अथर्ववेद - काण्ड 19/ सूक्त 17/ मन्त्र 5
सूक्त - अथर्वा
देवता - मन्त्रोक्ताः
छन्दः - अतिजगती
सूक्तम् - सुरक्षा सूक्त
सूर्यो॑ मा॒ द्यावा॑पृथि॒वीभ्यां॑ प्र॒तीच्या॑ दि॒शः पा॑तु॒ तस्मि॑न्क्रमे॒ तस्मि॑ञ्छ्रये॒ तां पुरं॒ प्रैमि॑। स मा॑ रक्षतु॒ स मा॑ गोपायतु॒ तस्मा॑ आ॒त्मानं॒ परि॑ ददे॒ स्वाहा॑ ॥
स्वर सहित पद पाठसूर्यः॑। मा॒। द्यावा॑पृथि॒वीभ्या॑म्। प्र॒तीच्याः॑। दि॒शः। पा॒तु॒। तस्मि॑न्। क्र॒मे॒। तस्मि॑न्। श्र॒ये॒। ताम्। पुर॑म्। प्र। ए॒मि॒। सः। मा॒। र॒क्ष॒तु॒। सः। मा॒। गो॒पा॒य॒तु॒। तस्मै॑। आ॒त्मान॑म्। परि॑। द॒दे॒। स्वाहा॑ ॥१७.५॥
स्वर रहित मन्त्र
सूर्यो मा द्यावापृथिवीभ्यां प्रतीच्या दिशः पातु तस्मिन्क्रमे तस्मिञ्छ्रये तां पुरं प्रैमि। स मा रक्षतु स मा गोपायतु तस्मा आत्मानं परि ददे स्वाहा ॥
स्वर रहित पद पाठसूर्यः। मा। द्यावापृथिवीभ्याम्। प्रतीच्याः। दिशः। पातु। तस्मिन्। क्रमे। तस्मिन्। श्रये। ताम्। पुरम्। प्र। एमि। सः। मा। रक्षतु। सः। मा। गोपायतु। तस्मै। आत्मानम्। परि। ददे। स्वाहा ॥१७.५॥
अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 17; मन्त्र » 5
भाषार्थ -
(द्यावापृथिवीभ्याम्) द्युलोक और पृथिवीलोक के साथ वर्तमान (सूर्यः) सूर्य में स्थित परमेश्वर, सूर्यास्तकाल में (प्रतीच्याः दिशः) पश्चिम दिशा से (मा) मेरी (पातु) रक्षा करे। तस्मिन्....पूर्ववत्।
टिप्पणी -
[सूर्यः= षू प्रेरणे। वेदों में परमात्मा की सूर्य में स्थिति का वर्णन हुआ है। यथा—“योऽसावादित्ये पुरुषः सोऽसावहम्। ओ३म् खं ब्रह्म” (यजुः ४०.१७)। सौर परिवार के ग्रह आदि का प्रेरक और शक्तिदाता सूर्य है, और सूर्य में शक्तिप्रदाता परमेश्वर है। सूर्य का अस्तगमन जब पश्चिम में होता है, तब स्वरक्षा निमित्त सूर्यों के सूर्य परमेश्वर से रक्षा की प्रार्थना की गई है।]