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अथर्ववेद के काण्ड - 20 के सूक्त 89 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 89/ मन्त्र 10
    ऋषिः - कृष्णः देवता - इन्द्रः छन्दः - त्रिष्टुप् सूक्तम् - सूक्त-८९
    38

    गोभि॑ष्टरे॒माम॑तिं दु॒रेवां॒ यवे॑न वा॒ क्षुधं॑ पुरुहूत॒ विश्वे॑। व॒यं राज॑सु प्रथ॒मा धना॒न्यरि॑ष्टासो वृज॒नीभि॑र्जयेम ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    गोभि॑: । त॒रे॒म॒ । अम॑तिम् । दु॒:ऽएवा॑म् । यवे॑न । वा॒ । क्षुध॑म् । पु॒रु॒ऽहू॒त॒ । विश्वे॑ ॥ व॒यम् । राज॑ऽसु । प्र॒थ॒मा: । धना॑नि । अरि॑ष्टास: । वृ॒ज॒नीभि॑: । ज॒ये॒म॒ ॥८९.१०॥


    स्वर रहित मन्त्र

    गोभिष्टरेमामतिं दुरेवां यवेन वा क्षुधं पुरुहूत विश्वे। वयं राजसु प्रथमा धनान्यरिष्टासो वृजनीभिर्जयेम ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    गोभि: । तरेम । अमतिम् । दु:ऽएवाम् । यवेन । वा । क्षुधम् । पुरुऽहूत । विश्वे ॥ वयम् । राजऽसु । प्रथमा: । धनानि । अरिष्टास: । वृजनीभि: । जयेम ॥८९.१०॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 89; मन्त्र » 10
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    मनुष्य के कर्तव्य का उपदेश।

    पदार्थ

    (पुरुहूत) हे बहुत बुलाये गये राजन् ! (विश्वे) हम सब लोग (गोभिः) विद्याओं से (दुरेवाम्) दुर्गतिवाली (अमतिम्) कुमति को (तरेम) हटावें, (वा) जैसे (यवेन) जौ आदि अन्न से (क्षुधम्) भूख को। (वयम्) हम लोग (राजसु) राजाओं के बीच (प्रथमाः) पहिले और (अरिष्टासः) अजेय होकर (वृजनीभिः) अनेक वर्जन शक्तियों से (धनानि) अनेक धनों को (जयेम) जीतें ॥१०॥

    भावार्थ

    मनुष्य विद्याओं द्वारा कुमति हटाकर प्रशंसनीय गुण प्राप्त करके अनेक धन प्राप्त करें ॥१०॥

    टिप्पणी

    मन्त्र १० कुछ भेद से और मन्त्र ११ आ चुके हैं-अ० २०।१७।१०, ११ और आगे हैं-अ० २०।९४।१०, ११। मन्त्र १० की टिप्पणी देखो ॥

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    विषय

    अरिष्टासः

    पदार्थ

    ११॥ व्याख्या अथर्व०२०.१७.१०-११ पर देखिए।

    सूचना

    अथर्व०२०.१७.१० पर ('विश्वे') = के स्थान पर (विश्वा') = ण: है। वहाँ यह 'क्षुधम्' का विशेषण है। यहाँ यह 'वयम्' का। (विश्वे वयं तरेम) = हम सब तैर जाएँ। (आरिष्टासो वृजनीभिः) = के स्थान में ('अस्माकेन वृजनेना') = ऐसा पाठ है। यहाँ अर्थ है 'अहिंसित होते हुए पाप-वर्जनों के द्वारा। पापवर्जन द्वारा ही यह 'भरद्वाज' बनता है और प्रार्थना करता है कि -

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    भाषार्थ

    (गोभिः) वेदवाणियों की नौका द्वारा (विश्वे) हम सब (दुरेवाम्) दुष्परिणामी (अमतिम्) अज्ञान या अविद्या की नदी से (तरेम) पार हो जाएँ, (वा) तथा हम सब (यवेन) जौ आदि सात्विक अन्नों द्वारा (क्षुधम्) क्षुधा को शान्त करें। (पुरुहूत) हे बहुतों द्वारा, या बहुत नामों द्वारा पुकारे गये परमेश्वर! (वयम्) हम (अरिष्टासः) रोगादि से रहित होकर, (वृजनीभिः) अपनी शक्तियों द्वारा, परिश्रमों द्वारा (राजसु) योगिराजों में स्थित (प्रथमा धनानि) सर्वश्रेष्ठ आध्यात्मिक धनों पर (जयेम) विजय पा लें, उन्हें अपना लें।

    टिप्पणी

    [“वयं राजसु” का आधिभौतिक अभिप्राय यह है कि राजा लोग “कर” लगाकर प्रजा के श्रेष्ठ धनों के स्वामी बनकर, यदि उन का उपयोग निज भोगों में करते हैं, तो प्रजा को चाहिए कि (वृजनीभिः) सेनाओं में विप्लव तथा विद्रोह जागरित कर, उन धनों पर विजय पाकर, उन का उपयोग प्रजा की भलाई के निमित्त करें। वैदिक समाजवाद का यह एक अत्युत्तम सिद्धान्त है।]

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    विषय

    राजा परमेश्वर।

    भावार्थ

    (१०-११) इन दोनों की व्याक्या देखो का० २०। १७ । १०, ११॥ तथा का० ७। ५०॥ ७॥

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    कृष्णा ऋषिः। इन्दो देवता। त्रिष्टुभः। एकादशर्चं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Indr a Devata

    Meaning

    O ruler of the world, invoked and celebrated by all humanity, let us solve the difficult problem of poverty and mental and cultural backwardness by cow development, land development and proper education, and the problem of hunger, by food production across the world. Let us take the initiative first to win wealth by cooperation with other rulers, and ultimately win our goals by our own power and effort. 10. O ruler of the world invoked and celebrated by all humanity, let us solve the difficult problem of poverty and mental and cultural backwardness by cow development, land development and proper education, and the problem of hunger, by food production across the world. Let us take the initiative first to win wealth by cooperation with other rulers, and ultimately win our goals by our own power and effort.

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    Translation

    May we overcome all trouble-some indigence or ignorance with cows or with vedic speeches, may we over-come hunger with corn and may we first in rank allied with princes acquire Possessions with our own exertion.

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    Translation

    May we overcome all troublesome indigence or ignorance with cows or with vedic speeches, may we over-come hunger with corn and may we first in rank allied with princes acquire possessions with our own exertion.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    मन्त्र १० कुछ भेद से और मन्त्र ११ आ चुके हैं-अ० २०।१७।१०, ११ और आगे हैं-अ० २०।९४।१०, ११। मन्त्र १० की टिप्पणी देखो ॥

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    बंगाली (2)

    मन्त्र विषय

    মনুষ্যকর্তব্যোপদেশঃ

    भाषार्थ

    (পুরুহূত) হে বহু আহূত রাজন্! (বিশ্বে) আমরা সকলে (গোভিঃ) বিদ্যা দ্বারা (দুরেবাম্) দুর্গতিযুক্ত (অমতিম্) কুমতি (তরেম্) দূরীভূত করি, (বা) যেভাবে (যবেন্) যখন আদি অন্ন দ্বারা (ক্ষুধম্) ক্ষুধা দূরীভূত হয়। (বয়ম্) আমরা (রাজ্সু) রাজাগণের মধ্যে (প্রথ্মাঃ) প্রথম এবং (অরিষ্টাসঃ) অজেয় হয়ে (বৃজ্নীভি) অনেক বর্জন শক্তি দ্বারা (ধনানি) বহু ধন (জয়েম্) জয় করি ॥১০॥

    भावार्थ

    মনুষ্য বিদ্যা দ্বারা কুমতি দূর করে প্রশংসনীয় গুণ প্রাপ্ত করে বহু ধন উপার্জন করে/করুক ॥১০॥

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    भाषार्थ

    (গোভিঃ) বেদবাণীর নৌকা দ্বারা (বিশ্বে) আমরা সবাই (দুরেবাম্) দুষ্পরিণামী (অমতিম্) অজ্ঞান বা অবিদ্যার নদী থেকে (তরেম) পার হয়ে যাই, (বা) তথা আমরা সবাই (যবেন) যব আদি সাত্ত্বিক অন্ন দ্বারা (ক্ষুধম্) ক্ষুধা শান্ত করি। (পুরুহূত) হে অনেকের দ্বারা, বা বহু নাম দ্বারা আহুত পরমেশ্বর! (বয়ম্) আমরা (অরিষ্টাসঃ) রোগাদি রহিত হয়ে, (বৃজনীভিঃ) নিজেদের শক্তি দ্বারা, পরিশ্রম দ্বারা (রাজসু) যোগীরাজের মধ্যে স্থিত (প্রথমা ধনানি) সর্বশ্রেষ্ঠ আধ্যাত্মিক ধনের ওপর (জয়েম) বিজয় প্রাপ্ত করি, উহা আপন করি।

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