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अथर्ववेद के काण्ड - 19 के सूक्त 45 के मन्त्र

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  • अथर्ववेद - काण्ड 19/ सूक्त 45/ मन्त्र 5
    ऋषि: - भृगुः देवता - आञ्जनम् छन्दः - त्रिष्टुप् सूक्तम् - आञ्जन सूक्त
    18

    आक्ष्वैकं॑ म॒णिमेकं॑ कृणुष्व स्ना॒ह्येके॒ना पि॒बैक॑मेषाम्। चतु॑र्वीरं नैरृ॒तेभ्य॑श्च॒तुर्भ्यो॒ ग्राह्या॑ ब॒न्धेभ्यः॒ परि॑ पात्व॒स्मान् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    आ। अ॒क्ष्व॒। एक॑म्। म॒णिम्। एक॑म्। कृ॒णु॒ष्व॒। स्ना॒हि। एके॑न। आ। पि॒ब॒। एक॑म्। ए॒षा॒म्। चतुः॑ऽवीरम्। नैः॒ऽऋ॒तेभ्यः॑। च॒तुःऽभ्यः॑। ग्राह्याः॑। ब॒न्धेभ्यः॑। परि॑। पा॒तु॒। अ॒स्मान् ॥४५.५॥


    स्वर रहित मन्त्र

    आक्ष्वैकं मणिमेकं कृणुष्व स्नाह्येकेना पिबैकमेषाम्। चतुर्वीरं नैरृतेभ्यश्चतुर्भ्यो ग्राह्या बन्धेभ्यः परि पात्वस्मान् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    आ। अक्ष्व। एकम्। मणिम्। एकम्। कृणुष्व। स्नाहि। एकेन। आ। पिब। एकम्। एषाम्। चतुःऽवीरम्। नैःऽऋतेभ्यः। चतुःऽभ्यः। ग्राह्याः। बन्धेभ्यः। परि। पातु। अस्मान् ॥४५.५॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 45; मन्त्र » 5
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    हिन्दी (2)

    विषय

    ऐश्वर्य की प्राप्ति का उपदेश।

    पदार्थ

    [हे मनुष्य !] (एकम्) एक [ब्रह्म] को (आ) सब ओर से (अक्ष्व) प्राप्त हो, (एकम्) एक को (मणिम्) श्रेष्ठ (कृणुष्व) बना, (एकेन) एक के साथ (स्नाहि) शुद्ध हो, (एषाम्) इन [पदार्थों] में से (एकम्) एक को (आ) लेकर (पिब) पान कर। (चतुर्वीरम्) चारों दिशाओं में वीर [ब्रह्म] (ग्राह्याः) ग्राही [गठिया रोग] के (नैर्ऋतेभ्यः) महाविपत्तिवाले (चतुर्भ्यः) चारों [दिशाओं में फैले] (बन्धेभ्यः) बन्धनों से (अस्मान्) हमें (परि पातु) बचाये रक्खे ॥५॥

    भावार्थ

    मनुष्य एक अद्वितीय परमात्मा में श्रद्धा करके शारीरिक और आत्मिक रोगों से मुक्त होवे ॥५॥

    टिप्पणी

    ५−(आ) समन्तात् (अक्ष्व) अक्षू व्याप्तौ-आत्मनेपदं लोट्। प्राप्नुहि (एकम्) अद्वितीयं ब्रह्म (मणिम्) श्रेष्ठम् (एकम्) ब्रह्म (कृणुष्व) कुरु (स्नाहि) शुद्धो भव (एकेन) ब्रह्मणा (आ) आनीय (पिब) पानं कुरु (एकम्) एषाम् पदार्थानां मध्ये (चतुर्वीरम्) चतसृषु दिक्षु वीररूपं ब्रह्म (नैर्ऋतेभ्यः) निर्ऋति-अण्। महाविपत्तिसम्बन्धिभ्यः (चतुर्भ्यः) चतसृषु दिक्षु व्याप्तेभ्यः (ग्राह्याः) अ०२।९।१। ग्रहणशीलपीडायाः (बन्धेभ्यः) पाशेभ्यः (परि) सर्वतः (पातु) रक्षतु (अस्मान् ॥

    Vishay

    Padartha

    Bhavartha

    English (1)

    Subject

    Anjanam

    Meaning

    O man, dedicate yourself to the One only, take that One as the jewel of your faith, anoint your-self with the One only. And may the One heroic presence in all the four quarters save and protect us from all calamities of adversity and the paralysing snares of all the four directions.

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