अथर्ववेद - काण्ड 5/ सूक्त 15/ मन्त्र 10
सूक्त - विश्वामित्रः
देवता - मधुलौषधिः
छन्दः - अनुष्टुप्
सूक्तम् - रोगोपशमन सूक्त
दश॑ च मे श॒तं च॑ मेऽपव॒क्तार॑ ओषधे। ऋत॑जात॒ ऋता॑वरि॒ मधु॑ मे मधु॒ला क॑रः ॥
स्वर सहित पद पाठदश॑ । च॒ । मे॒ । श॒तम् । च॒ । मे॒ । अ॒प॒ऽव॒क्तार॑: । ओ॒ष॒धे॒ । ऋत॑ऽजाते । ऋत॑ऽवारि । मधु॑ । मे॒ । म॒धु॒ला । क॒र॒:॥१५.१०॥
स्वर रहित मन्त्र
दश च मे शतं च मेऽपवक्तार ओषधे। ऋतजात ऋतावरि मधु मे मधुला करः ॥
स्वर रहित पद पाठदश । च । मे । शतम् । च । मे । अपऽवक्तार: । ओषधे । ऋतऽजाते । ऋतऽवारि । मधु । मे । मधुला । कर:॥१५.१०॥
अथर्ववेद - काण्ड » 5; सूक्त » 15; मन्त्र » 10
भाषार्थ -
(दश च) १० इन्द्रियों की दशविध [१० प्रकार की] वृत्तियाँ, तथा १० आयतनों सम्बन्धी दस-दस प्रकार की १०० इन्द्रियवृत्तियाँ, ये ११० अपवक्तार: हैं। ये ११० इन्द्रियवृत्तियाँ मन्त्र १ से १० तक की मिश्रित अर्थात् सब मिलकर वृत्तियाँ हैं। (ऋतजाते) हे सत्यमय जीवन मे प्रकट हुई, (ऋतावरि) सत्यमयी (ओषधे) ओषधि ! (मधुला) मधुरस्वरूपा तु ( मे ) मेरे जीवन को ( मधु) मधुमय अर्थात् मीठा (कर:) कर दे, या तूने कर दिया है।