अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 40/ मन्त्र 2
ये द॑क्षिण॒तो जुह्व॑ति जातवेदो॒ दक्षि॑णाया दि॒शोऽभि॒दास॑न्त्य॒स्मान्। य॒ममृ॒त्वा ते परा॑ञ्चो व्यथन्तां प्र॒त्यगे॑नान् प्रतिस॒रेण॑ हन्मि ॥
स्वर सहित पद पाठये । द॒क्षि॒ण॒त: । जुह्व॑ति । जा॒त॒ऽवे॒द॒: । दक्षि॑णाया: । दि॒श: । अ॒भि॒ऽदास॑न्ति । अ॒स्मान् । य॒मम् । ऋ॒त्वा । ते॒ । परा॑ञ्च: । व्य॒थ॒न्ता॒म् । प्र॒त्यक् । ए॒ना॒न् । प्र॒ति॒ऽस॒रेण॑ । ह॒न्मि॒ ॥४०.२॥
स्वर रहित मन्त्र
ये दक्षिणतो जुह्वति जातवेदो दक्षिणाया दिशोऽभिदासन्त्यस्मान्। यममृत्वा ते पराञ्चो व्यथन्तां प्रत्यगेनान् प्रतिसरेण हन्मि ॥
स्वर रहित पद पाठये । दक्षिणत: । जुह्वति । जातऽवेद: । दक्षिणाया: । दिश: । अभिऽदासन्ति । अस्मान् । यमम् । ऋत्वा । ते । पराञ्च: । व्यथन्ताम् । प्रत्यक् । एनान् । प्रतिऽसरेण । हन्मि ॥४०.२॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
शत्रु के नाश करने का उपदेश।
पदार्थ
(जातवेदः) हे ज्ञानवान् परमेश्वर ! (ये) जो लोग (दक्षिणतः) दाहिनी ओर में (दक्षिणायाः) दक्षिण वा दाहिनी (दिशः) दिशा से (अस्मान्) हमको (जुह्वति) खाते और (अभिदासन्ति) चढ़ाई करते हैं। (ते) वे (यमम्) [तुझ] धर्मराज न्यायकारी को (ऋत्वा) पाकर... म० १ ॥२॥
टिप्पणी
२−(दक्षिणतः) अ० ४।३२।७। दक्षिणहस्तदिशि (दक्षिणायाः) अ० ३।२६।२। दक्षिणस्याः। दक्षिणहस्तवर्तमानायाः (यमम्) यमयति नियमयति जीवान् स यमः, यम-अच्। धर्मराजं न्यायिनं जातवेदसम्। अन्यद् यथा म० १ ॥
विषय
दक्षिण दिक् से
पदार्थ
१. (ये) = जो (दक्षिणतः) = दक्षिणपार्श्व से (जुह्वति) = नष्ट करना चाहते हैं, (ते) = वे सब (यमम् ऋत्वा) = हमारे अन्दर स्थित नियन्त्रण की भावना को प्राप्त करके (पराञ्चः) = परामुख हुए-हुए (व्यथन्ताम्) = पीड़ित हों। मेरे अन्दर स्थित नियन्त्रण की भावना इन शत्रुओं को दूर भगानेवाली हो। २. मैं (एनान्) = इन शत्रुओं को (प्रतिसरेण) = प्रतिसर के द्वारा-शरीर में उत्पन्न वीर्यशक्ति को अङ्ग-प्रत्यङ्ग में गतिशील करके (प्रत्यग् हन्मि) = पराङ्मुख करके नष्ट कर डालता हूँ।
भावार्थ
मेरे अन्दर स्थित नियन्त्रण की भावना दक्षिणपार्श्व से आक्रमण करनेवाले सब शत्रुओं को विनष्ट करनेवाली हो।
भाषार्थ
हे प्रत्येक उत्पन्न पदार्थ में विद्यमान तथा प्रज्ञावाले परमेश्वर! जो रोगकीटाणु, दक्षिण दिशा में हमें खाते हैं, और दक्षिण दिशा से हमें साक्षात् उपक्षीण करते हैं, हमें शक्तिहीन करते हैं, वे यम को प्राप्त होकर, पराङ्मुख हुए, व्यथा को प्राप्त हों, इन रोगकीटाणुओं को, प्रतिमुख अर्थात् प्रतीपमुख करके, प्रतिसारक साधन द्वारा मैं मार देता हूँ।
टिप्पणी
[प्रतिसारक साधन है यम अर्थात् मृत्यु। पृथिवी की भूमध्यरेखा के उत्तर में तो मनुष्यादि सृष्टि विद्यमान है, परन्तु इस रेखा के दक्षिण में इस मनुष्य आदि सृष्टि का प्राय: अभाव है, मानो वह यम अर्थात् मृत्यु के कारण है। दक्षिण में समुद्र का विस्तार है, पृथिवी का प्रायः अभाव है, जिसपर कि मनुष्यादि सृष्टि की सम्भावना हो सके। मन्त्र १ में 'जातवेदः' द्वारा प्राकृतिक अग्नि अर्थात् यज्ञियाग्नि अभिप्रेत है।]
विषय
आक्रमणकारी शत्रुओं के विनाश करने का उपदेश।
भावार्थ
(ये दक्षिणतः जुह्वति०) हे जातवेदः परमात्मन् ! जो दक्षिण दिशा से अपने आपको इस कार्य में आहुति कर दें और दक्षिण दिशा से हमें नष्ट करें (ते) वे (यमम्०) उस व्यवस्थापक नियन्ता के पास जाकर पराजित होकर कष्ट को प्राप्त करें और (प्रत्यग् एनान्०) उनको भी मैं पीछा करके विनाश करूं।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
शुक्र ऋषिः। कृत्याप्रतिहरणाय बहवो देवताः। २ जगती। ८ पुरीतिशक्वरी पदयुक्ता जगती। १, ३-५ त्रिष्टुभः। अष्टर्चं सूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Destruction of Enemies
Meaning
O Jataveda, those who first offer the tribute of homage from the right side, southern quarter, and then from the same direction attack and try to enslave us, later, when they face Yama, lord of justice and punishment, come to nothing. I hit and destroy them straight with an equal and opposite stroke.
Translation
O Játavedas (knower of all), those who challenge us from right and want to enslave us from the southern region, may they turn back, go to the ordainer and suffer pain. I drive then back with my counter-attack.
Translation
May they who desire to devour us from southward and assail us from the southern quarter, be turned backward, O learned man! and be pained countering Yama, the all controlling fire. Rest is like the previous one.
Translation
O Omniscient God, may those foes, who want to destroy and attack us fromthe right-hand southward direction, punished by Thee, just, turn their back and be put to pain. I smite them back with & the help of Thee, the Leader!
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
२−(दक्षिणतः) अ० ४।३२।७। दक्षिणहस्तदिशि (दक्षिणायाः) अ० ३।२६।२। दक्षिणस्याः। दक्षिणहस्तवर्तमानायाः (यमम्) यमयति नियमयति जीवान् स यमः, यम-अच्। धर्मराजं न्यायिनं जातवेदसम्। अन्यद् यथा म० १ ॥
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