-जो हमारे साथ द्वेष करता है, (तेन) = उस हेतु से अथवा उस द्वेष से (एनं विध्यामि) = इस द्वेष करनेवाले को ही विद्ध करता हूँ। द्वेष करनेवाला स्वयं ही उस द्वेष का शिकार हो जाता है। (अभूत्या एनं विव्यामि) = शक्ति के अभाव से, शक्ति के विनाश से, इस द्वेष करनेवाले को विद्ध करता हूँ।(निर्भूत्या एनं विध्यामि) = ऐश्वर्य विनाश से इसको विद्ध करता हूँ। (पराभूत्या एनं विध्यामि) = पराजय से इसे विद्ध करता हूँ। (ग्राह्याः एनं विध्यामि) = जकड़ लेनेवाले रोग से इसे बिद्ध करता हूँ। (तमसा एनं विध्यामि) = अन्धकार से इसे विद्ध करता हूँ। यह द्वेष करनेवाला 'अभूति' इत्यादि से पीड़ित होता है। २. (एनं) = इस द्वेष करनेवाले को (देवानाम्) = विषयों की प्रकाशक इन्द्रियों की (घोंरैः) भयंकर (क्रूरैः) = [undesirable] अवाञ्छनीय (प्रैषै:) = [erushing] विकृतियों से (अभिप्रेष्यामि) = अभिक्षित [Hurt] करता हूँ। द्वेष करनेवाले की इन्द्रियों में अवाञ्छनीय विकार उत्पन्न हो जाते हैं। ३. (वैश्वानरस्य) = उन सब मनुष्यों का हित करनेवाले प्रभु की (दंष्ट्रयो:) = दाढ़ों में न्याय के जबड़ों में (एनं अपिदधामि) = इस द्वेष करनेवाले को पिहित [ऊद] कर देता हूँ। ४. (सा) = वह उल्लिखित मन्त्रों में वर्णित 'अभूति निर्भूति०' इत्यादि बातें (एवा) = इसप्रकार शक्ति व ऐश्वर्य के विनाश के द्वारा या (अनेव) = किसी अन्य प्रकार से (अवगरत्) = इस द्वेष करनेवाले को निगल जाए।

    भावार्थ

    द्वेष करनेवाला व्यक्ति 'अभूति' आदि से विद्ध होकर इन्द्रियों की विकृति का शिकार होता है। यह प्रभु से भी दण्डनीय होता है। यह द्वेष की भावना किसी-न-किसी प्रकार इसे ही निगल जाती है।

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    भाषार्थ

    (एनम्) इस द्वेष्टा और शप्ता आदि को, (देवानाम्) देवों की (घोरैः१) घातक तथा (क्रूरैः) छेदने वाली (प्रैषैः) आज्ञाओं द्वारा (अभि प्रेष्यामि) मैं सन्मार्ग के लिये प्रेरित करता हूं।

    टिप्पणी

    [घौरैः = हन्तेरच् घुर् च (उणा० ५।६४)। क्रूरैः = कृत् छेदने "कृतेश्छः क्रूच" (उणा० २।२१)। देवानाम् = दिव्य राज्याधिकारियों की न कि अदिव्यों की आज्ञाएं। प्रैषै = प्रेष An order, command (आप्टे)। अभिप्रेष्यामि = अभि + प्र + इष् (गतौ) प्रेरित करता हूं। अथवा देवों की आज्ञाओं के साथ, इस द्वेष्टा, शप्ता के सुधार के लिये मैं राजा, इन के प्रति राजपुरुषों को भेजता२ हूं] [१. मनुस्मृति ७।२४ में "यत्र श्यामो लोयिताक्षो दण्डश्चरति पापहा' द्वारा राजदण्ड को "कृष्णवर्ण, रक्तनेत्र" कह कर इसे भयङ्कर सूचित किया है। मन्त्र में राजदण्ड के प्रैषों को इसी भावना में घौरैः और क्रूरैः शब्दों द्वारा निर्दिष्ट किया है। २. इस अर्थ में "एनम्, अभिः प्रेष्यामि" – ऐसा अन्वय जानना चाहिये। एनमभि = इस द्वेष्टा तथा शप्ता के प्रति या ओर, राजपुरुषों (Police) को भेजता हूं।]

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    विषय

    शत्रुदमन।

    भावार्थ

    (एनं) इस शत्रु को (देवानाम्) देवों के, अग्नि सूर्य, वायु आदि दिव्य पदार्थों के या विद्वानों के (घोरैः) अति भयानक (क्रूरैः) क्रूर, कष्टदायी (प्रेषैः) अस्त्रों द्वारा (अभिप्रेष्यामि) उखाड़ फेंकूं।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    यमऋषिः। दुःस्वप्ननाशनो देवता। १ पंक्तिः। २ साम्न्यनुष्टुप्, ३ आसुरी, उष्णिक्, ४ प्राजापत्या गायत्री, ५ आर्च्युष्णिक्, ६, ९, १२ साम्नीबृहत्यः, याजुपी गायत्री, ८ प्राजापत्या बृहती, १० साम्नी गायत्री, १२ भुरिक् प्राजापत्यानुष्टुप्, १३ आसुरी त्रिष्टुप्। त्रयोदशर्चं सप्तमं पर्यायसूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Atma-Aditya Devata

    Meaning

    I knock him down with terrible visitations of nature’s inevitable furies.

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    Translation

    I summon him through the terrible and cruel messengers of the bounties of nature.

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    Translation

    I make this pained with dreadful, cruel troubles of the natural forces.

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    Translation

    I torment him with the awful, cruel instruments of the learned.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    २−(देवानाम्) ईश्वरस्यदिव्यनियमानाम् (एनम्) कुमार्गिणम् (घोरैः) भयानकैः (क्रूरैः) दयारहितैः (प्रैषैः) प्र+इष वाञ्छायां गतौ च-घञ्। शासनैः (अभिप्रेष्यामि) आभिमुख्येनप्राप्नोमि ॥

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