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अथर्ववेद के काण्ड - 3 के सूक्त 6 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 6/ मन्त्र 7
    ऋषिः - जगद्बीजं पुरुषः देवता - अश्वत्थः (वनस्पतिः) छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - शत्रुनाशन सूक्त
    47

    तेऽध॒राञ्चः॒ प्र प्ल॑वन्तां छि॒न्ना नौरि॑व॒ बन्ध॑नात्। न वै॑बा॒धप्र॑णुत्तानां॒ पुन॑रस्ति नि॒वर्त॑नम् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ते । अ॒ध॒राञ्च॑: । प्र । प्ल॒व॒न्ता॒म् । छि॒न्ना । नौ:ऽइ॑व । बन्ध॑नात् । न । वै॒बा॒धऽप्र॑नुत्तानाम् । पुन॑: । अ॒स्ति॒ । नि॒ऽवर्त॑नम् ॥६.७॥


    स्वर रहित मन्त्र

    तेऽधराञ्चः प्र प्लवन्तां छिन्ना नौरिव बन्धनात्। न वैबाधप्रणुत्तानां पुनरस्ति निवर्तनम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    ते । अधराञ्च: । प्र । प्लवन्ताम् । छिन्ना । नौ:ऽइव । बन्धनात् । न । वैबाधऽप्रनुत्तानाम् । पुन: । अस्ति । निऽवर्तनम् ॥६.७॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 3; सूक्त » 6; मन्त्र » 7
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    उत्साह बढ़ाने के लिये उपदेश।

    पदार्थ

    (ते) वे (अधराञ्चः) अधोगतिवाले लोग वा रोग (बन्धनात्) बन्धन से (छिन्ना) छूटी हुई (नौः इव) नाव के समान (प्र प्लवन्ताम्) बहते चले जावें जिससे (वैबाधप्रणुतानाम्) विविध बाधा डालनेवालों में पड़े हुए लोगों का (पुनः) फिर (निवर्तनम्) लौटना (न) नहीं (अस्ति) हो ॥७॥

    भावार्थ

    महादुष्ट रोग वा दुराचारियों के हटाने के लिए कठिन उपाय करने चाहियें, क्योंकि कोमलता से उनका सुधार नहीं हो सकता ॥७॥

    टिप्पणी

    ७−(ते)। शत्रवः। (अधराञ्चः)। अधर+अञ्चतेः। क्विन्। अधोगतिं प्राप्ताः। (प्रप्लवन्ताम्)। प्लुङ्गतौ। प्रवाहेण सह गच्छन्तु। न कदाचित् पारं प्राप्नुवन्तु। (छिन्ना)। भिन्ना। वियुक्ता। (नौः)। ग्लानुदिभ्यां डौः। उ० २।६४। इति णुद प्रेरणे-डौ। जलतरणसाधनम्। तरणिः। बन्धनात्। बन्ध-ल्युट्। रज्ज्वाः सकाशात्। (न)। निषेधे। (वैबाधप्रणुत्तानाम्)। वैबाधो यथा मन्त्रे २। प्र+णुद प्रेरणे-क्त, तस्य नः। वैबाधेषु विविधबाधकेषु प्रणुत्तानां प्रेरितानां क्षिप्तानाम्। (पुनः)। पश्चात्। (अस्ति)। भवति। (निवर्त्तनम्)। नि+वृत-ल्युट् निवृत्य आगमनम् ॥

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    विषय

    शत्रुओं का सदा के लिए संहार

    पदार्थ

    १. (बन्धनात्) = बन्धन-रजु से (छिन्ना नौः इव) = छिन्न हुई-हुई नौका के समान (ते) = वे मेरे शत्रु (अधराञ्चः) = नीचे की ओर गति करनेवाले होते हुए (प्र प्लवन्ताम्) = बहते जाएँ। मेरे शत्रु समुद्र में डूब मरें। प्रभु उपासन से मेरा शत्रुओं के द्वारा किया बन्धन छिन्न होता जाए-ये शत्रु मुझसे दूर होते जाएँ। २. (वैबाधप्रमुत्तानाम्) = विशेषरूप से पीड़ित करनेवाले इन्द्र से परे धकेले हुए इन राक्षसी-भावों का (पुन:) = फिर (निवर्तनम्) = मेरे समीप लौटकर आना (न अस्ति) = नहीं होता।

    भावार्थ

    मैं प्रभु का उपासक बनें। वे मेरे शत्रुओं को छिन कर देंगे।

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    भाषार्थ

    (ते) वे शत्रु (अधराञ्चः) नीचे की ओर (प्र प्लवन्ताम्) शीघ्रता से प्रवाहित हो जाएं, (इव) जैसे (बन्धनात्) वन्धन से (छिन्ना) कटी (नौः) नौका [शीघ्रगामिनी नदी में शीघ्रता से प्रवाहित हो जाती है]। वैवाध=वैबाध, प्रणुत्तानाम्) विविध बाधनाओं से धकेले गयों का (पुनः) फिर (निवर्तनम्) लौट आना (न अस्ति) नहीं होता है।

    टिप्पणी

    [प्रजा के शत्रु, जो कि विविध बाधाओं१ के कारण स्वराष्ट्र से प्रजा द्वारा धकेल दिये जाते हैं, उनका राष्ट्र में पुनरागमन नहीं होता, क्योंकि वे अधरगतिवाले होते हैं। अधराञ्चः पद द्विविधार्थक हैं। सायणाचार्य ने "वैबाध" का अर्थ खदिरोत्पन्न "अश्वत्थ" किया है, जोकि अविश्वसनीय है ।] [१. जो शासक प्रजा के कार्यों में बाधाएं उपस्थित करते हैं, वे प्रजा के शत्रु हैं, अतः प्रजा द्वारा निज राष्ट्र से धकेल दिये जाते हैं।]

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    विषय

    वीर सैनिकों के कर्त्तव्य ।

    भावार्थ

    (ते) वे मेरे शत्रुगण (अधराञ्चः) नीचे गिरे हुए (बन्धनात्) बांधने हारी रज्जु के बंधन से (छिन्ना) कटी हुई (नौः इव) नाव के समान (प्र प्लवन्ताम्) भंवर में पड़ कर बह जाये और डूब जाये । (वैबाधप्रणुत्तानां) नाना प्रकार की पीड़ाओं से विनष्ट हुए उच्छिन्न शत्रुओं का (पुनः) फिर (निवर्त्तनम्) लौट कर आना (न अस्ति) सम्भव नहीं ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    जगद्बीजं पुरुष ऋषिः । वनस्पतिरश्वत्थो देवता । अरिक्षयाय अश्वत्थदेवस्तुतिः । १-८ अनुष्टुभः । अष्टर्चं सूक्तम् ॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    The Brave

    Meaning

    Let them, fallen and down, drift and drown like a boat cut off from the moorings. For those who are caught up in deadly snares, there is no return.

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    Translation

    May they drift down-wards like a boat cut off from its mooring. There is no come-back for those who have been thrown out by the splitter.

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    Translation

    Let our diseases drift down-ward like a boat separated from the rope fastening it as there is no Possibility of returning back of them which are completely uprooted.

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    Translation

    Let the enemies drift downward like a boat torn from the rope that fastened it. There is no turning back for the enemies who have been destroyed and scattered through afflictions.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ७−(ते)। शत्रवः। (अधराञ्चः)। अधर+अञ्चतेः। क्विन्। अधोगतिं प्राप्ताः। (प्रप्लवन्ताम्)। प्लुङ्गतौ। प्रवाहेण सह गच्छन्तु। न कदाचित् पारं प्राप्नुवन्तु। (छिन्ना)। भिन्ना। वियुक्ता। (नौः)। ग्लानुदिभ्यां डौः। उ० २।६४। इति णुद प्रेरणे-डौ। जलतरणसाधनम्। तरणिः। बन्धनात्। बन्ध-ल्युट्। रज्ज्वाः सकाशात्। (न)। निषेधे। (वैबाधप्रणुत्तानाम्)। वैबाधो यथा मन्त्रे २। प्र+णुद प्रेरणे-क्त, तस्य नः। वैबाधेषु विविधबाधकेषु प्रणुत्तानां प्रेरितानां क्षिप्तानाम्। (पुनः)। पश्चात्। (अस्ति)। भवति। (निवर्त्तनम्)। नि+वृत-ल्युट् निवृत्य आगमनम् ॥

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    बंगाली (2)

    भाषार्थ

    (তে) সেই শত্রু (অধরাঞ্চঃ) নীচের দিকে (প্র প্লবন্তাম্) শীঘ্রই প্রবাহিত হয়ে যাক, (ইব) যেভাবে (বন্ধনাৎ) বন্ধন থেকে (ছিন্না) ছিন্ন (নৌঃ) নৌকা [শীঘ্রগামী নদীতে শীঘ্র প্রবাহিত হয়ে যায়।] (বৈবাধ= বৈবাধ, প্রণুত্তানাম্) বিবিধ প্রকারে ধাক্কা দ্বারা প্রেরিত-এর (পুনঃ) পুনরায় (নিবর্তনম্) ফিরে আসা (ন অস্তি) হয় না।

    टिप्पणी

    [প্রজাদের শত্রু, যে বিবিধ বাধার১ কারণে প্রজাদের দ্বারা ধাক্কা খায়, তাঁর রাষ্ট্রে পুনরাগমন হয় না, কেননা সে অধরগতির লোক। অধরাঞ্চঃ পদ হলো দ্বিবিধার্থক। সায়ণাচার্য "বৈবাধ" এর অর্থ খদিরোৎপন্ন "অশ্বত্থ" করেছে, যা যুক্তিহীন।] [১. যে শাসক প্রজাদের কার্যে বাধা উপস্থিত করে, সে প্রজার শত্রু হয়, অতঃ প্রজা দ্বারা নিজ রাষ্ট্র থেকে বের করে দেওয়া হয়।]

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    मन्त्र विषय

    উৎসাহবর্ধনায়োপদেশঃ

    भाषार्थ

    (তে) সেই (অধরাঞ্চঃ) অধোগতি প্রাপ্ত মনুষ্য বা রোগ (বন্ধনাৎ) বন্ধন থেকে (ছিন্না) ছিন্ন (নৌঃ ইব) নৌকার সমান (প্র প্লবন্তাম্) বাহিত হয়ে যাক যাতে (বৈবাধপ্রণুতানাম্) বিবিধ বাধাদায়ক লোকেদের (পুনঃ) পুনরায় (নিবর্তনম্) ফিরে আসা/আগমন (ন) না (অস্তি) হয়/হোক ॥৭॥

    भावार्थ

    মহাদুষ্ট রোগ বা দুরাচারীদের দূর করার জন্য কঠিন উপায় করা উচিত, কারণ কোমলতার মাধ্যমে তাঁদের সংশোধন হতে পারে না ॥৭॥

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