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अथर्ववेद > काण्ड 20 > सूक्त 131

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  • अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 131/ मन्त्र 6
    सूक्त - देवता - प्रजापतिर्वरुणो वा छन्दः - प्राजापत्या गायत्री सूक्तम् - कुन्ताप सूक्त

    अहु॑ल कुश वर्त्तक ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अह॑ल । कुश । वर्त्तक ॥१३१.६॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अहुल कुश वर्त्तक ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अहल । कुश । वर्त्तक ॥१३१.६॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 131; मन्त्र » 6

    भाषार्थ -
    (अहल) जीवन में पवित्रता और त्याग का हल विना-फिरे हे व्यक्ति! (कुश) तथा पार्थिव भोगों में शयन किये हुए हे व्यक्ति! (वर्त्तक) और सांसारिक व्यवहारों में ही वर्तनेवाले हे व्यक्ति!

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