अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 45/ मन्त्र 4
चतु॑र्वीरं बध्यत॒ आञ्ज॑नं ते॒ सर्वा॒ दिशो॒ अभ॑यास्ते भवन्तु। ध्रु॒वस्ति॑ष्ठासि सवि॒तेव॒ चार्य॑ इ॒मा विशो॑ अ॒भि ह॑रन्तु ते ब॒लिम् ॥
स्वर सहित पद पाठचतुः॑ऽवीरम्। ब॒ध्य॒ते॒। आ॒ऽअञ्ज॑नम्। ते॒। सर्वाः॑। दिशः॑। अभ॑याः। ते॒। भ॒व॒न्तु॒। ध्रु॒वः। ति॒ष्ठा॒सि॒। स॒वि॒ताऽइ॑व। च॒। आर्यः॑। इ॒माः। विशः॑। अ॒भि। ह॒र॒न्तु॒। ते॒। ब॒लिम् ॥४५.४॥
स्वर रहित मन्त्र
चतुर्वीरं बध्यत आञ्जनं ते सर्वा दिशो अभयास्ते भवन्तु। ध्रुवस्तिष्ठासि सवितेव चार्य इमा विशो अभि हरन्तु ते बलिम् ॥
स्वर रहित पद पाठचतुःऽवीरम्। बध्यते। आऽअञ्जनम्। ते। सर्वाः। दिशः। अभयाः। ते। भवन्तु। ध्रुवः। तिष्ठासि। सविताऽइव। च। आर्यः। इमाः। विशः। अभि। हरन्तु। ते। बलिम् ॥४५.४॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
ऐश्वर्य की प्राप्ति का उपदेश।
पदार्थ
[हे मनुष्य !] (ते) तेरे लिये (चतुर्वीरम्) चारों दिशाओं में वीर, (आञ्जनम्) आञ्जन [संसार का प्रकट करनेवाला ब्रह्म] (बध्यते) धारण किया जाता है, (ते) तेरे लिये (सर्वाः) सब (दिशः) दिशाएँ (अभयाः) निर्भय (भवन्तु) होवें। (च) और (आर्यः) श्रेष्ठ तू (सविता इव) सूर्य के समान (ध्रुवः) दृढ़ होकर (तिष्ठासि) ठहरा रह, (इमाः) यह (विशः) प्रजाएँ (ते) तेरे लिये (बलिम्) बलि [कर] (अभि) सब ओर से (हरन्तु) लावें ॥४॥
भावार्थ
परमात्मा के दृढ़ स्वभाव उपासक पुरुष दिग्विजयी होकर सब प्रजाओं को वश में करें ॥४॥
टिप्पणी
४−(चतुर्वीरम्) चतसृषु दिक्षु शूरम् (बध्यते) ध्रियते (आञ्जनम्) संसारस्य व्यक्तीकारकं ब्रह्म (ते) तुभ्यम् (सर्वाः) समस्ताः (दिशः) (अभयाः) निर्भयाः (ते) तुभ्यम् (भवन्तु) (ध्रुवः) दृढः सन् (तिष्ठासि) स्थितो भूयाः (सविता) सूर्यः (इव) यथा (च) (आर्यः) श्रेष्ठस्त्वम् (इमाः) वर्तमानाः (विशः) प्रजाः (अभि) अभितः (हरन्तु) प्रापयन्तु (ते) तुभ्यम् (बलिम्) करम्। भागम् ॥
भाषार्थ
हे राजन्! (ते) आपकी सुरक्षा के लिए (आञ्जनम्) कान्तिसम्पन्न, (चतुर्वीरम्) चार प्रकार की सेनाओं के वीरोंवाला सैनिक बल (बध्यते) आपके साथ सम्बद्ध किया जाता है, अर्थात् आप इस सैनिक बल के अधिष्ठाता हैं। (ते) आपके लिए, इस सैनिक बल द्वारा (सर्वाः दिशः) सब दिशाएँ (अभयाः) भयरहित (भवन्तु) हो जाएँ। (च) और (आर्य) हे श्रेष्ठ! (सविता इव) सूर्य के सदृश (ध्रुवः) ध्रुव होकर, स्थिर होकर (तिष्ठासि) आप राष्ट्र पर अधिष्ठातृत्व कीजिए। (इमाः) ये (विशः) प्रजाएँ (ते) आपके लिए (बलिम्) राज-कर (अभि हरन्तु) सब ओर से भेंट करती रहें।
विषय
'चतुर्वीर' आञ्जन
पदार्थ
१. (चतुर्वीरम्) = तेरे चारों अंगों को [मुख, बाहू, ऊरू, पाद] वीर बनानेवाला (आञ्जनम्) = तुझे सद्गुणों से अलंकृत करनेवाला यह वीर्य (ते बध्यते) = तेरे अन्दर बाँधा जाता है। (सर्वा: दिश:) = सब दिशाएँ (ते अभयाः भवन्तु) = तेरे लिए निर्भयता देनेवाली हों। २. (सविता इव) = सूर्य की भाँति तू (ध्रुवः तिष्ठासि) = मर्यादा में ध्रुवता से स्थिर होता है। वीर्यवान् पुरुष सूर्य के समान मार्ग का मर्यादित रूप में आक्रमण करता है (च) = और (आर्य:) = तू श्रेष्ठ बनता है अथवा (अर्य:) = अपना स्वामी बनता है। (इमाः विश:) = ये सब प्रजाएँ (ते बलिम् अभिहरन्तु) = तेरे लिए कर प्राप्त कराएँ। यह वीर्यवान् संयमी सूर्यवत् मर्यादित जीवनवाला पुरुष प्रजाओं का शासक बनता है। सब प्रजाएँ इसे राजपद पर प्रतिष्ठित करती हैं।
भावार्थ
वीर्यरक्षक पुरुष 'मुख, बाह, ऊरू, पाद' इन चारों को सबल बनाता है। यह निर्भय जीवनवाला होता है। स्वयं मर्यादित जीवनवाला होता हुआ प्रजाओं का शासक बनता है। [जितेन्द्रियो हि शक्नोति वशे स्थापयितुं प्रजा:]।
विषय
रक्षक और विद्वान् ‘आञ्जन’।
भावार्थ
(चतुर्वीरं) चारों दिशाओं में वीर्यवान् या चारों प्रकार के वीर्यों, वीर पुरुषों से युक्त (आञ्जनं) कान्तिमान्, दीप्तिमान्, तेजस्वी पुरुष को हे राजन् ! (ते) तेरे हित के लिये (बध्यते) तेरे साथ नियुक्त किया जाता है, जिससे (ते) तेरे लिये (सर्वाः दिशः) समस्त दिशाएं (अभयाः) भयरहित (भवन्तु) होजावें। तू (सविता इव) सूर्य के समान तेजस्वी और (आर्यः च) सर्वश्रेष्ठ स्वामी (ध्रुवः) स्थिर होकर (तिष्ठासि) राज्यासन पर विराजमान हो और (इमाः विशः) ये समस्त प्रजाएं (ते) तेरे लिये (बलिम्) बलि अर्थात् कर (अभि हरन्तु) प्रदान करें। ‘चतुर्वीरं’—चार प्रकार के वीर या वीर्य, चतुरंग सेना अर्थात् पदाति अश्व, रथ और गज।
टिप्पणी
(प्र०) ‘वध्यताज्जनं’, ‘दिशोभया-‘ (तृ०) ‘सवितेवारि इमा’ ‘दिशो भ्रियन्ते’ इति पैप्प० सं०।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
भृगुऋषिः। आञ्जनं देवता। १, २ अनुष्टुभौ। ३, ५ त्रिष्टुभः। ६-१० एकावसानाः महाबृहत्यो (६ विराड्। ७-१० निचृत्तश्च)। दशर्चं सूक्तम्।
इंग्लिश (4)
Subject
Anjanam
Meaning
O man, the heroic presence of Anjana, divine splendour over the four directions, is love self-bound for your good. So let all the quarters of space be free from hate and fear for you. O noble man, stay strong and stable like the sun and let these people bear and bring homage of loyalty to you.
Translation
This anjana blessing of four-fold strength is being bound upon you. May all the quarters be free from fear to you. O lord, may you stay firm like the impeller Lord; let these people bring tribute to you.
Translation
Let this Anjana, the ointment which is the strength of waters, the increasing agent of vigor, which is produced from heart in the present in the produced objects, which is four-time potent and which emerges out from the herbs of mountain make all the quarters and sub quarters auspicious for you, O man.
Translation
O King, this Anjana, emitting forceful energy in all the four quarters has been firmly set up for thee. Let all the directions be free from danger for thee. Enthrall thyself firmly on thy throne like the Sun or the noblest person i.e., ‘Arya’. Let these subjects bring their reverence to thee from all sides.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
४−(चतुर्वीरम्) चतसृषु दिक्षु शूरम् (बध्यते) ध्रियते (आञ्जनम्) संसारस्य व्यक्तीकारकं ब्रह्म (ते) तुभ्यम् (सर्वाः) समस्ताः (दिशः) (अभयाः) निर्भयाः (ते) तुभ्यम् (भवन्तु) (ध्रुवः) दृढः सन् (तिष्ठासि) स्थितो भूयाः (सविता) सूर्यः (इव) यथा (च) (आर्यः) श्रेष्ठस्त्वम् (इमाः) वर्तमानाः (विशः) प्रजाः (अभि) अभितः (हरन्तु) प्रापयन्तु (ते) तुभ्यम् (बलिम्) करम्। भागम् ॥
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