अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 131/ मन्त्र 15
सूक्त -
देवता - प्रजापतिर्वरुणो वा
छन्दः - याजुषी गायत्री
सूक्तम् - कुन्ताप सूक्त
अर॑दुपरम ॥
स्वर सहित पद पाठअर॑दुपरम् ॥१३१.१५॥
स्वर रहित मन्त्र
अरदुपरम ॥
स्वर रहित पद पाठअरदुपरम् ॥१३१.१५॥
अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 131; मन्त्र » 15
भाषार्थ -
(अरत्) हे समाधि को प्राप्त हुए उपासक! तू (उपरम) सांसारिक इच्छाओं से पूर्णतया उपरत हो जा। [अरत्=ऋ प्राप्तौ+शतृ।]