अथर्ववेद - काण्ड 19/ सूक्त 17/ मन्त्र 9
सूक्त - अथर्वा
देवता - मन्त्रोक्ताः
छन्दः - पञ्चपदा विराडतिशक्वरी
सूक्तम् - सुरक्षा सूक्त
प्र॒जाप॑तिर्मा प्र॒जन॑नवान्त्स॒ह प्र॑ति॒ष्ठाया॑ ध्रु॒वाया॑ दि॒शः पा॑तु॒ तस्मि॑न्क्रमे॒ तस्मि॑ञ्छ्रये॒ तां पुरं॒ प्रैमि॑। स मा॑ रक्षतु॒ स मा॑ गोपायतु॒ तस्मा॑ आ॒त्मानं॒ परि॑ ददे॒ स्वाहा॑ ॥
स्वर सहित पद पाठप्र॒जाऽप॑तिः। मा॒। प्र॒जन॑नऽवान्। स॒ह। प्र॒तिऽस्था॑याः। ध्रु॒वायाः॑। दि॒शः। पा॒तु॒। तस्मि॑न्। क्र॒मे॒।तस्मि॑न्। श्र॒ये॒। ताम्। पुर॑म्। प्र। ए॒मि॒। सः। मा॒। र॒क्ष॒तु॒। सः। मा॒। गो॒पा॒य॒तु॒। तस्मै॑। आ॒त्मान॑म्। परि॑। द॒दे॒। स्वाहा॑ ॥१७.९॥
स्वर रहित मन्त्र
प्रजापतिर्मा प्रजननवान्त्सह प्रतिष्ठाया ध्रुवाया दिशः पातु तस्मिन्क्रमे तस्मिञ्छ्रये तां पुरं प्रैमि। स मा रक्षतु स मा गोपायतु तस्मा आत्मानं परि ददे स्वाहा ॥
स्वर रहित पद पाठप्रजाऽपतिः। मा। प्रजननऽवान्। सह। प्रतिऽस्थायाः। ध्रुवायाः। दिशः। पातु। तस्मिन्। क्रमे।तस्मिन्। श्रये। ताम्। पुरम्। प्र। एमि। सः। मा। रक्षतु। सः। मा। गोपायतु। तस्मै। आत्मानम्। परि। ददे। स्वाहा ॥१७.९॥
अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 17; मन्त्र » 9
भाषार्थ -
(प्रजापतिः) प्रजाओं का स्वामी, तथा (प्रजननवान्) उत्पत्तियों का स्वामी परमेश्वर (सह प्रतिष्ठायाः) पृथ्वी की (ध्रुवायाः दिशः) ध्रुवा दिशा से (मा) मेरी (पातु) रक्षा करे। तस्मिन्...... पूर्ववत्।
टिप्पणी -
[सह प्रतिष्ठायाः= सह प्रतिष्ठया; विभक्तिव्यत्यय; प्रजननेन सह वा (सायण)। प्रतिष्ठा=पृथिवी=Earth (आप्टे)। परमेश्वर सब प्रजाओं का स्वामी है, और पृथिवी की जो भी उपजें हैं—अन्नादि और खनिज पदार्थ, उनका भी स्वामी है। अतः पार्थिव उपजों का यथोचित्त विभाग होना चाहिए। ताकि परमेश्वर की सब प्रजाओं का पालन-पोषण हो सके। यथा “भुजिष्यं पात्रं निहितं गुहा यदाविर्भोगे अभवन्मातृमद्भ्यः” (अथर्व० १२.१.६०)। अर्थात् भोगयोग्य और रक्षा और त्राण के जो साधन पृथिवी की गुहा में निधिरूप में रखे गये हैं, वे मातृमान् समग्र प्रजाजनों के भोग के निमित्त प्रकट हुए हैं।]