अथर्ववेद - काण्ड 19/ सूक्त 23/ मन्त्र 25
सूक्त - अथर्वा
देवता - मन्त्रोक्ताः
छन्दः - दैवी पङ्क्तिः
सूक्तम् - अथर्वाण सूक्त
व्रा॒त्याभ्यां॒ स्वाहा॑ ॥
स्वर सहित पद पाठव्रा॒त्याभ्या॑म्। स्वाहा॑॥२३.२५॥
स्वर रहित मन्त्र
व्रात्याभ्यां स्वाहा ॥
स्वर रहित पद पाठव्रात्याभ्याम्। स्वाहा॥२३.२५॥
अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 23; मन्त्र » 25
भाषार्थ -
“व्रात्य” के वर्णन सम्बन्धी दो अनुवाकों के लिये प्रशंसायुक्त वाणी हो।
टिप्पणी -
[अथर्ववेद के १५ वें काण्ड में दो अनुवाक हैं, जिनमें “व्रात्य” का वर्णन है। व्रात्य= व्रतं कर्मनाम (निघं० २.१); तथा व्राताः मनुष्यनाम (निघं० २.३)। अर्थात् व्रतपति तथा मनुष्यजाति का हितकारी परमेश्वर, तथा व्रतधारी और मनुष्य जाति का कल्याण करनेवाला महाविद्वान् व्यक्ति।]