Loading...
अथर्ववेद के काण्ड - 5 के सूक्त 12 के मन्त्र
मन्त्र चुनें
  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 12/ मन्त्र 8
    ऋषिः - अङ्गिराः देवता - जातवेदा अग्निः छन्दः - त्रिष्टुप् सूक्तम् - ऋतयज्ञ सूक्त
    50

    आ नो॑ य॒ज्ञं भार॑ती॒ तूय॑मे॒त्विडा॑ मनु॒ष्वदि॒ह चे॒तय॑न्ती। ति॒स्रो दे॒वीर्ब॒र्हिरेदं स्यो॒नं सर॑स्वतीः॒ स्वप॑सः सदन्ताम् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    आ । न॒: । य॒ज्ञम् । भार॑ती । तूय॑म् । ए॒तु॒ । इडा॑ । म॒नु॒ष्वत् । इ॒ह । चे॒तय॑न्ती । ति॒स्र: । दे॒वी: । ब॒र्हि: । आ । इ॒दम् । स्यो॒नम् । सर॑स्वती: । सु॒ऽअप॑स: । स॒द॒न्ता॒म् ॥१२.८॥


    स्वर रहित मन्त्र

    आ नो यज्ञं भारती तूयमेत्विडा मनुष्वदिह चेतयन्ती। तिस्रो देवीर्बर्हिरेदं स्योनं सरस्वतीः स्वपसः सदन्ताम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    आ । न: । यज्ञम् । भारती । तूयम् । एतु । इडा । मनुष्वत् । इह । चेतयन्ती । तिस्र: । देवी: । बर्हि: । आ । इदम् । स्योनम् । सरस्वती: । सुऽअपस: । सदन्ताम् ॥१२.८॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 5; सूक्त » 12; मन्त्र » 8
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    मनुष्य की उन्नति का उपदेश।

    पदार्थ

    (चेतयन्ती) चेतानेवाली (भारती) पोषण करनेवाली विद्या (नः) हमारे (यज्ञम्) पूजनीय, (मनुष्वत्) मनुष्यों से युक्त (तूयम्) वृद्धि करनेवाले कर्म में (इह) यहाँ पर (आ एतु) आवे, (इडा) स्तुति योग्य नीति, और (सरस्वतीः=सरस्वती) विज्ञानवाली बुद्धि [भी आवे]। (तिस्रः) तीनों (देवीः) देवियाँ (इदम्) इस (स्योनम्) सुखकारी (बर्हिः) बढ़े हुए काम में (स्वपसः) उत्तम कर्मोंवाले पुरुषों को (आ सदन्ताम्) आकर प्राप्त होवें ॥८॥

    भावार्थ

    पुरुषार्थी मनुष्य उत्तम विद्या, उत्तम नीति और उत्तम बुद्धि प्राप्त करके परस्पर उन्नति करें ॥८॥

    टिप्पणी

    ८−(नः) अस्माकम् (यज्ञम्) पूजनीयम् (भारती) भृमृदृशि०। उ० ३।११०। इति डुभृञ् धारणपोषणयोः−अतच्। प्रज्ञादिभ्यश्च। पा० ५।४।३८। इति स्वार्थे अण्, ङीप्। भारती वाङ्नाम−निघ० १।११। भारती... भरत आदित्यस्तस्य भाः−निरु० ८।१३। पोषयित्री विद्या (तूयम्) अघ्न्यादयश्च। उ० ४।११२। इति तु वृद्धौ−यक्। तविषीति बलनाम तवतेर्वृद्धिकर्मणः−निरु० ९।२५। वृद्धिकरं कर्म (आ एतु) आगच्छतु (इडा) अ० ३।१०।६। इगुपधज्ञा०। पा० ३।१।१३५। इति इल क्षेपणे, यद्वा, ईड स्तुतौ, यद्वा, ञिइन्धी दीप्तौ=क। ईड ईट्टेः स्तुतिकर्मण इन्धतेर्वा−निरु० ८।७। इडा वाङ्नाम−निघ० १।११। स्तुत्या नीतिः। (मनुष्वत्) मनुष्−मतुप्। मनुष्ययुक्तम् (इह) अस्मिन् कर्मणि (चेतयन्ती) प्रज्ञापयन्ती (तिस्रः) (देवीः) दीप्यमानाः (बर्हिः) प्रवृद्धकर्म (इदम्) (स्योनम्) सुखम् (सरस्वतीः) बहुवचनं छान्दसम्। ऋग्यजुर्वेदनिरुक्तेषु [सरस्वती] इति पाठो दृश्यते। वाङ्नाम−निघ० १।११। विज्ञानवती प्रज्ञा (स्वपसः) अपः कर्मनाम−निघ० २।१। शुभकर्मणः पुरुषान् (आसदन्ताम्) आसीदन्ताम्। आगच्छन्तु ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    भारती, इडा, सरस्वती

    पदार्थ

    १. (नः यज्ञम्) = हमारे जीवन-यज्ञ में (भारती) = [भरतस्य सूर्यस्य इयम्] सूर्य के समान देदीप्यमान ज्ञानज्योति (तूयम्) = शीघ्र (आएत) = सर्वथा प्राप्त हो। (मनुष्यवत्) = एक ज्ञानी पुरुष की भांति (इह) = इस जीवन-यज्ञ में (चेतयन्ती) = चेतना को प्रास कराती हुई (इडा) = यह श्रद्धा नामक देवता भी हमारे जीवन यज्ञ में शीघ्रता से प्राप्त हो। इस श्रद्धा से हमारा जीवन सत्य बातों का ही धारण करनेवाला बने। २. (भारती) = व (इडा) = के साथ (सरस्वती:) = यह वाग्देवता भी आये, इसप्रकार (तिस्त्रः देवी:) = तीनों देवियाँ (स्वपस:) = उत्तम कर्मशील पुरुष के (इदं स्योनम्)-इस सुखमय (बर्ही:) = वासनाशून्य हृदय में (आसदन्ताम्) = आसीन हों। हम इन तीनों देवियों को अपनाने का यत्न करें।

    भावार्थ

    हमारे जीवनों में 'भारती, इडा व सरस्वती' तीनों देवियों का समुचित स्थान हो।

    इस भाष्य को एडिट करें

    भाषार्थ

    (भारती) भरण-पोषण करनेवाले सूर्य की प्रभा (न: यज्ञम्) हमारे यज्ञ में (तूयम् ) शीघ्र (एतु) आए तथा (चेतयन्ती) चेतनाप्रदा (मनुष्वत्) मनुष्य सम्बन्धी (इडा) अन्न ( इह) इस यज्ञ में (एतु) आए। ( स्वपस: ) उत्तमकर्मोवाली अर्थात् उत्तम यज्ञकर्म का सम्पादन करनेवाली (तिस्रः देवी:) तीनों देवियां (इदम्, स्योनम् ) इस सुखदायक (बर्हिः) कुशा पर (आ सदन्ताम् ) आ वैेठें।

    टिप्पणी

    [भारती =भरत: आदित्यः तस्य भाः (निरुक्त ८।२।१३) इडा अन्ननाम (निघं० २।७) । तथा वाङ्नाम ( निघं० १।११)। चेतयन्ती= अन्न खाने से मनुष्यों में चतनता प्रकट होती है। बर्हि= कृशा तथा तत्सम्बन्धी यज्ञ। सरस्वती१=सरस्वती (ऋग्वेदे १ ।११०। ८ ) । आदित्य प्रभा, यज्ञियान्न तथा सरस्वती, अर्थात् वेदवाणी के परस्पर मेल से यज्ञों का सम्पादन होता है । आ सदन्ताम्= आङः षद पद्यर्थ (चुरादिः)।] [१. "सरस्वती " में प्रतीयमान वहुवचन द्वारा सम्भवतः सरस्वती अर्थात् विज्ञानवती वेदवाणी सम्बन्धी ऋचाएँ अभिप्रेत हों अथवा सरस्वती -सु [प्रथमैकवचन] में "सु' का लोप न होकर उसकी विसर्गे हैं [छन्दसरूप]

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    विद्वानों द्वारा आत्मा और ईश्वर के गुणों का वर्णन।

    भावार्थ

    (भारती) भरत = आत्मा की वह कान्ति ‘पिंगला’ (नः) हमारे (यज्ञं) यज्ञ में (तूयम्) शीघ्र ही (आ एति) आवे। और (इड़े) ब्रह्म की स्तुति करने हारी ‘इडा’ नामक चेतना, (इह) इस देह में (मनुष्वत्) मनुषा = आत्मा या मन के समान (चेतयन्ती) समस्त देह को चेतना युक्त करती हुई, या ज्ञान सम्पादन करती हुई इस देह में शीघ्र प्रकट हो। और (सरस्वतीः) अति आनन्दमय सुषुम्ना भी इस में शीघ्र प्रकट हो। यह (तिस्रः देवीः) तीनों दिव्य नाड़ी गत प्राणधाराएं (इदं बर्हिः) इस देह में (सु-अपसः) शोभन कर्म और प्रज्ञानयुक्त होकर (स्योनं) सुख से (सदन्ताम्) सुप्रतिष्ठित रहें।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    अंगिरा ऋषिः। जातवेदा देवता। आप्री सूक्तम्। १, २, ४-११ त्रिष्टुभः। ३ पंक्तिः। एकादशर्चं सूक्तम्॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    इंग्लिश (4)

    Subject

    Yajna of Life

    Meaning

    Let Bharati, spirit and language of the land, Ida, vision and word of eternity in the version of human consciousness, giver of enlightenment, and Sarasvati, perennial stream of knowledge and grace, all these three divinities, noble of thought, intention and action, come upon the instant, come and bless us.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Translation

    Unto our sacrifice let Bharati come quickely, let Ida,taking note here in human fashion let the three goddesses, (tisro devih) wellworking, sit upon this pleasant barhis - (also) Sarasvati- (tisro-devih - Idà, Bharati and Sarasvati). (Also Yv. XXIX.33)

    इस भाष्य को एडिट करें

    Translation

    Let the knowledge giving all intelligent inspirations quickly come here in our activities of yajna to accomplish them, let speech and culture be with us in such dealings and let these three wonderful powers make our yajna the pleasant one. Let these three be attained by all those persons who perform such good acts.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Translation

    May Bharti, Ida, Saraswati, in this mechanical work, comes unto us from all sides, speedily expounding the secrets of mechanical science, like a thoughtful person. May these three intellectual forces, guide us, the performers of nice enterprises, in this mighty project, the source of comfort.

    Footnote

    Bharti: The knowledge of fine arts. Ida: Beautiful, trained, sweet voice. Saraswati: Wisdom full of knowledge.

    इस भाष्य को एडिट करें

    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ८−(नः) अस्माकम् (यज्ञम्) पूजनीयम् (भारती) भृमृदृशि०। उ० ३।११०। इति डुभृञ् धारणपोषणयोः−अतच्। प्रज्ञादिभ्यश्च। पा० ५।४।३८। इति स्वार्थे अण्, ङीप्। भारती वाङ्नाम−निघ० १।११। भारती... भरत आदित्यस्तस्य भाः−निरु० ८।१३। पोषयित्री विद्या (तूयम्) अघ्न्यादयश्च। उ० ४।११२। इति तु वृद्धौ−यक्। तविषीति बलनाम तवतेर्वृद्धिकर्मणः−निरु० ९।२५। वृद्धिकरं कर्म (आ एतु) आगच्छतु (इडा) अ० ३।१०।६। इगुपधज्ञा०। पा० ३।१।१३५। इति इल क्षेपणे, यद्वा, ईड स्तुतौ, यद्वा, ञिइन्धी दीप्तौ=क। ईड ईट्टेः स्तुतिकर्मण इन्धतेर्वा−निरु० ८।७। इडा वाङ्नाम−निघ० १।११। स्तुत्या नीतिः। (मनुष्वत्) मनुष्−मतुप्। मनुष्ययुक्तम् (इह) अस्मिन् कर्मणि (चेतयन्ती) प्रज्ञापयन्ती (तिस्रः) (देवीः) दीप्यमानाः (बर्हिः) प्रवृद्धकर्म (इदम्) (स्योनम्) सुखम् (सरस्वतीः) बहुवचनं छान्दसम्। ऋग्यजुर्वेदनिरुक्तेषु [सरस्वती] इति पाठो दृश्यते। वाङ्नाम−निघ० १।११। विज्ञानवती प्रज्ञा (स्वपसः) अपः कर्मनाम−निघ० २।१। शुभकर्मणः पुरुषान् (आसदन्ताम्) आसीदन्ताम्। आगच्छन्तु ॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top