अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 131/ मन्त्र 2
सूक्त -
देवता - प्रजापतिर्वरुणो वा
छन्दः - प्राजापत्या गायत्री
सूक्तम् - कुन्ताप सूक्त
तस्य॑ अनु॒ निभ॑ञ्जनम् ॥
स्वर सहित पद पाठतस्य॑ । अनु॒ । निभ॑ञ्जनम् ॥१३१.२॥
स्वर रहित मन्त्र
तस्य अनु निभञ्जनम् ॥
स्वर रहित पद पाठतस्य । अनु । निभञ्जनम् ॥१३१.२॥
अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 131; मन्त्र » 2
भाषार्थ -
(अनु) तत्पश्चात्, (तस्य) उस कल्याणमय और सुखी के क्लेशों की ग्रन्थि, (निभञ्जनम्) भग्न हो जाती है, टूट-फूट जाती है।