अथर्ववेद - काण्ड 19/ सूक्त 17/ मन्त्र 6
सूक्त - अथर्वा
देवता - मन्त्रोक्ताः
छन्दः - भुरिग्जगती
सूक्तम् - सुरक्षा सूक्त
आपो॒ मौष॑धीमतीरे॒तस्या॑ दि॒शः पा॑न्तु॒ तासु॑ क्रमे॒ तासु॑ श्रये॒ तां पुरं॒ प्रैमि॑। ता मा॑ रक्षन्तु॒ ता मा॑ गोपायन्तु॒ ताभ्य॑ आ॒त्मानं॒ परि॑ ददे॒ स्वाहा॑ ॥
स्वर सहित पद पाठआपः॑। मा॒। ओष॑धीऽमतीः। ए॒तस्याः॑। दि॒शः। पा॒न्तु॒। तासु॑। क्र॒मे॒। तासु॑। श्र॒ये॒। ताम्। पुर॑म्। प्र। ए॒मि॒। ताः। मा॒। र॒क्ष॒न्तु॒। ताः। मा॒। गो॒पा॒य॒न्तु॒। ताभ्यः॑। आ॒त्मान॑म्। परि॑। द॒दे॒। स्वाहा॑ ॥१७.६॥
स्वर रहित मन्त्र
आपो मौषधीमतीरेतस्या दिशः पान्तु तासु क्रमे तासु श्रये तां पुरं प्रैमि। ता मा रक्षन्तु ता मा गोपायन्तु ताभ्य आत्मानं परि ददे स्वाहा ॥
स्वर रहित पद पाठआपः। मा। ओषधीऽमतीः। एतस्याः। दिशः। पान्तु। तासु। क्रमे। तासु। श्रये। ताम्। पुरम्। प्र। एमि। ताः। मा। रक्षन्तु। ताः। मा। गोपायन्तु। ताभ्यः। आत्मानम्। परि। ददे। स्वाहा ॥१७.६॥
अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 17; मन्त्र » 6
भाषार्थ -
(ओषधीमतीः) ओषधि-सम्बन्धी (आपः) जलों में विद्यमान “आपः” नामक परमेश्वर (एतस्याः दिशः) इस पश्चिम दिशा से (मा पान्तु) मेरी रक्षा करे। तासु—पूर्ववत्।
टिप्पणी -
[आपः= शरत्कालीन वर्षा का वर्णन प्रतीत होता है। सम्भवतः शरद्कालीन वर्षा पश्चिम दिशा के समुद्रों के कारण होती हो। इस वर्षा-जल को “आपः” कहा है। वेदों में परमेश्वर को भी “आपः” कहा है। यथा—“ता आपः स प्रजापतिः” (यजुः० ३२.१); तथा अथर्व० १९.१७.१ की टिप्पणी। परमेश्वर पक्ष में “आपः” का अर्थ है “व्याप्त”। पश्चिम् से आई वर्षा द्वारा गेहूं चना तथा नानाविध शरत्कालीन ओषधियाँ पैदा होती है।]