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अथर्ववेद के काण्ड - 20 के सूक्त 57 के मन्त्र

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  • अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 57/ मन्त्र 6
    ऋषि: - विश्वमित्रः देवता - इन्द्रः छन्दः - गायत्री सूक्तम् - सूक्त-५७
    19

    अग॑न्निन्द्र॒ श्रवो॑ बृ॒हद्द्यु॒म्नं द॑धिष्व दु॒ष्टर॑म्। उत्ते॒ शुष्मं॑ तिरामसि ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अग॑न्‌ । इ॒न्द्र॒ । श्रव॑: । बृ॒हत् । द्यु॒म्नम् । इ॒धि॒ष्व॒ । दु॒स्तर॑म् ॥ उत् । ते॒ । शुष्म॑म् । ति॒र॒म॒सि॒॥५७.६॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अगन्निन्द्र श्रवो बृहद्द्युम्नं दधिष्व दुष्टरम्। उत्ते शुष्मं तिरामसि ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अगन्‌ । इन्द्र । श्रव: । बृहत् । द्युम्नम् । इधिष्व । दुस्तरम् ॥ उत् । ते । शुष्मम् । तिरमसि॥५७.६॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 57; मन्त्र » 6
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    हिन्दी (2)

    विषय

    १-१० मनुष्य के कर्तव्य का उपदेश।

    पदार्थ

    (इन्द्र) हे इन्द्र ! [बड़े ऐश्वर्यवाले राजन्] (बृहत्) बड़ा (श्रवः) अन्न [हमको] (अगन्) प्राप्त हुआ है, (दुस्तरम्) दुस्तर [अजेय] (द्युम्नम्) चमकनेवाले यश को (दधिष्व) तू धारण कर, (ते) तेरे (शुष्मम्) बल को (उत् तिरामसि) हम बढ़ाते हैं ॥६॥

    भावार्थ

    जिस राजा के कारण बहुत अन्न आदि पदार्थ मिलें, प्रजागण उसके बल बढ़ाने में सदा प्रयत्न करें ॥६॥

    टिप्पणी

    ४-१०- एते मन्त्रा व्याख्याताः-अ० २।२०।१-७ ॥

    Vishay

    Padartha

    Bhavartha

    English (1)

    Subject

    Indra Devata

    Meaning

    Indra, ruler and protector of the world, the assets of the dominion are high and rising. Hold and govern this formidable wealth, honour and excellence of the nation. And let us all, we pray, raise and exalt your courage and power, honour and glory.

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