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अथर्ववेद के काण्ड - 20 के सूक्त 89 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 89/ मन्त्र 4
    ऋषिः - कृष्णः देवता - इन्द्रः छन्दः - त्रिष्टुप् सूक्तम् - सूक्त-८९
    44

    त्वां जना॑ ममस॒त्येष्वि॑न्द्र सन्तस्था॒ना वि ह्व॑यन्ते समी॒के। अत्रा॒ युजं॑ कृणुते॒ यो ह॒विष्मा॑न्नासुन्वता स॒ख्यं व॑ष्टि॒ शूरः॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    त्वाम् । जना॑: । म॒म॒ऽस॒त्येषु॑ । इ॒न्द्र॒ । स॒म्ऽत॒स्था॒ना: । वि । ह्व॒य॒न्ते॒ । स॒म्ऽई॒के ॥ अत्र॑ । युज॑म् । कृ॒णु॒ते॒ । य: । ह॒विष्मा॑न् । न । असु॑न्वत । स॒ख्यम् । व॒ष्टि॒ । शूर॑: ॥८९.४॥


    स्वर रहित मन्त्र

    त्वां जना ममसत्येष्विन्द्र सन्तस्थाना वि ह्वयन्ते समीके। अत्रा युजं कृणुते यो हविष्मान्नासुन्वता सख्यं वष्टि शूरः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    त्वाम् । जना: । ममऽसत्येषु । इन्द्र । सम्ऽतस्थाना: । वि । ह्वयन्ते । सम्ऽईके ॥ अत्र । युजम् । कृणुते । य: । हविष्मान् । न । असुन्वत । सख्यम् । वष्टि । शूर: ॥८९.४॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 89; मन्त्र » 4
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    मनुष्य के कर्तव्य का उपदेश।

    पदार्थ

    (इन्द्र) हे इन्द्र ! [बड़े ऐश्वर्यवाले पुरुष] (ममसत्येषु) अपने-अपने उद्देश्य को सत्य माननेवाले सङ्ग्रामों के बीच (समीके) भिड़ के (सतस्थानाः) सजकर खड़े हुए (जनाः) लोग (त्वाम्) तुझको (वि) विविध प्रकार (ह्वयन्ते) पुकारते हैं। (अत्र) यहाँ पर (शूरः) शूर पुरुष [उस मनुष्य को] (युजम्) साथी (कृणुते) बनाता है, (यः) जो (हविष्मान्) भक्तिवाला है, और (असुन्वता) तत्त्व रस के न निकालनेवाले के साथ (सख्यम्) मित्रता (न) नहीं (वष्टि) चाहता है ॥४॥

    भावार्थ

    जहाँ पर दो पक्षवाले आपस में अपने-अपने उद्देश्य के लिये लड़ते हों, बुद्धिमान् पुरुष मध्यस्थ होकर धर्म्मात्मा का सहाय करें ॥४॥

    टिप्पणी

    पदपाठ के (असुन्वत) पद में भूल दीखती है, ऋग्वेद का (असुन्वता) पदपाठ संहिता के अनुकूल है, उसीके अनुसार हमने अर्थ किया है ॥ ४−(त्वाम्) (जनाः) (ममसत्येषु) ममप्रयोजनं सत्यम्-इति ब्रुवाणा योद्धारः सन्ति यत्र। ममसत्यं संग्रामनाम-निघ० २।१७। सङ्ग्रामेषु (इन्द्र) हे परमैश्वर्यवन् पुरुष (सन्तस्थानाः) तिष्ठतेः-कानच्। सम्यक् तिष्ठन्तः (वि) विविधम् (ह्वयन्ते) आह्वयन्ति (समीके) अलीकादयश्च। उ० ४।२। सम्+इण् गतौ-ईकन्। धातुलोपः। सङ्गमे। संग्रामे-निघ० २।१७। (अत्र) अस्मिन् विषये (युजम्) सखायम् (कृणुते) कुरुते (यः) पुरुषः (हविष्मान्) भक्तिमान् (न) निषेधे (असुन्वत) असुन्वता-ऋग्वेदपदपाठो यथा। तत्त्वरसं निष्पादयता (सख्यम्) सखित्वम् (वष्टि) कामयते (शूरः) निर्भयः ॥

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    विषय

    हविष्मान्, न कि असुन्वत्

    पदार्थ

    १. हे (इन्द्र) = शत्रुओं का संहार करनेवाले प्रभो! (समीके) = संग्राम में (सन्तस्थाना:) = सम्यक् स्थित हुए-हुए (जन:) = लोग (मम सत्येषु) = 'मेरा पक्ष सत्य है, मेरा पक्ष सत्य है' इसप्रकार के विचारवाले संग्रामों में (त्वाम्) = आपको (विट्ठयन्ते) = पुकारते हैं। दोनों ही पक्ष अपने को सत्य पर आरूढ़ समझ रहे होते हैं। दोनों में कोई भी अपने को गलती पर नहीं समझता। २. (अत्र) = इसप्रकार के विचारवाले इन संग्रामों के उपस्थित होने पर (य:) = जो (हविष्मान्) = हविवाला होता है-त्यागपूर्वक अदन करनेवाला होता है, वही उस प्रभु को (युजं कृणुते) = अपना साथी बना पाता है। (शूर:) = सब शत्रुओं को शीर्ण करनेवाले प्रभु (असुन्वता) = अयज्ञशील पुरुष के साथ (सख्यम्) = मित्रता को न वष्टि नहीं चाहते हैं। त्याग की वृत्ति ही मनुष्य को असत्य से दूर करती है, प्रभु इस सत्य के पक्षबाले को ही विजयी करते हैं। संग्रामों में विजय उन्हीं की होती है, जो (हविष्मान्) = बनते हैं। जिस जाति में त्याग की भावना नहीं होती, वह पराजित ही होती है।

    भावार्थ

    हम हविष्मान् बनें, हम तभी प्रभु की मित्रता में विजयी बनेंगे।

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    भाषार्थ

    (इन्द्र) हे परमेश्वर! (ममसत्येषु) “मेरा पक्ष सत्य है, मेरा पक्ष सत्य है”—इन दुराग्रहों में, (जनाः) कट्टर-पन्थी लोग, (संतस्थानाः) संस्थाओं के रूप में खड़े हो जाते हैं, और इन (समीके) वाग्-युद्धों में सहायतार्थ (त्वाम्) आपको (वि) विशेषरूप में (ह्वयन्ते) सहायतार्थ पुकारते हैं, परन्तु (अत्र) इस जगत् में वह ही (युजम्) आप को अपना सहायक-साथी (आ कृणुते) बना लेता है, (यः) जोकि (हविष्मान्) आप के लिए आत्मसमर्पणरूपी हविवाला होता है। (शूरः) आप शूर (असुन्वता) भक्तिरस-विहीन के साथ (सख्यम्) मैत्री (न वष्टि) नहीं चाहते।

    टिप्पणी

    [ममसत्यम्=संग्राम (निघं০ २.१७)। समीके=संग्राम (२.१७)।]

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    विषय

    राजा परमेश्वर।

    भावार्थ

    हे (इन्द्र) परमेश्वर (जनाः) लोग (मम सत्येषु) मेरा पक्ष सच्चा, मेरा पक्ष सच्चा है इस प्रकार अपने पक्ष को दृढ़ करने के कलहों में भी (त्वा वि ह्वयन्ते) तुझे विविध नामों से याद किया करते हैं। और (समीके) संग्राम में (संतस्थानाः) अच्छी प्रकार स्थिर होकर युद्ध करने वाले अथवा (संतस्थानाः) संग्राम में अपने जीवनों को समाप्त कर देने वाले भी (वि ह्वयन्ते) विविध प्रकारों से तुझे पुकारते हैं। पर तू (अत्र) इस लोक में (यः) जो (हविष्मान्) सत्य ज्ञानवान् है उसी को अपना (युजं) साथी बनाता है। और तू (शूरः) स्वयं शूर होकर (आसुन्वता) अपना सवन या चिन्तन करने वाले के साथ (सख्यं वष्टि) मित्रता करना चाहता है। इसी प्रकार हे राजन् ! लोग तुझको अपना अपना पक्ष सत्य बतलाने के अवसरों पर भी कलहों में बुलाते हैं। युद्धविजयी भी तेरा नाम लेते हैं। पर जो (हविष्मान्) मन्त्रादि से समृद्धिमान् उपाय भेट देने में समर्थ है उसी को अपना साथी बनाता है और (आसुन्वता) अभिषेक करने वाले राष्ट्र के प्रति सख्य करना चाहता है।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    कृष्णा ऋषिः। इन्दो देवता। त्रिष्टुभः। एकादशर्चं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Indr a Devata

    Meaning

    Indra, people invoke you for help in contests of righteousness and call upon you while they march to the battle. Here too, however, he alone wins his help who offers faith and yajna, because the mighty one does not love, nor recognise, the friendship of the selfish and the non-performer of Soma-yajna. Indra, people invoke you for help in contests of righteousness and call upon you while they march to the battle. Here too, however, he alone wins his help who offers faith and yajna, because the mighty one does not love, nor recognise, the friendship of the selfish and the non-performer of Soma-yajna.

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    Translation

    O mighty ruler, the people standing in battle invoke you in their fray wherein both the parties claim to be right. He who brings gift makes him comrade as the bold one does not make friend the man who does not press Soma-juice for Yajna.

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    Translation

    O mighty ruler, the people standing in battle invoke you in their fray wherein both the parties claim to be right. He who brings gift makes him comrade as the bold one does not make friend the man who does not press Soma-juice for Yajna.

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    Translation

    The big landlord, with plenty of food-grains, who offers to this king, the energetic, brave young men like the mobile wealth of cattle, horses etc., in ample quantity, drives away the violent foes, equipped with deadly weapons, from him and completely destroys .the besieging enemy, like the day’s dawn effacing the darkness of the night.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    पदपाठ के (असुन्वत) पद में भूल दीखती है, ऋग्वेद का (असुन्वता) पदपाठ संहिता के अनुकूल है, उसीके अनुसार हमने अर्थ किया है ॥ ४−(त्वाम्) (जनाः) (ममसत्येषु) ममप्रयोजनं सत्यम्-इति ब्रुवाणा योद्धारः सन्ति यत्र। ममसत्यं संग्रामनाम-निघ० २।१७। सङ्ग्रामेषु (इन्द्र) हे परमैश्वर्यवन् पुरुष (सन्तस्थानाः) तिष्ठतेः-कानच्। सम्यक् तिष्ठन्तः (वि) विविधम् (ह्वयन्ते) आह्वयन्ति (समीके) अलीकादयश्च। उ० ४।२। सम्+इण् गतौ-ईकन्। धातुलोपः। सङ्गमे। संग्रामे-निघ० २।१७। (अत्र) अस्मिन् विषये (युजम्) सखायम् (कृणुते) कुरुते (यः) पुरुषः (हविष्मान्) भक्तिमान् (न) निषेधे (असुन्वत) असुन्वता-ऋग्वेदपदपाठो यथा। तत्त्वरसं निष्पादयता (सख्यम्) सखित्वम् (वष्टि) कामयते (शूरः) निर्भयः ॥

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    बंगाली (2)

    मन्त्र विषय

    মনুষ্যকর্তব্যোপদেশঃ

    भाषार्थ

    (ইন্দ্র) হে ইন্দ্র ! [পরম ঐশ্বর্যবান্ পুরুষ] (মমসত্যেষু) নিজ-নিজ উদ্দেশ্যকে সত্য মান্যকারী সংগ্রামে (সমীকে) পরস্পরের সম্মুখে (সতস্থানাঃ) সম্যক্ স্থিত (জনাঃ) মনুষ্য (ত্বাম্) তোমাকে (বি) বিবিধ প্রকারে (হ্বয়ন্তে) আহ্বান করে। (অত্র) এখানে (শূরঃ) বীর পুরুষ [সেই সকল মনুষ্যকে] (যুজম্) সাথী (কৃণুতে) করে, (যঃ) যারা (হবিষ্মান্) ভক্তিযুক্ত এবং (অসুন্বতা) তত্ত্বরস নিষ্পাদনে রত নয় তাদের সহিত (সখ্যম্) মিত্রতা (ন) না (বষ্টি) কামনা করে ॥৪॥

    भावार्थ

    যেখানে দুই পক্ষ পরস্পরের সাথে নিজ-নিজ উদ্দেশ্যের জন্য যুদ্ধ করে, বুদ্ধিমান্ পুরুষ মধ্যস্থ হয়ে ধর্ম্মাত্মার সহায়তা করে/করুক ॥৪।। পদপাঠের (অসুন্বত) পদে ভুল দৃশ্যমান, ঋগ্বেদের (অসুন্বতা) পদপাঠ সংহিতার অনুকূল, সেই অনুসারে আমি অর্থ করেছি ॥

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    भाषार्थ

    (ইন্দ্র) হে পরমেশ্বর! (মমসত্যেষু) “আমার পক্ষ সত্য, আমার পক্ষ সত্য”—এই দুরাগ্রহে, (জনাঃ) কট্টর-পন্থীরা, (সন্তস্থানাঃ) সংস্থার রূপে দৃঢ় হয়, এবং এই (সমীকে) বাগ্-যুদ্ধে সহায়তার্থে (ত্বাম্) আপনাকে (বি) বিশেষরূপে (হ্বয়ন্তে) সহায়তার্থে আহ্বান করে, কিন্তু (অত্র) এই জগতে সেই (যুজম্) আপনাকে নিজের সহায়ক-সাথী (আ কৃণুতে) করে, (যঃ) যে (হবিষ্মান্) আপনার জন্য আত্মসমর্পণরূপী হবিরূপ/হবিযুক্ত হয়। (শূরঃ) আপনি বীর (অসুন্বতা) ভক্তিরস-বিহীনের সাথে (সখ্যম্) মৈত্রী (ন বষ্টি) কামনা করেন না।

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