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अथर्ववेद के काण्ड - 5 के सूक्त 28 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 28/ मन्त्र 3
    ऋषिः - अथर्वा देवता - अग्न्यादयः छन्दः - त्रिष्टुप् सूक्तम् - दीर्घायु सूक्त
    52

    त्रयः॒ पोष॑स्त्रि॒वृति॑ श्रयन्ताम॒नक्तु॑ पू॒षा पय॑सा घृ॒तेन॑। अन्न॑स्य भू॒मा पुरु॑षस्य भू॒मा भू॒मा प॑शू॒नां त॑ इ॒ह श्र॑यन्ताम् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    त्रय॑:। पोषा॑: । त्रि॒ऽवृति॑। श्र॒य॒न्ता॒म् । अ॒नक्तु॑ । पू॒षा । पय॑सा । घृ॒तेन॑ । अन्न॑स्‍य । भू॒मा । पुरु॑षस्य । भू॒मा । भू॒मा । प॒शू॒नाम् । ते । इ॒ह । श्र॒य॒न्ता॒म् ॥२८.३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    त्रयः पोषस्त्रिवृति श्रयन्तामनक्तु पूषा पयसा घृतेन। अन्नस्य भूमा पुरुषस्य भूमा भूमा पशूनां त इह श्रयन्ताम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    त्रय:। पोषा: । त्रिऽवृति। श्रयन्ताम् । अनक्तु । पूषा । पयसा । घृतेन । अन्नस्‍य । भूमा । पुरुषस्य । भूमा । भूमा । पशूनाम् । ते । इह । श्रयन्ताम् ॥२८.३॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 5; सूक्त » 28; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    रक्षा और ऐश्वर्य का उपदेश।

    पदार्थ

    (त्रयः) तीन (पोषाः) पोषणसामर्थ्य (त्रिवृति) त्रिवृति [तीन जीवनसाधन−म० १] में (श्रयन्ताम्) बनी रहें। (पूषा) पोषण करनेवाला अधिकारी (पयसा) दूध और (घृतेन) घृत से (अनक्तु) संयुक्त करे। (अन्नस्य) अन्न की (भूमा) बहुतायत, (पुरुषस्य) पुरुषों की (भूमा) बहुतायत और (पशूनाम्) पशुओं की (भूमा) बहुतायत (ते) यह सब (इह) यहाँ पर (श्रयन्ताम्) ठहरी रहें ॥३॥

    भावार्थ

    सब मनुष्य उत्तम पुरुषार्थ, उत्तम प्रबन्ध और उत्तम कर्म से [म० १] अन्न, पुरुषों और पशुओं का योग्य संग्रह करके सुख भोगें ॥३॥

    टिप्पणी

    ३−(त्रयः) (पोषाः) पोषणसामर्थ्यानि (त्रिवृति) म० २। त्रिवृतौ हरितरजतायोरूपत्रिसाधने−म० १। (श्रयन्ताम्) आश्रिता भवन्तु। तिष्ठन्तु (अनक्तु) संयोजयतु (पूषा) पोषकोऽधिकारी (पयसा) दुग्धेन (अन्नस्य) कॄवृजॄ०। उ० ३।१०। इति अन जीवने−न, यद्वा अद भक्षणे−क्त। जीवनसाधनस्य भक्षणीयस्य वा पदार्थस्य (भूमा) बहोर्लोपो भू च बहोः। पा० ६।४।१५८। इति बहोरिमनिच् प्रत्ययस्येकारस्य लोपो बहोश्च भूरादेशः। बहुत्वम् (पुरुषस्य) जनस्य (पशूनाम्) गवादिजन्तूनाम् (ते) भूमानः (इह) अस्मिन् संसारे ॥

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    विषय

    'अन्नस्य, पुरुषस्य पशूनां' भूमा

    पदार्थ

    १. (त्रिवृति) = तीन-तीन इन्द्रियों के 'हरित, रजत व अयस्' में विष्ठित होने पर (त्रयः पोषा:) = तीन पोषण-'ज्ञान, धन व शक्ति' के पोषण (श्रयन्ताम्) = मेरा आश्रय करें। (पूषा) = सर्वपोषक प्रभु (पयसा) = आप्यायन के साधनभूत (घृतेन) = नैर्मल्य व ज्ञानदीसि से [घृक्षरणदीप्त्योः ] (अनक्तु) = मुझे अलंकृत्त करें। २. (अन्नस्य भूमा) = अन्न का बाहुल्य, (पुरुषस्य भूमा) = पुरुषों का बाहुल्य तथा (पशूनां भूमा) = गवादि पशुओं का बाहुल्य (ते) = ये तीनों ही बाहुल्य (इह) = यहाँ-मेरे जीवन में (श्रयन्ताम्) = आश्रय करें।

    भावार्थ

    मेरे त्रिवत् में 'ज्ञान, धन व शक्ति' का पोषण हो। हमें नैर्मल्य व ज्ञानदीसि प्राप्त हो। अन्न, पुरुष व पशुओं का हमारे यहाँ प्राचुर्य हो।

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    भाषार्थ

    (त्रिवृति) त्रिवृत् [सुवर्ण, रजत, अयस् की भस्मों) में (त्रयः पोषः) त्रिविध पुष्टियाँ (श्रयन्ताम् ) सदा आश्रय पाएँ; (पूषा) पोषण करनेवाला परमेश्वर (पयसा घृतेन) गोदुग्ध और गोघृत द्वारा (अनक्तु) हमें कान्ति-युक्त करे। (अन्नस्य भूमा) अन्न की बहुतायत, ( पुरुषस्य भूमा) पारिवारिक पुरुषों की बहुतायत, (पशूनाम् भूमि ) गौ आदि पशुओं की बहुतायत (ते) ये तीन बहुतायतें, (इह) इस गृह में (श्रयन्ताम् ) आश्रय पाएँ ।

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    विषय

    दीर्घ जीवन का उपाय और यज्ञोपवीत की व्याख्या।

    भावार्थ

    तीन पुष्टियों का वर्णन करते हैं। (त्रि-वृति) त्रिविध प्राण में (त्रयः पोषाः) तीन प्रकार की पुष्टियां (श्रयन्तां) बनी रहें। और (पूषा) सबका पोषक परमात्मा (पयसा) वृद्धि करने वाले (घृतेन) घृत से, तेज से (अनक्तु) हमें चमकाए, पुष्ट करके प्रदीप्त करे। (अन्नस्य भूमा) अन्न की अधिकता, (पुरुषस्य भूमा) पुरुषों की अधिकता और (पशूनां भूमा) पशुओं की अधिकता, ये तीनों ही पदार्थ अधिक मात्रा में (ते) हे पुरुष ! तुझे (इह) इस लोक में (श्रयन्ताम्) प्राप्त हों, तुझ में बने रहें।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    अथर्वा ऋषिः। त्रिवृत देवता। १-५, ८, ११ त्रिष्टुभः। ६ पञ्चपदा अतिशक्वरी। ७, ९, १०, १२ ककुम्मत्यनुष्टुप् परोष्णिक्। चतुर्दशर्चं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Longevity and the Sacred thread

    Meaning

    May three orders of growth and abundance abide in the threefold order of pranic energy from the heavens, skies and earth, and symbolically in the threefold yajnopavita, and may the divine spirit of cosmic nourishment, growth and abundance, Pusha, bless us with water, milk and ghrta. May abundance of food and energy, abundance of people, and abundance of wealth and animals abide here in this life. (The symbolic reference to threefold yajnopavita enjoins that along with prayer man has to justify prayer with effort and action as well. The yajnopavita is not only a human privilege, it is also a divine commandment. One who fails to keep the commandment for knowledge, action and prayer for potential beyond actual strength and performance fails to honour the privilege and falls from the privilege.)

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    Translation

    May the tree prosperities (bhüma) lie in this triple combination (tri-vrti). May the nourisher Lord enrich you with milk and purified butter. May opulence of food (annasya-bhuma), opulence of men (purusasya-bhüma), and opulence of cattle (pasünam-bhüma) be at this place of yours.

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    Translation

    Let there remain three maintenances in this triple and may all-supporting Lord give us plenty of milk and ghee. Let here rest these three fulnesses-abundance of grains, abundance of people and abundance of cattle.

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    Translation

    In the three-threaded yajnopavit rest three kinds of fullness. May Godfill us with milk and butter. O man, for thee, in this world, rest abundantstore of food, plenty of people, and ample store of cattle.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ३−(त्रयः) (पोषाः) पोषणसामर्थ्यानि (त्रिवृति) म० २। त्रिवृतौ हरितरजतायोरूपत्रिसाधने−म० १। (श्रयन्ताम्) आश्रिता भवन्तु। तिष्ठन्तु (अनक्तु) संयोजयतु (पूषा) पोषकोऽधिकारी (पयसा) दुग्धेन (अन्नस्य) कॄवृजॄ०। उ० ३।१०। इति अन जीवने−न, यद्वा अद भक्षणे−क्त। जीवनसाधनस्य भक्षणीयस्य वा पदार्थस्य (भूमा) बहोर्लोपो भू च बहोः। पा० ६।४।१५८। इति बहोरिमनिच् प्रत्ययस्येकारस्य लोपो बहोश्च भूरादेशः। बहुत्वम् (पुरुषस्य) जनस्य (पशूनाम्) गवादिजन्तूनाम् (ते) भूमानः (इह) अस्मिन् संसारे ॥

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