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अथर्ववेद के काण्ड - 20 के सूक्त 49 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 49/ मन्त्र 6
    ऋषिः - मेधातिथिः देवता - इन्द्रः छन्दः - प्रगाथः सूक्तम् - सूक्त-४९
    38

    तत्त्वा॑ यामि सु॒वीर्यं॒ तद्ब्रह्म॑ पू॒र्वचि॑त्तये। येना॒ यति॑भ्यो॒ भृग॑वे॒ धने॑ हि॒ते येन॒ प्रस्क॑ण्व॒मावि॑थ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    तत् । त्वा॒ । या॒मि॒ । सु॒ऽवीर्य॑म् । तत् । ब्रह्म॑ । पू॒र्वऽचि॑त्तये ॥ येन॑ । यति॑ऽभ्य: । भृग॑वे । धने॑ । हि॒ते । येन॑ । प्रस्क॑ण्वम् । आवि॑थ ॥४९.६॥


    स्वर रहित मन्त्र

    तत्त्वा यामि सुवीर्यं तद्ब्रह्म पूर्वचित्तये। येना यतिभ्यो भृगवे धने हिते येन प्रस्कण्वमाविथ ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    तत् । त्वा । यामि । सुऽवीर्यम् । तत् । ब्रह्म । पूर्वऽचित्तये ॥ येन । यतिऽभ्य: । भृगवे । धने । हिते । येन । प्रस्कण्वम् । आविथ ॥४९.६॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 49; मन्त्र » 6
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    ईश्वर की उपासना का उपदेश।

    पदार्थ

    [हे परमात्मन् !] (त्वा) तुझसे (तत्) वह (सुवीर्यम्) बड़ा वीरत्व और (तत्) वह (ब्रह्म) बढ़ता हुआ अन्न (पूर्वचित्तये) पहिले ज्ञान के लिये (यामि) मैं माँगता हूँ। (येन) जिस [वीरत्व और अन्न] से (धने हिते) धन के स्थापित होने पर (यतिभ्यः) यतियों [यत्नशीलों] के लिये (भृगवे=भृगुम्) परिपक्व ज्ञानी को और (येन) जिससे (प्रस्कण्वम्) बड़े बुद्धिमान् पुरुष को (आविथ) तूने बचाया है ॥६॥

    भावार्थ

    मनुष्यों को परमात्मा की उपासना करके पुरुषार्थ के साथ पराक्रमी, अन्नवान् और धनी होना चाहिये, जिसके अनुकरण से प्रयत्नशील पुरुष सुरक्षित रहें ॥६॥

    टिप्पणी

    ४-७−एते मन्त्रा व्याख्याताः-अ० २०।९।१-४ ॥

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    विषय

    सुवीर्य+ब्रह्म

    पदार्थ

    १. हे प्रभो! (त्वा) = आपसे (तत्) = उस (सुवीर्यम्) = उत्तम शक्ति को (यामि) = माँगता हूँ, और (तत् ब्रह्म) = उस ज्ञान को (पूर्वचित्तये) = पालक व पूरक चेतना के लिए [पृ पालनपूरणयोः] चाहता हूँ (येन) = जिस सुवीर्य व ब्रह्म के द्वारा (यतिभ्यः) = [संन्यासियों] संयमी पुरुषों के लिए तथा (भृगवे) = ज्ञान से अपना परिपाक करनेवाले के लिए (आविथ) = आप रक्षण करते हो। २. मैं उस सुवीर्य व ब्रह्म की याचना करता हूँ जिससे (हिते धने) = हितकर धन के निमित्त (आ प्रस्कण्वम्) = मेधावी पुरुष का (आविथ) = रक्षण करते हो।

    भावार्थ

    प्रभु हमें वह सुवीर्य व ब्रह्म [ज्ञान] प्राप्त कराएँ जिससे हम संयमी, ज्ञानी व मेधावी बनकर प्रभु-रक्षण के पात्र हों।

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    भाषार्थ

    (पूर्वचित्तये) घटनाओं के पूर्वज्ञान के लिए, हे परमेश्वर! मैं उपासक, (तत्) प्रसिद्ध (सुवीर्यम्) उत्कृष्ट धर्मवीरता, अर्थात् बाधाओं और कष्टों के होते भी उपात्त योगमार्ग पर सुदृढ़ रहना, और (तत्) प्रसिद्ध (ब्रह्म) वेदविद्या जो कि ब्रह्म का प्रतिपादन करती है—इन दोनों की (त्वा यामि) मैं आपसे याचना करता हूँ, (येन) जिस धर्मवीरता और वेदविद्या द्वारा, (यतिभ्यः) यतियों के लिए, (भृगवे) वासनाओं को दग्ध किये व्यक्ति के लिए, उनके (हिते धने) हितकर धन अर्थात् मोक्ष की प्राप्ति के निमित्त, उसकी (आविथ) आपने रक्षा की है, तथा (येन) जिन उपर्युक्त दो साधनों द्वारा आपने (प्रस्कण्वम्) प्रकृष्ट मेधावान् की (आविथ) रक्षा की है।

    टिप्पणी

    [कण्वः=मेधावी (निघं০ ३.१५)। प्रस्कण्व=प्रकृष्ट मेधावी, अर्थात् आध्यात्मिकमेधा-सम्पन्न। मन्त्र में उपासक “पूर्वचित्ति” अर्थात् भविष्य में होनेवाली घटनाओं का पूर्वज्ञान चाहता है, ताकि वह इष्ट और अनिष्ट का उपादान तथा परिहार पहिले ही कर ले।]

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    विषय

    ईश्वरोपासना।

    भावार्थ

    (४-७) इन चार मन्त्रों की व्याख्या देखो अथर्ववेद काण्ड २०। ९। १-४॥

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ऋषिः—१,३ खिलः, ४,५ नोधाः, ६,७ मेध्यातिथिः॥ देवता—इन्द्रः॥ छन्दः- १-३ गायत्री, ४-७ बार्हतः प्रगाथः (समाबृहती+विषमा—सतोबृहती)॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Indra Devata

    Meaning

    O lord resplendent, I come to you and ask for that vigour and wisdom, that knowledge of reality and divinity, that prime acquisition and awareness of values by which, when the battle rages and money and materials are called for, you provide for the retired holy men, scientists, technologists and the inventors and by which you protect the man of advanced special knowledge.

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    Translation

    O Almighty God, I far the rememberance of previous birth’s activities ask you for that favour and that knowledge through which you establish the man of austerity and him who has observed strict discipline of Yoga in the internally conceded spiritual wealth and through which protect the man who possessed inexhaustible knowledge.

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    Translation

    O Almighty God, I far the remembrance of previous birth’s activities ask you for that favor and that knowledge through which you establish the man of austerity and him who has observed strict discipline of Yoga in the internally conceded spiritual wealth and through which protect the man who possessed inexhaustible knowledge.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ४-७−एते मन्त्रा व्याख्याताः-अ० २०।९।१-४ ॥

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    बंगाली (2)

    मन्त्र विषय

    ঈশ্বরোপাসনোপদেশঃ

    भाषार्थ

    [হে পরমাত্মন্ !] (ত্বা) তোমার কাছ থেকে (তৎ) সেই (সুবীর্যম্) বড়ো বীরত্ব এবং (তৎ) সেই (ব্রহ্ম) বৃদ্ধিপ্রাপ্ত অন্ন (পূর্বচিত্তয়ে) প্রথম জ্ঞানের জন্য (যামি) আমি প্রার্থনা করছি। (যেন) যে [বীরত্ব এবং অন্ন] দ্বারা (ধনে হিতে) ধন স্থাপিত হলে (যতিভ্যঃ) জিতেন্দ্রিয় [যত্নশীলদের] জন্য (ভৃগবে=ভৃগুম্) পরিপক্ব জ্ঞানীকে এবং (যেন) যার মাধ্যমে (প্রস্কণ্বম্) অন্যন্ত বুদ্ধিমান্ পুরুষকে (আবিথ) তুমি রক্ষা করেছো ॥৬॥

    भावार्थ

    মনুষ্যকে পরাত্মার উপাসনা করে পুরুষার্থপূর্বক প্রথম শ্রেণীর পরাক্রমশালী, অন্নবান এবং ধনী হওয়া উচিত, যার অনুকরণ করে পরিশ্রমী পুরুষ সুরক্ষিত থাকে ॥৬॥

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    भाषार्थ

    (পূর্বচিত্তয়ে) ঘটনা-সমূহের পূর্বজ্ঞানের জন্য, হে পরমেশ্বর! আমি উপাসক, (তৎ) প্রসিদ্ধ (সুবীর্যম্) উৎকৃষ্ট ধর্মবীরতা, অর্থাৎ বাধা এবং কষ্ট হলেও উপাত্ত/প্রাপ্ত যোগমার্গে সুদৃঢ় থাকা, এবং (তৎ) প্রসিদ্ধ (ব্রহ্ম) বেদবিদ্যা যা ব্রহ্মের প্রতিপাদন করে—এই উভয়ের (ত্বা যামি) আমি আপনার প্রতি যাচনা করি, (যেন) যে ধর্মবীরতা এবং বেদবিদ্যা দ্বারা, (যতিভ্যঃ) যতিদের/যোগীর/জিতেন্দ্রিয়দের জন্য, (ভৃগবে) বাসনা-সমূহ দগ্ধকারী ব্যক্তির জন্য, তাঁর (হিতে ধনে) হিতকর ধন অর্থাৎ মোক্ষ প্রাপ্তির জন্য, তাঁর (আবিথ) আপনি রক্ষা করেছেন, তথা (যেন) যে উপর্যুক্ত দুই সাধন দ্বারা আপনি (প্রস্কণ্বম্) প্রকৃষ্ট মেধাবানদের (আবিথ) রক্ষা করেছেন।

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