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अथर्ववेद के काण्ड - 20 के सूक्त 57 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 57/ मन्त्र 5
    ऋषिः - विश्वमित्रः देवता - इन्द्रः छन्दः - गायत्री सूक्तम् - सूक्त-५७
    51

    इ॑न्द्रि॒याणि॑ शतक्रतो॒ या ते॒ जने॑षु प॒ञ्चसु॑। इन्द्र॒ तानि॑ त॒ आ वृ॑णे ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    इ॒न्द्रि॒याणि॑ । श॒त॒क्र॒तो॒ इति॑ शतऽक्रतो । या । ते॒ । जने॑षु । प॒ञ्चऽसु॑ ॥ इन्द्र॑ । तानि॑ । ते॒ । आ । वृ॒णे॒ ॥५७.५॥


    स्वर रहित मन्त्र

    इन्द्रियाणि शतक्रतो या ते जनेषु पञ्चसु। इन्द्र तानि त आ वृणे ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    इन्द्रियाणि । शतक्रतो इति शतऽक्रतो । या । ते । जनेषु । पञ्चऽसु ॥ इन्द्र । तानि । ते । आ । वृणे ॥५७.५॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 57; मन्त्र » 5
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    १-१० मनुष्य के कर्तव्य का उपदेश।

    पदार्थ

    (शतक्रतो) हे सैकड़ों कर्मों वा बुद्धियोंवाले (इन्द्र) इन्द्र ! [बड़े ऐश्वर्यवाले राजन्] (या) जो (ते) तेरे (इन्द्रियाणि) इन्द्र [ऐश्वर्यवान्] के चिह्न धनादि (पञ्चसु जनेषु) पञ्च [मुख्य] लोगों में हैं। (ते) तेरे (तानि) उन [चिह्नों] को (आ) सब प्रकार (वृणे) मैं स्वीकार करता हूँ ॥॥

    भावार्थ

    बुद्धिमान् धार्मिक राजा बड़े-बड़े अधिकारियों का आदर करके प्रजा की रक्षा करे ॥॥

    टिप्पणी

    ४-१०- एते मन्त्रा व्याख्याताः-अ० २।२०।१-७ ॥

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    विषय

    देखो व्याख्या अथर्व० २०.२०.१-७

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    भाषार्थ

    (शतक्रतो इन्द्र) हे सैकड़ों अद्भुत कर्मोंवाले परमेश्वर! (पञ्चसु जनेषु) पांच प्रकार के प्रजाजनों में, या विस्तृत अर्थात् पृथिवी पर फैले प्रजाजनों में, (ते) आपकी दी हुई (या) जो (इन्द्रियाणि) इन्द्रियाँ हैं, वे स्वस्थ बनी रहें—यह मैं (ते) आपसे (आ वृणे) वर मांगता हूँ।

    टिप्पणी

    [पञ्चजन=ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र, तथा निषाद (=वैदिक कर्मों से विहीन व्यक्ति)। अथवा पञ्च=पच् विस्तारे। [इन्द्रियाणि—जैसे प्रार्थना की है कि —“पश्येम शरदः शतम्, शृणुयाम शरदः शतम् प्रब्रवाम शरदः शतम्”।]

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    विषय

    ईश्वरस्तुति।

    भावार्थ

    (४–१०) इन सात मन्त्रों की व्याख्या देखो अथर्व का० २०। २०। १–७॥

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    मधुच्छन्दा ऋषिः। इन्द्रो देवता। १-३ गायत्र्यः। शेषाः पूर्वोक्ताः। षोडशचं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Indra Devata

    Meaning

    Indra, ruler of the world, master of a hundred noble acts of governance, your powers and organs of perception are operating among all the five classes of people, i.e., teachers and intellectuals, ruling powers and defence forces, producers and business men, ancillaries, and others, I accept and honour all these as powers and forces of yours.

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    Translation

    O King, you are the doer of hundred of good acts. The powers and prosperity which are found in your men of five classes (the four varnas and the 5th avarna) I claim for you.

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    Translation

    O King, you are the doer of hundred of good acts. The powers and prosperity which are found in your men of five classes (the four varnas and the 5th avarna) I claim for you.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ४-१०- एते मन्त्रा व्याख्याताः-अ० २।२०।१-७ ॥

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    बंगाली (2)

    मन्त्र विषय

    ১-১০ মনুষ্যকর্তব্যোপদেশঃ

    भाषार्थ

    (শতক্রতো) হে বহুকর্ম ও বুদ্ধিসম্পন্ন (ইন্দ্র) ইন্দ্র! [ঐশ্বর্যবান রাজন্] (যা) যে (তে) তোমার (ইন্দ্রিয়াণি) ইন্দ্র [ঐশ্বর্যবান] এর চিহ্ন ধনাদি (পঞ্চসু জনেষু) পঞ্চ [মুখ্য] মনুষ্যদের মধ্যে রয়েছে। (তে) তোমার (তানি) সেই [চিহ্নসমূহ] কে (আ) সর্বত্রভাবে (বৃণে) আমি স্বীকার করি।।৫।।

    भावार्थ

    বুদ্ধিমান ধার্মিক রাজা উচ্চ পদস্থ অধিকারীদের সৎকার করে প্রজাদের রক্ষা করুক।।৫।।

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    भाषार्थ

    (শতক্রতো ইন্দ্র) হে শত অদ্ভুত কর্মকর্তা পরমেশ্বর! (পঞ্চসু জনেষু) পাঁচ প্রকারের প্রজাদের মধ্যে, বা বিস্তৃত অর্থাৎ পৃথিবীতে বর্তমান প্রজাদের মধ্যে, (তে) আপনার দ্বারা প্রদত্ত (যা) যে (ইন্দ্রিয়াণি) ইন্দ্রিয়-সমূহ আছে, তা সুস্থ থাকুক—ইহা আমি (তে) আপনার থেকে (আ বৃণে) বর যাচনা করি।

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