अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 131/ मन्त्र 16
सूक्त -
देवता - प्रजापतिर्वरुणो वा
छन्दः - याजुषी गायत्री
सूक्तम् - कुन्ताप सूक्त
शयो॑ ह॒त इ॑व ॥
स्वर सहित पद पाठशय॑: । ह॒त: । इ॒व ॥१३१.१६॥
स्वर रहित मन्त्र
शयो हत इव ॥
स्वर रहित पद पाठशय: । हत: । इव ॥१३१.१६॥
अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 131; मन्त्र » 16
भाषार्थ -
ऐसा हो जा (इव) जैसे कि कोई (शयः) सोया हुआ होता है, और (हतः) मरा हुआ होता है।
टिप्पणी -
[शयः=सोया हुआ व्यक्ति संसार-सम्बन्धों से रहित होता है, परन्तु स्वप्न लेता हुआ “अन्तःप्रज्ञ” होता है। इसके द्वारा उपासक की सम्प्रज्ञात समाधि का निर्देश किया है। हतः=व्यक्ति जब मर जाता है तब न तो वह “बहिःप्रज्ञ” होता है और न “अन्तःप्रज्ञ”। इसके द्वारा उपासक की असम्प्रज्ञात समाधि का निर्देश किया है।]