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अथर्ववेद > काण्ड 3 > सूक्त 10

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  • अथर्ववेद - काण्ड 3/ सूक्त 10/ मन्त्र 1
    सूक्त - अथर्वा देवता - धेनुः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - रायस्पोषप्राप्ति सूक्त

    प्र॑थ॒मा ह॒ व्यु॑वास॒ सा धे॒नुर॑भवद्य॒मे। सा नः॒ पय॑स्वती दुहा॒मुत्त॑रामुत्तरां॒ समा॑म् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    प्र॒थ॒मा । ह॒ । वि । उ॒वा॒स॒ । सा । धे॒नु: । अ॒भ॒व॒त् । य॒मे । सा । न॒: । पय॑स्वती । दु॒हा॒म् । उत्त॑राम्ऽउत्तराम् । समा॑म् ॥१०.१॥


    स्वर रहित मन्त्र

    प्रथमा ह व्युवास सा धेनुरभवद्यमे। सा नः पयस्वती दुहामुत्तरामुत्तरां समाम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    प्रथमा । ह । वि । उवास । सा । धेनु: । अभवत् । यमे । सा । न: । पयस्वती । दुहाम् । उत्तराम्ऽउत्तराम् । समाम् ॥१०.१॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 3; सूक्त » 10; मन्त्र » 1

    भाषार्थ -
    (प्रथमा) सृष्टि के प्रारम्भ में पहली उषा ने (ब्युवास) तमस् अर्थात् अन्धकार को स्थानच्युत कर दिया, [विवासित कर दिया] (सा) वह उषा (यमे) दिन-रात के जोड़े में (धेनुः अभवत्) खाद्य-अन्न प्रदान करनेवाली हो गई। (सा) वह (न:) हमारे लिए (पयस्वती) दुग्धवाली हो गई, वह (उत्तराम्, उत्तराम्, समाम्) उत्तरोत्तर वर्षों में (दुहाम) दुग्ध बादि दोहन करे, प्रदान करे। समा=चान्द्रवर्ष (स+[चन्द्र]+मा), संवत्सर है सौरवर्ष।

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