अथर्ववेद - काण्ड 15/ सूक्त 10/ मन्त्र 7
सूक्त - अध्यात्म अथवा व्रात्य
देवता - साम्नि उष्णिक्
छन्दः - अथर्वा
सूक्तम् - अध्यात्म प्रकरण सूक्त
अ॒यं वा उ॑अ॒ग्निर्ब्रह्मा॒सावा॑दि॒त्यः क्ष॒त्रम् ॥
स्वर सहित पद पाठअ॒यम् । वै । ऊं॒ इति॑ । अ॒ग्नि: । ब्रह्म॑ । अ॒सौ । आ॒दि॒त्य: । क्ष॒त्रम् ॥१०.७॥
स्वर रहित मन्त्र
अयं वा उअग्निर्ब्रह्मासावादित्यः क्षत्रम् ॥
स्वर रहित पद पाठअयम् । वै । ऊं इति । अग्नि: । ब्रह्म । असौ । आदित्य: । क्षत्रम् ॥१०.७॥
अथर्ववेद - काण्ड » 15; सूक्त » 10; मन्त्र » 7
भाषार्थ -
(वै, उ) निश्चय से ही, (अयम्) यह (अग्निः) अग्नि (ब्रह्म) ब्राह्मधर्मरूप है, अर्थात् ब्राह्मधर्म का आधार है, और (असौ) वह (आदित्यः) सूर्य (क्षत्रम्) क्षात्रधर्मरूप अर्थात् क्षात्रधर्म का आधार है।
टिप्पणी -
[अग्निः, आदित्यः =आदित्य उग्ररूप है, उग्र तेज का आश्रय है; और अग्नि अनुग्ररूप है। क्षात्रधर्म भी उग्ररूप है, और ब्राह्मधर्म अनुग्र अर्थात् शान्तरूप है। क्षात्रधर्म दण्डधर है, ब्राह्मधर्म क्षमाधर। अतः अग्नि ब्राह्मधर्म की प्रतिनिधि है, और आदित्य क्षात्रधर्म का प्रतिनिधि है]।