Loading...
अथर्ववेद के काण्ड - 19 के सूक्त 45 के मन्त्र
मन्त्र चुनें
  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 45/ मन्त्र 1
    सूक्त - भृगुः देवता - आञ्जनम् छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - आञ्जन सूक्त
    45

    ऋ॒णादृ॒णमि॑व॒ सं न॑यन् कृ॒त्यां कृ॑त्या॒कृतो॑ गृ॒हम्। चक्षु॑र्मन्त्रस्य दु॒र्हार्दः॑ पृ॒ष्टीरपि॑ शृणाञ्जन ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ऋ॒णात्। ऋ॒णम्ऽइ॑व। स॒म्ऽनय॑न्। कृ॒त्याम्। कृ॒त्या॒ऽकृतः॑। गृ॒हम्। चक्षुः॑ऽमन्त्रस्य। दुः॒ऽहार्दः॑। पृ॒ष्टीः। अपि॑। शृ॒ण॒। आ॒ऽअ॒ञ्ज॒न॒ ॥४५.१॥


    स्वर रहित मन्त्र

    ऋणादृणमिव सं नयन् कृत्यां कृत्याकृतो गृहम्। चक्षुर्मन्त्रस्य दुर्हार्दः पृष्टीरपि शृणाञ्जन ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    ऋणात्। ऋणम्ऽइव। सम्ऽनयन्। कृत्याम्। कृत्याऽकृतः। गृहम्। चक्षुःऽमन्त्रस्य। दुःऽहार्दः। पृष्टीः। अपि। शृण। आऽअञ्जन ॥४५.१॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 45; मन्त्र » 1
    Acknowledgment

    हिन्दी (1)

    विषय

    ऐश्वर्य की प्राप्ति का उपदेश।

    पदार्थ

    (इव) जैसे (ऋणात्) ऋण में से (ऋणम्) ऋण को [अर्थात् जैसे ऋण का भाग ऋणदाता को मनुष्य शीघ्र भेजता है वैसे] (कृत्याम्) हिंसा को (कृत्याकृतः) हिंसा करनेवाले के (गृहम्) घर (संनयन्) भेज देता हुआ तू, (आञ्जन) हे आञ्जन ! [संसार के प्रकट करनेवाले ब्रह्म] (चक्षुर्मन्त्रस्य) आँख से गुप्त बात करनेवाले (दुर्हार्दः) दुष्ट हृदयवाले की (पृष्टीः) पसलियों को (अपि) अवश्य (शृण) तोड़ डाल ॥१॥

    भावार्थ

    जैसे मनुष्य उधार देनेवाले को उधार लिया हुआ शीघ्र भेजकर सुख पाता है, वैसे ही मनुष्य पीड़ा देनेवाले को शीघ्र दण्ड देकर आनन्द पावें ॥१॥

    टिप्पणी

    इस मन्त्र का उत्तरार्द्ध कुछ भेद से ऊपर आ चुका है-अ०२।७।५॥१−(ऋणात्) ऋ गतौ-क्त प्रत्ययः, तस्य नत्वम्। पुनर्देयत्वेन गृहीताद्धनात् (ऋणम्) ऋणभागम् (इव) यथा (संनयन्) सम्यक् प्रापयन् (कृत्याम्) हिंसाम् (कृत्याकृतः) हिंसाकारकस्य (गृहम्) चक्षुर्मन्त्रस्य अ०२।७।५। चक्षुः+मत्रि गुप्तभाषणे-अच् घञ् वा। नेत्रसङ्केतेन विचारशीलस्य पिशुनस्य (दुर्हार्दः) दुष्टहृदयस्य (पृष्टीः) पार्श्वास्थीनि (अपि) अवश्यम् (शृण) विनाशय (आञ्जन) ४४।१। हे संसारस्य व्यक्तीकारक ब्रह्म ॥

    इंग्लिश (1)

    Subject

    Anjanam

    Meaning

    As one strives to make a fugitive debtor pay back the debt or makes an evil deed visit back upon the evil doer in his very home, so O Anjana, lord of the beauty, goodness and beatitude of life, make the evil eye and evil wish to visit back upon the evil eyed and the evil hearted and break his back with the weight of his own doing.

    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    इस मन्त्र का उत्तरार्द्ध कुछ भेद से ऊपर आ चुका है-अ०२।७।५॥१−(ऋणात्) ऋ गतौ-क्त प्रत्ययः, तस्य नत्वम्। पुनर्देयत्वेन गृहीताद्धनात् (ऋणम्) ऋणभागम् (इव) यथा (संनयन्) सम्यक् प्रापयन् (कृत्याम्) हिंसाम् (कृत्याकृतः) हिंसाकारकस्य (गृहम्) चक्षुर्मन्त्रस्य अ०२।७।५। चक्षुः+मत्रि गुप्तभाषणे-अच् घञ् वा। नेत्रसङ्केतेन विचारशीलस्य पिशुनस्य (दुर्हार्दः) दुष्टहृदयस्य (पृष्टीः) पार्श्वास्थीनि (अपि) अवश्यम् (शृण) विनाशय (आञ्जन) ४४।१। हे संसारस्य व्यक्तीकारक ब्रह्म ॥

    Top