अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 7/ मन्त्र 4
ऋषिः - दुःस्वप्ननासन
देवता - प्राजापत्या गायत्री
छन्दः - यम
सूक्तम् - दुःख मोचन सूक्त
42
ए॒वाने॒वाव॒ साग॑रत् ॥
स्वर सहित पद पाठए॒व । अने॑व । अव॑ । सा । ग॒र॒त् ॥७.४॥
स्वर रहित मन्त्र
एवानेवाव सागरत् ॥
स्वर रहित पद पाठएव । अनेव । अव । सा । गरत् ॥७.४॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
शत्रु के नाश करने का उपदेश।
पदार्थ
(एव) इस प्रकार से [अथवा] (अनेव) अन्य प्रकार से (सा) वह [न्यायव्यवस्था] [कुमार्गी को] (अव गरत्)निगल जावे ॥४॥
भावार्थ
राजा अपनी अनेक न्यायव्यवस्थाओं से दुष्टों का नाश करता रहे ॥४॥
टिप्पणी
४−(एव) एवम्। अनेन प्रकारेण (अनेव)अनेवम्। अन्यप्रकारेण (सा) न्यायव्यवस्था (अव गरत्) विनाशयेत् ॥
विषय
द्वेष से विनाश
पदार्थ
१. पञ्चम मन्त्र में कहेंगे कि 'योऽस्मान् दृष्टि'-जो हमारे साथ द्वेष करता है, (तेन) = उस हेतु से अथवा उस द्वेष से (एनं विध्यामि) = इस द्वेष करनेवाले को ही विद्ध करता हूँ। द्वेष करनेवाला स्वयं ही उस द्वेष का शिकार हो जाता है। (अभूत्या एनं विव्यामि) = शक्ति के अभाव से, शक्ति के विनाश से, इस द्वेष करनेवाले को विद्ध करता हूँ।(निर्भूत्या एनं विध्यामि) = ऐश्वर्य विनाश से इसको विद्ध करता हूँ। (पराभूत्या एनं विध्यामि) = पराजय से इसे विद्ध करता हूँ। (ग्राह्याः एनं विध्यामि) = जकड़ लेनेवाले रोग से इसे बिद्ध करता हूँ। (तमसा एनं विध्यामि) = अन्धकार से इसे विद्ध करता हूँ। यह द्वेष करनेवाला 'अभूति' इत्यादि से पीड़ित होता है। २. (एनं) = इस द्वेष करनेवाले को (देवानाम्) = विषयों की प्रकाशक इन्द्रियों की (घोंरैः) भयंकर (क्रूरैः) = [undesirable] अवाञ्छनीय (प्रैषै:) = [erushing] विकृतियों से (अभिप्रेष्यामि) = अभिक्षित [Hurt] करता हूँ। द्वेष करनेवाले की इन्द्रियों में अवाञ्छनीय विकार उत्पन्न हो जाते हैं। ३. (वैश्वानरस्य) = उन सब मनुष्यों का हित करनेवाले प्रभु की (दंष्ट्रयो:) = दाढ़ों में न्याय के जबड़ों में (एनं अपिदधामि) = इस द्वेष करनेवाले को पिहित [ऊद] कर देता हूँ। ४. (सा) = वह उल्लिखित मन्त्रों में वर्णित 'अभूति निर्भूति०' इत्यादि बातें (एवा) = इसप्रकार शक्ति व ऐश्वर्य के विनाश के द्वारा या (अनेव) = किसी अन्य प्रकार से (अवगरत्) = इस द्वेष करनेवाले को निगल जाए।
भावार्थ
द्वेष करनेवाला व्यक्ति 'अभूति' आदि से विद्ध होकर इन्द्रियों की विकृति का शिकार होता है। यह प्रभु से भी दण्डनीय होता है। यह द्वेष की भावना किसी-न-किसी प्रकार इसे ही निगल जाती है।
भाषार्थ
(एव = एवम्) इस उपर्युक्त कठोर विधि द्वारा, (अनेव = अन् + एव = अन् + एवम्) या इस से भिन्न विधि द्वारा, (सा) वह राजदंष्ट्रा१, (अवगरत्) अपराधी को मानो पीस कर निगल जाय ।
टिप्पणी
[१. दंष्ट्रा में एक वचन द्वारा केवल राजदण्ड का वर्णन हुआ है।]
विषय
शत्रुदमन।
भावार्थ
(सा) वह दाढ़ (एव अनेव) इस प्रकार से या अन्य प्रकार से भी शत्रु को (अव गरत्) निगल जाय।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
यमऋषिः। दुःस्वप्ननाशनो देवता। १ पंक्तिः। २ साम्न्यनुष्टुप्, ३ आसुरी, उष्णिक्, ४ प्राजापत्या गायत्री, ५ आर्च्युष्णिक्, ६, ९, १२ साम्नीबृहत्यः, याजुपी गायत्री, ८ प्राजापत्या बृहती, १० साम्नी गायत्री, १२ भुरिक् प्राजापत्यानुष्टुप्, १३ आसुरी त्रिष्टुप्। त्रयोदशर्चं सप्तमं पर्यायसूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Atma-Aditya Devata
Meaning
Thus or otherwise let that dispensation of justice deal with the evil dreamer.
Translation
This way or that way, may she (the calamity) swallow him down.
Translation
Let that misery, thus or otherwise swallow this up.
Translation
Thus or otherwise let Law give him condign punishment.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
४−(एव) एवम्। अनेन प्रकारेण (अनेव)अनेवम्। अन्यप्रकारेण (सा) न्यायव्यवस्था (अव गरत्) विनाशयेत् ॥
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