अथर्ववेद - काण्ड 4/ सूक्त 11/ मन्त्र 9
सूक्त - भृग्वङ्गिराः
देवता - इन्द्रः, अनड्वान्
छन्दः - अनुष्टुप्
सूक्तम् - अनड्वान सूक्त
यो वेदा॑न॒डुहो॒ दोहा॑न्स॒प्तानु॑पदस्वतः। प्र॒जां च॑ लो॒कं चा॑प्नोति॒ तथा॑ सप्तऋ॒षयो॑ विदुः ॥
स्वर सहित पद पाठय: । वेद॑ । अ॒न॒डुह॑: । दोहा॑न् । स॒प्त । अनु॑पऽदस्वत: । प्र॒ऽजाम् । च॒ । लो॒कम् । च॒ । आ॒प्नो॒ति॒ । तथा॑ । स॒प्त॒ऽऋ॒षय॑: ॥११.९॥
स्वर रहित मन्त्र
यो वेदानडुहो दोहान्सप्तानुपदस्वतः। प्रजां च लोकं चाप्नोति तथा सप्तऋषयो विदुः ॥
स्वर रहित पद पाठय: । वेद । अनडुह: । दोहान् । सप्त । अनुपऽदस्वत: । प्रऽजाम् । च । लोकम् । च । आप्नोति । तथा । सप्तऽऋषय: ॥११.९॥
अथर्ववेद - काण्ड » 4; सूक्त » 11; मन्त्र » 9
भाषार्थ -
(यः) जो (अनडुहः) अनड्वान्-परमेश्वर के (अनुपदस्वतः) न उपक्षीण होनेवाले (सप्त दोहान्) सात दोहों को (वेद) जानता है, वह (प्रजाम् च) उत्तम या प्रकृष्ट जन्म को, (लोकम् च) और लोक को (आप्नोति) प्राप्त होता है, (तथा) उस प्रकार (सप्त ऋषयः) सात ऋषि (विदुः) जानते हैं।
टिप्पणी -
[सप्त दोहाः (मन्त्र ४ की टिप्पणी में कथित)। ये सप्त दोह यावत्काल सृष्टि की स्थिति है, तावत्-काल तक विद्यमान रहते हैं, अतः उपक्षीण नहीं होते। ऐसे ज्ञानी को प्रकृष्ट-जन्म प्राप्त होता है, तथा प्रकृष्ट लोक। सप्त ऋषयः=अध्यात्मपक्ष में सप्त ऋषि हैं शरीरस्थ। यथा- "सप्त ऋषयः प्रतिहिता: शरीरे" (यजु:० ३४।५५)। "सप्त ऋषयः प्रतिहिताः शरीरे, षडिन्द्रियाणि विद्या सप्तमी आत्मनि" (निरुक्त १२।४।३८ पद सप्त ऋषयः (२५)। आधिदैविक पक्ष में सप्तऋषि हैं, सप्तर्षिमण्डल। ये द्युलोक की उत्तर दिशा में स्थित है। इसे ऋक्ष-मंडल१ भी कहते हैं। पाश्चात्य ज्योतिः शास्त्र में इसे "great-Bear" कहते हैं, अर्थात् बड़ा रीछ। ऋक्ष पद का अपभ्रंश है 'रीछ'। इसके सम्बन्ध में 'विदुः' का प्रयोग, कविता रूप में इन्हें चेतन ऋषि किया गया है। विदुः में बहुवचन ऋक्ष के ताराओं के बाहुल्य के कारण है।] [१. यथा “अमी य ऋक्षा निहितास उच्चा नक्तं ददृश्रे कुह चिद्दिवेयुः। अदब्धानि वरुणस्य व्रतानि विचाकशच्चन्द्रमा नक्तमेति" (ऋ० १।२४।१०)। द्युलोक में इन्हें रीछ आकृति में दर्शाया जाता है। निरुक्त में ऋक्षाः का अर्थ नक्षत्र है। ऋक्षः= भल्लूक: (उणा० ३।६७; दयानन्द)। तथा "भल्लूकः" (दश पाद्युणादिवृत्ति ; ९।२१;] उज्ज्वल दत्त)। "अमी य ऋक्षा:" मन्त्र में 'ऋक्षा:' पद द्युलोक के समग्र ताराओं सम्बन्धी है, जोकि रात्रि में तो दृष्टिगोचर होते हैं, और दिन में नहीं। यह प्रश्न केवल भल्लूकाकृति-सम्बन्धी तारागणों के लिए नहीं है।]