अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 7/ मन्त्र 9
ऋषिः - दुःस्वप्ननासन
देवता - साम्नी बृहती
छन्दः - यम
सूक्तम् - दुःख मोचन सूक्त
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यददोअदोअ॒भ्यग॑च्छ॒न् यद्दोषा यत्पूर्वां॒ रात्रि॑म् ॥
स्वर सहित पद पाठयत् । अ॒द:ऽव॑द: । अ॒भि॒ऽअग॑च्छन् । यत् । दो॒षा । यत् । पूर्वा॑म् । रात्रि॑म् ॥७.९॥
स्वर रहित मन्त्र
यददोअदोअभ्यगच्छन् यद्दोषा यत्पूर्वां रात्रिम् ॥
स्वर रहित पद पाठयत् । अद:ऽवद: । अभिऽअगच्छन् । यत् । दोषा । यत् । पूर्वाम् । रात्रिम् ॥७.९॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
शत्रु के नाश करने का उपदेश।
पदार्थ
(यत्) जैसे (अदो अदः)उस-उस समय पर (यत्) जो [कष्ट] (दोषा) रात्रि में, (यत्) जो [कष्ट] (पूर्वांरात्रिम्) रात्रि के पूर्व भाग में (अभ्यगच्छन्) उन [पूर्वज लोगों] ने सामने सेपाया है ॥९॥
भावार्थ
जैसे पूर्वज विद्वान्लोग बड़े-बड़े कष्ट सहकर दुराचारी असुरों को हराते आये हैं, वैसे ही मनुष्यक्लेशें सहकर दुष्टों को हराकर शिष्टों का पालन करते रहें ॥९, १०, ११॥
टिप्पणी
९−(यत्) यथा (अदोअदः)तस्मिंस्तस्मिन् समये (अभ्यगच्छन्) ते पूर्वजा आभिमुख्येन प्राप्नुवन् (यत्)कष्टम् (दोषा) रात्रौ (यत्) (पूर्वाम्) पूर्वभागभवायाम् (रात्रिम्) ॥
विषय
दोष-विनाश
पदार्थ
१. प्रभु-प्रेरणा को सुनकर जीव उत्तर देता है कि (यत्) = जो (अदः अदः) = अमुक-अमुक दोष (अभ्यगच्छन्) = मेरे प्रति आता हो, (यत्) = जो दोष (दोषा) = रात्रि के समय आता है, (यत्) = जो (पूर्व रात्रिम्) = रात्रि के पूर्वभाग में मुझे प्राप्त होता है। मेरे न चाहते हुए भी रात्रि के समय जिस दोष से मैं आक्रान्त हो जाता हूँ। २. अथवा (यत्) = जिस दोष को (जाग्रत्) = जागते हुए, (यत्) = जिस दोष को मैं (सुप्तः) = सोये हुए, (यत्) = जिस दोष को (दिवः) = दिन में और (यत्) = जिस दोष को (नक्तम्) = रात्रि में, ३. (यत्) = जिस दोष को (अहरहः) = प्रतिदिन (अभिगच्छामि) = मैं प्राप्त होता हूँ, (एनाम्) = इस दोष को (तस्मात्) = संयम के द्वारा [सुयामन्], आत्मनिरीक्षण के द्वारा [चाक्षुष] तथा कुलीनता के विचार के द्वारा [आमुष्यामण] (अवदये) = सुदूर विनष्ट करता हूँ। [दय हिंसायाम्]।
भावार्थ
जो दोष मुझे रात्रि के समय आक्रान्त कर लेता है, या जिस दोष के प्रति मैं सोते-जागते चला जाता हूँ, उस दोष को 'संयम, आत्मनिरीक्षण व कुलीनता' के विचार से दूर करता हूँ-विनष्ट करता हूँ।
भाषार्थ
(अदः अदः) उस-उस काल में (यद्) जिस दुष्वप्न्य को (अभ्यगच्छन्) पूर्वज प्राप्त हुएं हैं, और (यद्) जिस दुष्वप्न्य को (दोषा) प्रारम्भिक रात्रि में, (यत्) जिसे (पूर्वास, रात्रिम्) प्रातःकाल से पूर्वकाल की रात्रि में ॥९॥
विषय
शत्रुदमन।
भावार्थ
(यत्) जो (अदः अदः) अमुक अमुक अपराध (अभि-अगच्छन्) मैं इस अपराधी का देखता हूं। (यत् दोषा यत् पूर्वां रात्रिम्) जो इस रात में और जो गयी पूर्व की रात्रि में और (यत् जाग्रत्) जो जागते हुए (यत् सुप्तः) जो सोते हुए (यत् दिवा, यत् नक्तम्) जो दिन को और जो रात्रि को और (यत्) जो (अहः-अहः) प्रतिदिन (अभिगच्छामि) इसका अपराध पाता हूं (तस्मात्) इस कारण से (एनम्) इस अपराधी को (अवदये) दण्डित करता हूं।
टिप्पणी
‘अभ्यगच्छम्’ इति ह्विटनिकामितः।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
यमऋषिः। दुःस्वप्ननाशनो देवता। १ पंक्तिः। २ साम्न्यनुष्टुप्, ३ आसुरी, उष्णिक्, ४ प्राजापत्या गायत्री, ५ आर्च्युष्णिक्, ६, ९, १२ साम्नीबृहत्यः, याजुपी गायत्री, ८ प्राजापत्या बृहती, १० साम्नी गायत्री, १२ भुरिक् प्राजापत्यानुष्टुप्, १३ आसुरी त्रिष्टुप्। त्रयोदशर्चं सप्तमं पर्यायसूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Atma-Aditya Devata
Meaning
Whatever evil dreams have come then and then again, that and that again, what at night, whatever the night before,
Translation
What (faults), this and that, I have found, what at dusk, what in the early night;
Translation
Whatever I find or meet with in night or in early night,
Translation
Whatever fault I find with the culprit, whether at dusk or during night.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
९−(यत्) यथा (अदोअदः)तस्मिंस्तस्मिन् समये (अभ्यगच्छन्) ते पूर्वजा आभिमुख्येन प्राप्नुवन् (यत्)कष्टम् (दोषा) रात्रौ (यत्) (पूर्वाम्) पूर्वभागभवायाम् (रात्रिम्) ॥
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