अथर्ववेद - काण्ड 19/ सूक्त 23/ मन्त्र 28
सूक्त - अथर्वा
देवता - मन्त्रोक्ताः
छन्दः - दैवी जगती
सूक्तम् - अथर्वाण सूक्त
म॑ङ्गलि॒केभ्यः॒ स्वाहा॑ ॥
स्वर सहित पद पाठम॒ङ्ग॒लि॒केभ्यः॑। स्वाहा॑ ॥२३.२८॥
स्वर रहित मन्त्र
मङ्गलिकेभ्यः स्वाहा ॥
स्वर रहित पद पाठमङ्गलिकेभ्यः। स्वाहा ॥२३.२८॥
अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 23; मन्त्र » 28
भाषार्थ -
मङ्गलकारी सूक्तों के लिये प्रशंसायुक्त वाणी हो।
टिप्पणी -
[वेद के सब सूक्त मंगलकारी हैं। वैदिक दण्डविधान भी मङ्गलकारी है। दण्ड द्वारा व्यक्ति सन्मार्गगामी बन जाता है। उपनिषद् में कहा है कि परमेश्वर के भय से वायु बहती, भय से सूर्य तपता, विद्युत् तथा मृत्यु भी इस के भय से निजकर्मों में व्यापृत हैं। इसलिए दण्ड-विधान भी मङ्गलकारी है। क्रमानुसार अथर्ववेद के १८वें काण्ड का कथन सम्भवतः मन्त्र २८वें द्वारा अभिप्रेत हो। १८वें काण्ड में मृत्यु तथा पुनर्जन्म का वर्णन है। मृत्यु तथा पुनर्जन्म व्यक्ति या आत्मा के लिए मङ्गलकारी होते हैं। इसी दृष्टि से संहारकारी रुद्र-देवता को शिव तथा शंकर भी कहते हैं।]