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अथर्ववेद के काण्ड - 20 के सूक्त 49 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 49/ मन्त्र 4
    ऋषिः - नोधाः देवता - इन्द्रः छन्दः - प्रगाथः सूक्तम् - सूक्त-४९
    36

    तं वो॑ द॒स्ममृ॑ती॒षहं॒ वसो॑र्मन्दा॒नमन्ध॑सः। अ॒भि व॒त्सं न स्वस॑रेषु धे॒नव॒ इन्द्रं॑ गी॒र्भिर्न॑वामहे ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    तम् । व॒: । द॒स्मम् । ऋ॒ति॒ऽसह॑म् । वसो॑: । म॒न्दा॒नम् । अन्ध॑स: ॥ अ॒भि । व॒त्सम् । न । स्वस॑रेषु । धे॒नव॑: । इन्द्र॑म् । गी॒ऽभि: । न॒वा॒म॒हे॒ ॥४९.४॥


    स्वर रहित मन्त्र

    तं वो दस्ममृतीषहं वसोर्मन्दानमन्धसः। अभि वत्सं न स्वसरेषु धेनव इन्द्रं गीर्भिर्नवामहे ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    तम् । व: । दस्मम् । ऋतिऽसहम् । वसो: । मन्दानम् । अन्धस: ॥ अभि । वत्सम् । न । स्वसरेषु । धेनव: । इन्द्रम् । गीऽभि: । नवामहे ॥४९.४॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 49; मन्त्र » 4
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    ईश्वर की उपासना का उपदेश।

    पदार्थ

    [हे मनुष्यो !] (वः) तुम्हारे लिये (तम्) उस (दस्मम्) दर्शनीय, (ऋतीषहम्) शत्रुओं के हरानेवाले, (वसोः) धन से और (अन्धसः) अन्न से (मन्दमानम्) आनन्द देनेवाले (इन्द्रम्) इन्द्र [परम ऐश्वर्यवाले परमात्मा] को (गीर्भिः) वाणियों से (अभि) सब प्रकार (नवामहे) हम सराहते हैं, (न) जैसे (धेनवः) गौएँ (स्वसरेषु) घरों में [वर्तमान] (वत्सम्) बछड़े को [हिङ्कारती हैं] ॥४॥

    भावार्थ

    जो परमात्मा अनेक धन और अन्न आदि देकर हमें तृप्त करता है, उसे ऐसी प्रीति से हम स्मरण करें, जैसे गौएँ दोहने के समय घर में बँधे छोटे बच्चों को पुकारती हैं ॥४॥

    टिप्पणी

    मन्त्र ४-७ ऊपर आचुके हैं-अ० २०।९।१-४ ॥ ४-७−एते मन्त्रा व्याख्याताः-अ० २०।९।१-४ ॥

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    विषय

    'दस्म' प्रभु

    पदार्थ

    १. (तम्) = उस (इन्द्रम्) = परमैश्वर्यशाली प्रभु को (गीभिः) = स्तुतिवाणियों से (नवामहे) = स्तुत करते हैं, जोकि (वः दस्मम्) = तुम्हारे दुःखों के दूर करनेवाले हैं, (ऋतीषहम्) = आर्ति [पीड़ा] के नाशक हैं तथा (वसो: अन्धसः मन्दानम्) = निवास के कारणभूत सोम के द्वारा आनन्दित करनेवाले हैं। २. (स्वसरेषु) = [स्व: आदित्यः एतान् सारयति] दिनों में-दिन के निकलने पर (न:) = जैसे (धेनवः) = गौवें (वत्सम् अभि) = बछड़े का लक्ष्य करके हम्भारव करती हैं, उसी प्रकार हम प्रभु का स्तवन करते है।

    भावार्थ

    हम प्रतिदिन प्रातः प्रभु का स्मरण करें। यह स्मरण ही हमारे सब कष्टों को दूर करेगा और सोम-रक्षण द्वारा हमारे आनन्द का साधक होगा।

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    भाषार्थ

    हे उपासको! (वः) तुम्हारे (दस्मम्) दुःखों का क्षय करनेवाले, (ऋतीषहम्) आर्तियों अर्थात् पीड़ाओं और क्लेशों का पराभव करनेवाले, (वसोः) सम्पत्तियों तथा (अन्धसः) अन्नों से (मन्दानम्) तृप्त और प्रसन्न करनेवाले (इन्द्रम्) परमेश्वर के (अभि) प्रति, (स्वसरेषु) प्रतिदिन (गीर्भिः) वैदिक स्तुतिवाणियों द्वारा, (नवामहे) हम गुरुजन परमेश्वर की स्तुतियाँ करते हैं, (न) जैसे कि (वत्सम् अभि) अपने अपने बछड़े के प्रति, (स्वसरेषु) प्रतिदिन, (धेनवः) दूध भरी गौएँ प्रीतिपूर्वक हम्भारव करती हैं।

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    विषय

    ईश्वरोपासना।

    भावार्थ

    (४-७) इन चार मन्त्रों की व्याख्या देखो अथर्ववेद काण्ड २०। ९। १-४॥

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ऋषिः—१,३ खिलः, ४,५ नोधाः, ६,७ मेध्यातिथिः॥ देवता—इन्द्रः॥ छन्दः- १-३ गायत्री, ४-७ बार्हतः प्रगाथः (समाबृहती+विषमा—सतोबृहती)॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Indra Devata

    Meaning

    We invoke and call upon Indra eagerly as cows call for their calves in the stalls, and, with songs of adoration over night and day, we glorify him, lord glorious, omnipotent power fighting for truth against evil forces, and exhilarated with the bright soma of worship offered by celebrant humanity.

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    Translation

    O man, we with our eulogizing songs glorify that Almighty God who is the observer of you all, who is destroyer of all trounles and who is the giver of happiness from His all pervading power as the cows in the stall low to their calves.

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    Translation

    O man, we with our eulogizing songs glorify that Almighty God who is the observer of you all, who is destroyer of all troubles and who is the giver of happiness from His all-pervading power as the cows in the stall low to their calves.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    मन्त्र ४-७ ऊपर आचुके हैं-अ० २०।९।१-४ ॥ ४-७−एते मन्त्रा व्याख्याताः-अ० २०।९।१-४ ॥

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    बंगाली (2)

    मन्त्र विषय

    ঈশ্বরোপাসনোপদেশঃ

    भाषार्थ

    [হে মনুষ্যগণ !] (বঃ) তোমাদের জন্য (তম্) সেই (দস্মম্) দর্শনীয়, (ঋতীষহম্) শত্রুদের পরাস্তকারী (বসোঃ) ধন দ্বারা এবং (অন্ধসঃ) অন্ন দ্বারা (মন্দানম্) আনন্দ প্রদানকারী (ইন্দ্রম্) ইন্দ্র [পরম ঐশ্বর্যবান্ পরমাত্মা] কে (গীর্ভিঃ) বাণীর দ্বারা (অভি) সকল প্রকারে (নবামহে) আমরা প্রশংসা করি, (ন) যেমন (ধেনবঃ) গাভী (স্বসরেষু) ঘরের মধ্যে [বর্তমান] (বৎসম্) বাছুরকে [ডাকে] ॥৪॥

    भावार्थ

    যে পরমাত্মা অনেক ধন এবং অন্নাদি প্রদান করে আমাদের তৃপ্ত করে, তাকে এরূপ প্রীতিপূর্বক আমরা স্মরণ করি, যেমন গাভী দোহনের সময় সময় ঘরের মধ্যে বাঁধা ছোটো বাছুরকে ডাকে ॥৪॥

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    भाषार्थ

    হে উপাসকগণ! (বঃ) তোমরা (দস্মম্) দুঃখ ক্ষয়কারী, (ঋতীষহম্) আর্তি অর্থাৎ পীড়া এবং ক্লেশ দূরীভূতকারী, (বসোঃ) সম্পত্তি তথা (অন্ধসঃ) অন্ন দ্বারা (মন্দানম্) তৃপ্ত এবং প্রসন্নকারী (ইন্দ্রম্) পরমেশ্বরের (অভি) প্রতি, (স্বসরেষু) প্রতিদিন (গীর্ভিঃ) বৈদিক স্তুতিবাণী দ্বারা, (নবামহে) আমরা গুরুজন পরমেশ্বরের স্তুতি করি, (ন) যেমন (বৎসম্ অভি) নিজ নিজ বাছুরের প্রতি, (স্বসরেষু) প্রতিদিন, (ধেনবঃ) দুগ্ধবতী গাভী প্রীতিপূর্বক নর্দন করে।

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