अथर्ववेद - काण्ड 4/ सूक्त 19/ मन्त्र 2
सूक्त - शुक्रः
देवता - अपामार्गो वनस्पतिः
छन्दः - पथ्यापङ्क्तिः
सूक्तम् - अपामार्ग सूक्त
ब्रा॑ह्म॒णेन॒ पर्यु॑क्तासि॒ कण्वे॑न नार्ष॒देन॑। सेने॑वैषि॒ त्विषी॑मती॒ न तत्र॑ भ॒यम॑स्ति॒ यत्र॑ प्रा॒प्नोष्यो॑षधे ॥
स्वर सहित पद पाठब्रा॒ह्म॒णेन॑ । परि॑ऽउक्ता । अ॒सि॒ । कण्वे॑न । ना॒र्ष॒देन॑ । सेना॑ऽइव । ए॒षि॒ । त्विषि॑ऽमती । न । तत्र॑ । भ॒यम् । अ॒स्ति॒ । यत्र॑ । प्र॒ऽआ॒प्नोषि॑ । ओ॒ष॒धे॒ ॥१९.२॥
स्वर रहित मन्त्र
ब्राह्मणेन पर्युक्तासि कण्वेन नार्षदेन। सेनेवैषि त्विषीमती न तत्र भयमस्ति यत्र प्राप्नोष्योषधे ॥
स्वर रहित पद पाठब्राह्मणेन । परिऽउक्ता । असि । कण्वेन । नार्षदेन । सेनाऽइव । एषि । त्विषिऽमती । न । तत्र । भयम् । अस्ति । यत्र । प्रऽआप्नोषि । ओषधे ॥१९.२॥
अथर्ववेद - काण्ड » 4; सूक्त » 19; मन्त्र » 2
भाषार्थ -
(नार्षदेन) नृषद् है परमेश्वर, नर-नारियों में स्थित; नार्षद है, नृषद् का पुत्र, सम्भवतः अथर्व ऋषि, जिस द्वारा कि अथर्ववेद का आविर्भाव हुआ है; वह कण्व है मेधावी है; (ब्राह्मणेन) उस ब्रह्मविद्या के जाननेवाले अथर्वा द्वारा (परि) सर्वत्र अर्थात् समग्र अथर्ववेद में१ (उक्ता असि) हे औषधि ! तू प्रोक्त२ हुई है। (त्विषिमती) दीप्तिमती (सेना इव) सेना के सदृश तू (एषि) गति करती है [रक्षार्थ]; (तत्र) उस मनुष्य में (भयम्) भव (न अस्ति) नहीं होता (यत्र) जिसमें (ओषधे) हे औषधि ! (प्राप्नोषि) तु प्राप्त होती है।
टिप्पणी -
[वेदादिशास्त्रों में चारों ऋषियों के नाम पठित हैं जिनके द्वारा चारों वेदों का आविर्भाव हुआ है। ये चारों ऋषि परमेश्वर के मानस-पुत्र हैं, अमैथुनी-सृष्टि के हैं। प्रतिसर्ग में इन नामवाले चार ऋषियों द्वारा चारों वेदों का आविर्भाव होता है। चारों ऋषियों और चारों वेदों का नित्य सम्बन्ध है, अतः वर्णन ऐतिहासिक नहीं। नार्षदेन= परमेश्वर को “ध्रुवसदं, ‘नृषदं३” मनःसदम्, अप्सुसदं घृतसदं, व्योमसदम्; पृथिवीसदं, अन्तरिक्षसदं दिविषदं, देवसदं, नाकसदम्” कहा है (यजुः० ९।२), अतः नार्षद है अथर्वा ऋषि। नृषद् का पुत्र। कण्वेन=कण्वः मेधाविनाम (निघं० ३।१५)।] [१. कहीं साक्षात्, कहीं परम्परया। २. यह औषधि है परमेश्वर। इसलिए परमेश्वर को "भेषजम्” कहा है। यथा “भेषजमसि” (यजु:० ३।५९), देखो महीधरभाष्य, तथा ऋषि दयानन्दभाष्य। ३. परमेश्वर को (यजुः १०।२४) में भी नृषद्” कहा है। इसकी व्याख्या में उव्वट ने कहा है कि "स प्रपञ्च ब्रह्माभिधायिनी अतिच्छन्दा अतिजगति” अर्थात् इस मन्त्र में प्रश्न सहित ब्रह्म का वर्णन हुआ है। यही अभिप्राय महीधर का भी है। इससे भी स्पष्ट होता है कि “निषेध” है ब्रह्मा, अतः नार्यद है नृषद् का पुत्र, राम्भवतः अथर्वा ऋषि, अथर्ववेद का शक्ति, जिसके द्वारा परमेश्वर ने अथर्ववेद प्रकट किया है।]