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अथर्ववेद > काण्ड 5 > सूक्त 15

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  • अथर्ववेद - काण्ड 5/ सूक्त 15/ मन्त्र 11
    सूक्त - विश्वामित्रः देवता - मधुलौषधिः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - रोगोपशमन सूक्त

    श॒तं च॑ मे स॒हस्रं॑ चापव॒क्तार॑ ओषधे। ऋत॑जात॒ ऋता॑वरि॒ मधु॑ मे मधु॒ला क॑रः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    श॒तम् । च॒ । मे॒ । स॒हस्र॑म् । च॒ । अ॒प॒ऽव॒क्तार॑: । ओ॒ष॒धे॒ । ऋत॑ऽजाते । ऋत॑ऽवरि । मधु॑ ।मे॒ । म॒धु॒ला । क॒र॒: ॥१५.११॥


    स्वर रहित मन्त्र

    शतं च मे सहस्रं चापवक्तार ओषधे। ऋतजात ऋतावरि मधु मे मधुला करः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    शतम् । च । मे । सहस्रम् । च । अपऽवक्तार: । ओषधे । ऋतऽजाते । ऋतऽवरि । मधु ।मे । मधुला । कर: ॥१५.११॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 5; सूक्त » 15; मन्त्र » 11

    भाषार्थ -
    (शतं च) १०० इन्द्रियवृत्तियोँ अर्थात् शतबिध [१०० प्रकार की] वृत्तियाँ, (सहस्रम्) हजार होकर अपवक्तारः है। (ऋतजाते) हे सत्यमय जीवन मे प्रकट हुई, (ऋतावरि) सत्यमयी (ओषधे) ओषधि ! (मधुला) मधुरस्वरूपा तु ( मे ) मेरे जीवन को ( मधु) मधुमय अर्थात् मीठा (कर:) कर दे, या तूने कर दिया है।

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