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अथर्ववेद के काण्ड - 3 के सूक्त 6 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 6/ मन्त्र 4
    ऋषिः - जगद्बीजं पुरुषः देवता - अश्वत्थः (वनस्पतिः) छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - शत्रुनाशन सूक्त
    45

    यः सह॑मान॒श्चर॑सि सासहा॒न इ॑व ऋष॒भः। तेना॑श्वत्थ॒ त्वया॑ व॒यं स॒पत्ना॑न्त्सहिषीमहि ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    य: । सह॑मान: । चर॑सि । स॒स॒हा॒न:ऽइ॑व । ऋ॒ष॒भ: । तेन॑ । अ॒श्व॒त्थ॒ । त्वया॑ । व॒यम् । स॒ऽपत्ना॑न् । स॒हि॒षी॒म॒हि॒ ॥६.४॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यः सहमानश्चरसि सासहान इव ऋषभः। तेनाश्वत्थ त्वया वयं सपत्नान्त्सहिषीमहि ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    य: । सहमान: । चरसि । ससहान:ऽइव । ऋषभ: । तेन । अश्वत्थ । त्वया । वयम् । सऽपत्नान् । सहिषीमहि ॥६.४॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 3; सूक्त » 6; मन्त्र » 4
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    उत्साह बढ़ाने के लिये उपदेश।

    पदार्थ

    (अश्वत्थ) हे शूरों में ठहरनेवाले राजन् ! [वा पीपलवृक्ष] ! (यः) जो तू (सहमानः) [वैरियों को] दबाता हुआ, (सासहानः) महाबली (ऋषभः इव) श्रेष्ठ पुरुष वा बलीवर्द वा ऋषभ औषध के समान (चरसि) विचरता है। (तेन त्वया) उस तेरे साथ (वयम्) हम (सपत्नान्) वैरियों को (सहिषीमहि) हरा देवें ॥४॥

    भावार्थ

    प्रजागण शूरवीर नीतिनिपुण राजा और सद्वैद्य के सहाय से शत्रुओं को वश में करते रहें। ऋषभ औषध विशेष है। इसको शब्दकल्पद्रुम कोष में मीठा, शीतल, रक्त-पित्त विरेक नाशक, वीर्य-श्लेष्मकारी और दाहक्षय ज्वरहारी आदि लिखा है ॥४॥

    टिप्पणी

    ४−(यः)। यस्त्वम्। (सहमानः)। सह अभिभवे-शानच्। शत्रून् अभिभवन्। (चरसि)। गच्छसि। वर्तसे। (ससहानः)। सहेर्यङ्लुगन्तात् लटः शानच्। संहितायां दीर्घः। अत्यर्थमभिभवन्। (इव)। यथा। (ऋषभः)। ऋषिवृषिभ्यां कित्। उ० ३।१२३। इति ऋष गतौ। दर्शने च-अभक्। ऋषिर्दर्शनात्-निरु० २।११। श्रेष्ठपुरुषो बलीवर्दो वा। औषधविशेषो वा। (तेन)। उक्तलक्षणेन। (त्वया)। अश्वत्थेन। (वयम्)। (सपत्नान्)। शत्रून्। (सहिषीमहि)। सहेराशीर्लिङि रूपम्। सहामहै। अभिभूयास्म ॥

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    विषय

    सपत्न-पराभव

    पदार्थ

    १. हे परमात्मन्! (यः) = जो आप (सहमान:) = शत्रुओं का पराभव करते हुए (चरसि) = गति करते हैं, वे आप (सासहान:) = विरोधियों का खूब ही पराभव करते हुए (ऋषभः इव) = ऋषभ के समान हैं। जैसे एक शक्तिशाली ऋषभ मार्ग में आये हुए विनों को परे हटाता हुआ आगे बढ़ता है। उसी प्रकार प्रभु उपासक के विरोधियों को विनष्ट करते हुए उसे आगे बढ़ाते हैं। २. हे (अश्वस्थ) = कर्मशील पुरुषों में स्थित होनेवाले प्रभो! (तेन त्वया) = उस आपके द्वारा-आपको साथी बनाकर (वयम्) = हम (सपत्नान्) = रोग व वासनारूप शत्रुओं को (सहिषीमहि) = पराभूत करनेवाले हों।

    भावार्थ

    प्रभु को साथी बनाकर हम काम-क्रोध आदि शत्रुओं का पराभव करनेवाले हों।

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    भाषार्थ

    (अश्वत्थ) हे अश्वत्थ सदृश [पुमान्-पुरुष!] (सहमानः य:) शत्रुओं का पराभव करनेवाला जो तु, (सासहानः) पराभव करनेवाले (ऋषभः इव) ऋषभ या पुरुषर्षभ की तरह (चरसि) विचरता है, (तेन त्वया) उस तुझ द्वारा (वयम्) हम (सपत्नान्) शत्रुओं का (सहीषीमहि) पराभव करें।

    टिप्पणी

    [मन्त्र में अश्वत्थ पद निज अर्थ में प्रयुक्त नहीं हुआ, अपितु वह निज उपमेय "पुमान्-पुरुष" का द्योतक है । इसीलिए इसे ऋषभ के सदृश स्वच्छन्द विचरनेवाला कहा है, तथा शत्रुओं का पराभव करनेवाला कहा है। सासहान:= सह यङ्लुक्+ शानच्; सह = षह मर्षणे (चुरादिः)।

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    विषय

    वीर सैनिकों के कर्त्तव्य ।

    भावार्थ

    हे (अश्वत्थ) वीर ! अश्वारोहिन् ! (यः) जो तू (ऋषभ इव) ऋषभ = महावृषभ, बड़े सांड या दर्शनशील, दूरदर्शी पुरुष के समान (सहमानः) सब संकटों को धीरता से सहन करता और (ससहानः) अपने विरोधियों को वार २ पराजित करता हुआ (चरसि) विचरण करने में समर्थ है (तेन) इस कारण (त्वया) तुझ वीर पुरुष से हम राजागण (सपत्नान्) अपने विरोधियों को (सहिषीमहि) पराजित करें ।

    टिप्पणी

    (प्र०) ‘चरति’ इति सायणाभिमतः पैप्प० सं । (द्वि०) ‘सा सहानैव’ (च०) ‘सं विषीवहि’ इति पैप्प० सं० । (द्वि०) ‘इवर्षभः’ इति क्वचित् ।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    जगद्बीजं पुरुष ऋषिः । वनस्पतिरश्वत्थो देवता । अरिक्षयाय अश्वत्थदेवस्तुतिः । १-८ अनुष्टुभः । अष्टर्चं सूक्तम् ॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    The Brave

    Meaning

    With you, who move freely challenging your opponents like a ferocious bull, may we, O ashvattha, challenge and defeat all our adversaries.

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    Translation

    As you go subduing like a victorious bull, as such with you, O Ašvattha, may we subdue our rivals.

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    Translation

    Let us overcome our diseases through the use of this Ashvattha as the victorious bull or the victorious mighty man displays its or his surmounting might.

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    Translation

    O valiant general, just as thou, like a prudent person, enduring all trials and tribulations patiently, defeated thy opponents again and again, displaying thy surpassing might, so should we, with thee, overcome our enemies!

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ४−(यः)। यस्त्वम्। (सहमानः)। सह अभिभवे-शानच्। शत्रून् अभिभवन्। (चरसि)। गच्छसि। वर्तसे। (ससहानः)। सहेर्यङ्लुगन्तात् लटः शानच्। संहितायां दीर्घः। अत्यर्थमभिभवन्। (इव)। यथा। (ऋषभः)। ऋषिवृषिभ्यां कित्। उ० ३।१२३। इति ऋष गतौ। दर्शने च-अभक्। ऋषिर्दर्शनात्-निरु० २।११। श्रेष्ठपुरुषो बलीवर्दो वा। औषधविशेषो वा। (तेन)। उक्तलक्षणेन। (त्वया)। अश्वत्थेन। (वयम्)। (सपत्नान्)। शत्रून्। (सहिषीमहि)। सहेराशीर्लिङि रूपम्। सहामहै। अभिभूयास्म ॥

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    बंगाली (2)

    भाषार्थ

    (অশ্বত্থ) হে অশ্বত্থ সদৃশ [পুমান-পুরুষ !] (সহমানঃ যঃ) শত্রুদের পরাজিতকারী যে তুমি, (সাসহানঃ) পরাজিতকারী (ঋষভঃ ইব) ঋষভ বা পুরুষর্ষভ-এর সদৃশ (চরসি) বিচরণ করো, (তেন ত্বয়া) সেই তোমার দ্বারা (বয়ম্) আমরা (সপত্নান্) শত্রুদের (সহিষীমহি) পরাজিত করি।

    टिप्पणी

    [মন্ত্রে অশ্বত্থ পদ নিজ অর্থে প্রযুক্ত হয়নি, অপিতু তা নিজ উপমেয় "পুমান-পুরুষ" এর দ্যোতক। এইজন্য ইহাকে ঋষভের সদৃশ স্বচ্ছন্দ বিচরণকারী বলা হয়েছে, এবং শত্রুদের পরাজিতকারী বলা হয়েছে। সাসহানঃ= সহ যঙ্লুক্ + শানচ্, সহ = ষহ মর্ষণে (চুরাদিঃ)।]

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    मन्त्र विषय

    উৎসাহবর্ধনায়োপদেশঃ

    भाषार्थ

    (অশ্বত্থ) হে বীরদের মধ্যে স্থিত রাজন্ ! [বা অশ্বত্থবৃক্ষ] ! (যঃ) যে তুমি (সহমানঃ) [শত্রুদের] দমন করে, (সাসহানঃ) মহাবলী (ঋষভঃ ইব) শ্রেষ্ঠ পুরুষ বা বলীবর্দ বা ঋষভ ঔষধির সমান (চরসি) বিচরণ করো। (তেন ত্বয়া) সেই তোমার সাথে (বয়ম্) আমরা (সপত্নান্) শত্রুদের (সহিষীমহি) পরাজিত করি ॥৪॥

    भावार्थ

    প্রজাগণ বীর নীতিনিপুণ রাজা এবং সদ্বৈদ্য/পূর্ণ বিদ্বান এর সহায়তায় শত্রুদের বশবর্তী করতে থাকুক। ঋষভ ঔষধ বিশেষ। ইহাকে শব্দকল্পদ্রুম কোষে মিষ্টি, শীতল, রক্ত-পিত্ত-বিকার নাশক, বীর্য-শ্লেষ্মকারী এবং দাহক্ষয় জ্বরহারী প্রভৃতি লেখা আছে॥৪॥

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