Loading...

मन्त्र चुनें

  • यजुर्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • यजुर्वेद - अध्याय 23/ मन्त्र 31
    ऋषिः - प्रजापतिर्ऋषिः देवता - राजप्रजे देवते छन्दः - अनुष्टुप् स्वरः - गान्धारः
    1

    यद्ध॑रि॒णो यव॒मत्ति॒ न पु॒ष्टं ब॒हु मन्य॑ते।शू॒द्रो यदर्या॑यै जा॒रो न पोष॒मनु॑ मन्यते॥३१॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यत्। ह॒रि॒णः। यव॑म्। अत्ति॑। न। पु॒ष्टम्। ब॒हु॒। मन्य॑ते। शू॒द्रः। यत्। अर्य्या॑यै। जा॒रः। न। पोष॑म्। अनु॑। म॒न्य॒ते॒ ॥३१ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यद्धरिणो यवमत्ति न पुष्टम्बहु मन्यते । शूद्रो यदर्यायै जारो न पोषमनुमन्यते ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    यत्। हरिणः। यवम्। अत्ति। न। पुष्टम्। बहु। मन्यते। शूद्रः। यत्। अर्य्यायै। जारः। न। पोषम्। अनु। मन्यते॥३१॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 23; मन्त्र » 31
    Acknowledgment

    Translation -
    When the wild deer eat the barley crop, the farmer does not feel that the cattle are growing strong; similarly, a low category secret lover of a woman belonging to a higher category does not rise up in the social hierarchy. (1)

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top