Loading...
अथर्ववेद > काण्ड 20 > सूक्त 77

काण्ड के आधार पर मन्त्र चुनें

  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 77/ मन्त्र 5
    सूक्त - वामदेवः देवता - इन्द्रः छन्दः - त्रिष्टुप् सूक्तम् - सूक्त-७७

    व॑व॒क्ष इन्द्रो॒ अमि॑तमृजि॒ष्युभे आ प॑प्रौ॒ रोद॑सी महि॒त्वा। अत॑श्चिदस्य महि॒मा वि रे॑च्य॒भि यो विश्वा॒ भुव॑ना ब॒भूव॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    व॒व॒क्षे । इन्द्र॑: । अमि॑तम् । ऋ॒जी॒षी । उ॒भे इति॑ । आ । प॒प्रौ॒ । रोद॑सी॒ इति॑ । म॒हि॒ऽत्वा ॥ अत॑: । चि॒त् । अ॒स्य॒ । म॒हि॒मा । वि । रे॒चि॒:। अ॒भि । य: । विश्वा॑ । भुव॑ना । बभूव॑ ॥७७.५॥


    स्वर रहित मन्त्र

    ववक्ष इन्द्रो अमितमृजिष्युभे आ पप्रौ रोदसी महित्वा। अतश्चिदस्य महिमा वि रेच्यभि यो विश्वा भुवना बभूव ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    ववक्षे । इन्द्र: । अमितम् । ऋजीषी । उभे इति । आ । पप्रौ । रोदसी इति । महिऽत्वा ॥ अत: । चित् । अस्य । महिमा । वि । रेचि:। अभि । य: । विश्वा । भुवना । बभूव ॥७७.५॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 77; मन्त्र » 5

    भाषार्थ -
    (ऋजीषी) ऋजु अर्थात् सत्यमार्गाभिलाषी (इन्द्रः) परमेश्वर, (अमितम्) न नापे और विस्तार में अज्ञात संसार का (ववक्षे) वहन कर रहा है। (महित्वा) निज महिमा से परमेश्वर (उभे रोदसी) द्युलोक और भूलोक दोनों में—(आ पप्रौ) भरपूर हुआ-हुआ है। (अतः चित्) इस संसार से (अस्य महिमा) इस ईश्वर की महिमा (वि रेचि) प्रवाहित हो रही है, (यः) जो परमेश्वर कि (विश्वा भुवना) सब भुवनों पर (अभि बभूव) विजय पाए हुए है।

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top