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अथर्ववेद के काण्ड - 20 के सूक्त 89 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 89/ मन्त्र 3
    ऋषिः - कृष्णः देवता - इन्द्रः छन्दः - त्रिष्टुप् सूक्तम् - सूक्त-८९
    36

    किम॒ङ्ग त्वा॑ मघवन्भो॒जमा॑हुः शिशी॒हि मा॑ शिश॒यं त्वा॑ शृणोमि। अप्न॑स्वती॒ मम॒ धीर॑स्तु शक्र वसु॒विदं॒ भग॑मि॒न्द्रा भ॑रा नः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    किम् । अ॒ङ्ग । त्वा॒ । म॒घ॒ऽव॒न् । भो॒जम् । आ॒हु॒: । शि॒शी॒हि । मा॒ । शि॒श॒यम् । त्वा॒ । शृ॒णो॒मि॒ ॥ अप्न॑स्वती । मम॑ ।धी: । अ॒स्तु॒ । श॒क्र॒ । व॒सु॒ऽविद॑म् । भग॑म् । इ॒न्द्र॒ । आ । भ॒र॒ । न॒: ॥८९.३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    किमङ्ग त्वा मघवन्भोजमाहुः शिशीहि मा शिशयं त्वा शृणोमि। अप्नस्वती मम धीरस्तु शक्र वसुविदं भगमिन्द्रा भरा नः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    किम् । अङ्ग । त्वा । मघऽवन् । भोजम् । आहु: । शिशीहि । मा । शिशयम् । त्वा । शृणोमि ॥ अप्नस्वती । मम ।धी: । अस्तु । शक्र । वसुऽविदम् । भगम् । इन्द्र । आ । भर । न: ॥८९.३॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 89; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    मनुष्य के कर्तव्य का उपदेश।

    पदार्थ

    (अङ्ग) हे (मघवन्) धनवाले [पुरुष !] (किम्) किस लिये (त्वा) तुझको (भोजम्) पालन करनेवाला (आहुः) वे [विद्वान्] कहते हैं ? (मा) मुझको (शिशीहि) सचेत कर, (त्वा) तुझको (शिशयम्) उद्योगी (शृणोमि) मैं सुनती हूँ। (शक्र) हे शक्तिमान् ! (मम) मेरी (धीः) बुद्धि (अप्नस्वती) कर्मवाली (अस्तु) होवे, (इन्द्र) हे इन्द्र ! [बड़े ऐश्वर्यवाले पुरुष] (नः) हमारे लिये (वसुविदम्) धन पहुँचानेवाला (भगम्) ऐश्वर्य (आ) सब ओर से (भर) भर ॥३॥

    भावार्थ

    कीर्तिमान् प्रधान पुरुष ऐसा प्रयत्न करें कि सब लोग बुद्धिमान् होकर कर्मवीर होवें ॥३॥

    टिप्पणी

    ३−(किम्) किमर्थम् (अङ्ग) सम्बोधने (त्वा) त्वाम् (मघवन्) धनवन् (भोजम्) पालकम् (आहुः) कथयन्ति विद्वांसः (शिशीहि) अ० २०।३७।८। तीक्ष्णीकुरु। सचेतसं कुरु (मा) माम् (शिशयम्) वलिमलितनिभ्यः कयन्। उ० ४।९९। शश प्लुतगतौ-कयन्, अकारस्य इकारः। उद्योगिनम् (त्वा) (शृणोमि) (अप्नस्वती) कर्मवती (मम) (धीः) प्रज्ञा (अस्तु) (शक्र) हे शक्तिमन् (वसुविदम्) धनस्य लम्भकम् (भगम्) ऐश्वर्यम् (इन्द्र) हे परमैश्वर्यवन् पुरुष (आ) समन्तात् (भर) धर (नः) अस्मभ्यम् ॥

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    विषय

    'शिशय' का, न कि 'भोज' का स्मरण

    पदार्थ

    १. हे (मघवन्) = ऐश्वर्यशालिन्। (अङ्ग) = सर्वत्र गतिमय [अगि गतौ] प्रभो! (त्वा) = आपको (किम्) = क्यों (भोजनम्) = सब भोजनों को प्राप्त कराके पालन करनेवाला (आहु:) = कहते हैं। मैं तो भोजनों की प्रार्थना न करके यही चाहता हूँ कि आप (मा) = मुझे (शिशीहि) = तीक्ष्ण बुद्धिवाला कर दें। मैं (त्वा) = आपको (शिशयम्) = बुद्धि को तीन करनेवाले के रूप में (शृणोमि) = सुनता हूँ। २. साथ ही हे (शक्र) = सर्वशक्तिमन् प्रभो! आपकी कृपा से मम धी:-मेरी बुद्धि (अप्नस्वती) = कर्मोंवाली (अस्तु) = हो और हे (इन्द्र) = परमैश्वर्यशालिन् प्रभो! आप (नः) = हमारे लिए (वसुविदम्) = निवास के लिए आवश्यक सब तत्त्वों को प्रास करानेवाले (भगम) = भजनीय धन को (आभर) = सर्वथा प्रास कराइए। वस्तुत: प्रभु बुद्धि देकर मुझे इस योग्य बना दें कि मैं निवास के लिए आवश्यक तत्त्वों को जुटाने में समर्थ हो जाऊँ। मैं बुद्धिवाला होऊँ और मेरी बुद्धि कर्म से युक्त हो।

    भावार्थ

    मैं भोजन की प्रार्थना न करके क्रियायुक्त बुद्धि की याचना करूँ।'हम प्रभु को 'शिशय' के रूप' स्मरण करें, न कि 'भोज' के रूप में।

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    भाषार्थ

    (अङ्ग) हे मेरे आध्यात्मिक-जीवन के अङ्गरूप! (मघवन्) हे सम्पत्तिशाली! आप (भोजम्) भोज हैं, सब के प्रतिपालक हैं—(त्वा) आपके सम्बन्ध में यह (किम्) क्यों (आहुः) लोग कहते हैं? (मा) मुझे भी तो (शिशीहि) कुछ आध्यात्मिक सम्पत्ति दीजिए। (त्वा) आप को (शिशयम्) महादानीरूप में (शृणोमि) मैं सुनता हूँ। (शक्र) हे शक्तिशाली! कृपा कीजिए कि (मम) मेरी (धीः) बुद्धि (अप्नस्वती) कर्मवती हो, अर्थात् मेरे ज्ञान और कर्म में समन्वय हो। (इन्द्र) हे परमेश्वर! (वसुविदम्) सम्पद् रूप आप को प्राप्त करानेवाली (भगम्) भक्ति (नः) हमें (आ भर) प्राप्त कराइए।

    टिप्पणी

    [शिशीही=शिशीतिः दानकर्मा (निरु০ ५.४.२३)। शिशयम्=दातारम्। अप्नस्=कर्म (निघं০ २.१)।]

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    विषय

    राजा परमेश्वर।

    भावार्थ

    हे आत्मन् ! परमेश्वर ! (अङ्ग) हे (मघवन्) ऐश्वर्यवन् ! (त्वाम्) तुझको लोग (भोजम्) सबका पालक, रक्षक (किम् आहुः) क्यों कहते हैं ? इसीलिये कि तू सबकी रक्षा करता है। मैं (त्वा) तुझको (शिशयं) अति तीक्ष्ण, बलवान् (शृणोमि) सुनता हूं। तू (मा) तुझको भी (शिशयं) तीक्ष्ण, सूक्ष्म-बुद्धियुक्त कर। जिससे (मम) मेरी (धीः) धारणावती बुद्धि (अप्नस्वती) श्रेष्ठ कर्म वाली (अस्तु) हो। हे (इन्द्र) ऐश्वर्यवन् ! (नः) हमें, हे (शक्र) शक्तिशालिन् ! (वसुविदं भगम्) ऐश्वर्यप्रद, सेवनयोग्य ऐश्वर्य को (आ भर) प्राप्त करा।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    कृष्णा ऋषिः। इन्दो देवता। त्रिष्टुभः। एकादशर्चं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Indr a Devata

    Meaning

    Indra, mighty soul, dear as breath of life, grand and sublime, don’t they say you are the giver of all pleasure and glory of life? Pray bless me too with the wealth of light and grandeur. I hear you are the all omnificent lord. O Lord Almighty, refine and sharpen my vision and understanding to the efficiency of divine attainment. Indra, pray bring us glory and good fortune full of wealth, power and peace.3. Indra, mighty soul, dear as breath of life, grand and sublime, don’t they say you are the giver of all pleasure and glory of life? Pray bless me too with the wealth of light and grandeur. I hear you are the all omnificent lord. O Lord Almighty, refine and sharpen my vision and understanding to the efficiency of divine attainment. Indra, pray bring us glory and good fortune full of wealth, power and peace.

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    Translation

    O powerful ruling king, why do people call you the guardian ? I hear of you to be swift and quick so you quicken me. Let my intellegence be active and bring us the luck that possesses great wealth.

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    Translation

    O powerful ruling king, why do people call you the guardian ? I hear of you to be swift and quick so you quicken me. Let my intelligence be active and bring us the luck that possesses great wealth.

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    Translation

    O Mighty Lord of destruction and protection, the people invoke Thee for their aid, in their disputes to establish their own rights as just and proper, or while fighting pitched battles and sacrificing their lives in wars. But Thou, O Brave and Courageous Lord, likest to befriend only him, who is ready to make sacrifices and has creative genius in this world.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ३−(किम्) किमर्थम् (अङ्ग) सम्बोधने (त्वा) त्वाम् (मघवन्) धनवन् (भोजम्) पालकम् (आहुः) कथयन्ति विद्वांसः (शिशीहि) अ० २०।३७।८। तीक्ष्णीकुरु। सचेतसं कुरु (मा) माम् (शिशयम्) वलिमलितनिभ्यः कयन्। उ० ४।९९। शश प्लुतगतौ-कयन्, अकारस्य इकारः। उद्योगिनम् (त्वा) (शृणोमि) (अप्नस्वती) कर्मवती (मम) (धीः) प्रज्ञा (अस्तु) (शक्र) हे शक्तिमन् (वसुविदम्) धनस्य लम्भकम् (भगम्) ऐश्वर्यम् (इन्द्र) हे परमैश्वर्यवन् पुरुष (आ) समन्तात् (भर) धर (नः) अस्मभ्यम् ॥

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    बंगाली (2)

    मन्त्र विषय

    মনুষ্যকর্তব্যোপদেশঃ

    भाषार्थ

    (অঙ্গ) হে (মঘবন্) ধনবান্ [পুরুষ !] (কিম্) কি কারণে (ত্বা) তোমাকে (ভোজম্) পালনকর্তা (আহুঃ) বলে? (মা) আমাকে (শিশীহি) অবগত করাও, (ত্বা) তোমাকে (শিশয়ম্) উদ্যোগী হিসেবে (শৃণোমি) আমি শুনছি/শ্রবণ করি। (শক্র) হে শক্তিমান্ ! (মম) আমার (ধীঃ) বুদ্ধি (অপ্নস্বতী) কর্মযুক্ত (অস্তু) হোক, (ইন্দ্র) হে ইন্দ্র ! [মহান ঐশ্বর্যবান্ পুরুষ] (নঃ) আমাদের জন্য (বসুবিদম্) ধন প্রদায়ী (ভগম্) ঐশ্বর্য (আ) সবদিক থেকে (ভর) পূর্ণ করো॥৩॥

    भावार्थ

    কীর্তিমান্ প্রধান পুরুষ এমন প্রচেষ্টা করুক যাতে, সকল মনুষ্য বুদ্ধিমান হয়ে কর্মবীর হয় ॥৩॥

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    भाषार्थ

    (অঙ্গ) হে আমার আধ্যাত্মিক-জীবনের অঙ্গরূপ! (মঘবন্) হে সম্পত্তিশালী! আপনি (ভোজম্) ভোজ, সকলের প্রতিপালক—(ত্বা) আপনার সম্বন্ধে ইহা (কিম্) কেন (আহুঃ) লোকেরা বলে? (মা) আমাকেও তো (শিশীহি) কিছু আধ্যাত্মিক সম্পত্তি প্রদান করুন। (ত্বা) আপনাকে (শিশয়ম্) মহাদানীরূপে (শৃণোমি) আমি শুনেছি। (শক্র) হে শক্তিশালী! কৃপা করুন যাতে (মম) আমার (ধীঃ) বুদ্ধি (অপ্নস্বতী) কর্মবতী হয়, অর্থাৎ আমার জ্ঞান এবং কর্মের মধ্যে সমন্বয় হয়। (ইন্দ্র) হে পরমেশ্বর! (বসুবিদম্) সম্পদ্ রূপ আপনাকে প্রাপ্তিতে সহায়ক (ভগম্) ভক্তি (নঃ) আমাদের (আ ভর) প্রাপ্ত করান।

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