अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 130/ मन्त्र 15
सूक्त -
देवता - प्रजापतिः
छन्दः - प्राजापत्या गायत्री
सूक्तम् - कुन्ताप सूक्त
व॒शायाः॑ पु॒त्रमा य॑न्ति ॥
स्वर सहित पद पाठवशाया॑: । पु॒त्रम् । आ । य॑न्ति ॥१३०.१५॥
स्वर रहित मन्त्र
वशायाः पुत्रमा यन्ति ॥
स्वर रहित पद पाठवशाया: । पुत्रम् । आ । यन्ति ॥१३०.१५॥
अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 130; मन्त्र » 15
भाषार्थ -
हमारे सखा (वशायाः) संसार को वश में रखनेवाली जगन्माता के (पुत्रम्) सच्चे-पुत्र, अर्थात् सद्गुरुदेव की ओर ही (आ यन्ति) अब आते हैं।
टिप्पणी -
[वशा=परमात्मा-माता। (अथर्व০ ११.८.१७) मन्त्र में “वश” का अर्थ है—“सब संसार को वश में रखनेवाला पिता-परमेश्वर”। मन्त्र १५ में “वशा” द्वारा परमेश्वर को मातृरूप में दर्शाया है।]