अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 131/ मन्त्र 17
सूक्त -
देवता - प्रजापतिर्वरुणो वा
छन्दः - दैवी पङ्क्तिः
सूक्तम् - कुन्ताप सूक्त
व्याप॒ पूरु॑षः ॥
स्वर सहित पद पाठव्याप॒ । पूरु॑ष: ॥१३१.१७॥
स्वर रहित मन्त्र
व्याप पूरुषः ॥
स्वर रहित पद पाठव्याप । पूरुष: ॥१३१.१७॥
अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 131; मन्त्र » 17
भाषार्थ -
हे शिष्य! तू ऐसा प्रतीत हो रहा है कि मानो (पूरुषः) परम पुरुष परमेश्वर, तेरे जीवन में (व्याप) व्याप्त हो गया है।
टिप्पणी -
[मन्त्र में मानुष अध्यात्मगुरु, अपने शिष्य उपासक को कहता है।]