अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 131/ मन्त्र 8
सूक्त -
देवता - प्रजापतिर्वरुणो वा
छन्दः - प्राजापत्या गायत्री
सूक्तम् - कुन्ताप सूक्त
आय॑ व॒नेन॑ती॒ जनी॑ ॥
स्वर सहित पद पाठआऽअय॑ । व॒नेन॑ती॒ । जनी॑ ॥१३१.८॥
स्वर रहित मन्त्र
आय वनेनती जनी ॥
स्वर रहित पद पाठआऽअय । वनेनती । जनी ॥१३१.८॥
अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 131; मन्त्र » 8
भाषार्थ -
हे संसारी मनुष्य! (आय) उपासना मार्ग की ओर आ, (जनी) जगज्जननी (वनेनती) श्रद्धापूर्वक भक्ति में नत हो जाती है, झुक जाती है, [जैसे कि माता शिशु को अपना दूध पिलाने के लिए शिशु की ओर झुक जाती है। वने=वन संभक्तौ।]