अथर्ववेद - काण्ड 15/ सूक्त 10/ मन्त्र 11
सूक्त - अध्यात्म अथवा व्रात्य
देवता - आसुरी बृहती
छन्दः - अथर्वा
सूक्तम् - अध्यात्म प्रकरण सूक्त
य आ॑दि॒त्यंक्ष॒त्रं दिव॒मिन्द्रं॒ वेद॑ ॥
स्वर सहित पद पाठय: । आ॒दि॒त्यम् । अ॒न्नम् । दिव॑म् । इन्द्र॑म् । वेद॑ ॥१०.११॥
स्वर रहित मन्त्र
य आदित्यंक्षत्रं दिवमिन्द्रं वेद ॥
स्वर रहित पद पाठय: । आदित्यम् । अन्नम् । दिवम् । इन्द्रम् । वेद ॥१०.११॥
अथर्ववेद - काण्ड » 15; सूक्त » 10; मन्त्र » 11
भाषार्थ -
(यः) जो (आदित्यम्) आदित्य को (क्षत्रम्) क्षत्र और (दिवम्) द्युलोक को (इन्द्रम्) इन्द्र (वेद) जानता तथा तदनुकूल आचरण करता है। इन्द्रियम् = धनयाम् (निघं० २।१०)।
टिप्पणी -
[अनुसन्धान सम्बन्धी निर्देश:— पृथिवी= बृहस्पति, द्यौः = इन्द्रः अग्निः =ब्रह्म आदित्यः = क्षत्रम् इस प्रकार "बृहस्पतिः, पृथिवी, ब्रह्म, अग्निः" शब्द मन्त्रार्थ में लगभग पारस्परिक सम्बन्धी रूप में प्रयुक्त किये जा सकते हैं, प्रकरणानुसार। तथा "इन्द्रः, द्यौः, क्षत्रम्, आदित्यः" शब्द भी लगभग पारस्परिक सम्बन्धीरूप में प्रयुक्त किये जा सकते हैं, प्रकरणानुसार। निर्देश में वाण द्वारा ब्रह्म का बृहस्पति में, तथा क्षत्र का इन्द्र में प्रवेश दर्शाया है।]