अथर्ववेद - काण्ड 5/ सूक्त 12/ मन्त्र 7
सूक्त - अङ्गिराः
देवता - जातवेदा अग्निः
छन्दः - त्रिष्टुप्
सूक्तम् - ऋतयज्ञ सूक्त
दैव्या॒ होता॑रा प्रथ॒मा सु॒वाचा॒ मिमा॑ना य॒ज्ञं मनु॑षो॒ यज॑ध्यै। प्र॑चो॒दय॑न्ता वि॒दथे॑षु का॒रू प्रा॒चीनं॒ ज्योतिः॑ प्र॒दिशा॑ दि॒शन्ता॑ ॥
स्वर सहित पद पाठदैव्या॑ । होता॑रा । प्र॒थ॒मा । सु॒ऽवाचा॑ । मिमा॑ना । य॒ज्ञम् । मनु॑ष: । यज॑ध्यै । प्र॒ऽचो॒दय॑न्ता । वि॒दथे॑षु । का॒रू इति॑ । प्रा॒चीन॑म् । ज्योति॑: । प्र॒ऽदिशा॑ । दि॒शन्ता॑ ॥१२.७॥
स्वर रहित मन्त्र
दैव्या होतारा प्रथमा सुवाचा मिमाना यज्ञं मनुषो यजध्यै। प्रचोदयन्ता विदथेषु कारू प्राचीनं ज्योतिः प्रदिशा दिशन्ता ॥
स्वर रहित पद पाठदैव्या । होतारा । प्रथमा । सुऽवाचा । मिमाना । यज्ञम् । मनुष: । यजध्यै । प्रऽचोदयन्ता । विदथेषु । कारू इति । प्राचीनम् । ज्योति: । प्रऽदिशा । दिशन्ता ॥१२.७॥
अथर्ववेद - काण्ड » 5; सूक्त » 12; मन्त्र » 7
भाषार्थ -
(प्रथमा=प्रथमौ) प्रख्यात या मानुषसृष्टि से प्रथम उत्पन्न, (सुवाचा=सुवाचौ) वेदमन्त्रों के उत्तम-उच्चारण में सहायक , (मनुष: यजध्यै) मनुष्य के यजन के निमित्त (यज्ञम् मिमाना=मिमानौ) यज्ञ का निर्माण करनेवाले (दैव्या होतारा=देव्यो होतारौ) दिव्य दो होता [सूर्य और चन्द्रमा ], (विदथेषु ) यज्ञों में (कारू) यज्ञ करनेवाले दो स्तोताओं (यजमान और पत्नी) को, (प्रदिशा) परमेश्वर के प्रकृष्ट निर्देशानुसार (प्राचीनम्) पूर्वकाल से आगत (ज्योतिः) ज्योति का (दिशन्ता=दिशन्तौ) प्रदान या निर्देश करते हुए (प्रचोदयन्तो), प्रेरित कर रहे हैं ।
टिप्पणी -
[मन्त्र ६ में उषा और रात्रि का वर्णन हुआ है। मन्त्र ७ में उषा और रात्रि काल के देवताओं सूर्य और चन्द्रमा का कथन हुआ है । यज्ञ हैं अग्निहोत्र और दर्श-पौर्णमास। इनका सम्पादन सूर्य और चन्द्रमा की विशेष परिस्थितियों में होता है, मानो ये दो अग्निहोत्र१ और दर्श-पौर्ण-मास२ के कालों का निर्देश करते हुए स्तोताओं को प्रेरित कर रहे हैं। विदथेषु =विदथः यज्ञः (निघं० ३।१७)। कारु: स्तोतृनाम (निघं० ३।१६)। ज्योतिः= सूर्य और चन्द्रमा की स्वकीय-स्वकीय ज्योति तथा यज्ञ सम्बन्धी सांस्कृतिक ज्योति। दिशन्ता=दिश अतिसर्जने (तुदादिः) अतिसर्जनम्=देना।] [१. अग्निहोत्रकाल; यथा सायम् अन्निहोत्रारम्भः। यावज्जीवं, अग्निहोत्रं कुर्यात्। सायं और प्रातःकाल भी। २. दर्श और पौर्णमास, चन्द्रमा के पक्षान्तों में किये जाते हैं। दर्शयाग अमावास्या के पश्चात् प्रतिपदा में किया जाता है। पौर्णमास याग पौर्णमासी पश्चात् प्रतिपदा में किया जाता है। अग्निहोत्र का काल सूर्य सम्बन्धी है और दर्श-पूर्णमास का काल चन्द्रगम्बन्धी है।]