Loading...
अथर्ववेद > काण्ड 5 > सूक्त 15

काण्ड के आधार पर मन्त्र चुनें

  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड 5/ सूक्त 15/ मन्त्र 6
    सूक्त - विश्वामित्रः देवता - मधुलौषधिः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - रोगोपशमन सूक्त

    षट्च॑ मे ष॒ष्टिश्च॑ मेऽपव॒क्तार॑ ओषधे। ऋत॑जात॒ ऋता॑वरि॒ मधु॑ मे मधु॒ला क॑रः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    षट् । च॒ । मे॒ । ष॒ष्टि: । च॒ । मे॒ । अ॒प॒ऽव॒क्तार॑: । ओ॒ष॒धे॒ । ऋत॑ऽजाते । ऋत॑ऽवारि । मधु॑ । मे॒ । म॒धु॒ला । क॒र॒:॥१५.६॥


    स्वर रहित मन्त्र

    षट्च मे षष्टिश्च मेऽपवक्तार ओषधे। ऋतजात ऋतावरि मधु मे मधुला करः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    षट् । च । मे । षष्टि: । च । मे । अपऽवक्तार: । ओषधे । ऋतऽजाते । ऋतऽवारि । मधु । मे । मधुला । कर:॥१५.६॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 5; सूक्त » 15; मन्त्र » 6

    भाषार्थ -
    (षट् च) ६ इन्द्रियों की षड़विध [६ प्रकार की] वृत्तियाँ तथा १० आयतनों सम्बन्धी दस-दस प्रकार की ६० इन्द्रियवृत्तियाँ,ये ६६ अपवक्तारः हैं। ये ६६ इन्द्रियवृत्तियाँ मन्त्र १ से ६ तक की मिश्रित वृत्तियाँ हैं। (ऋतजाते) हे सत्यमय जीवन मे प्रकट हुई, (ऋतावरि) सत्यमयी (ओषधे) ओषधि ! (मधुला) मधुरस्वरूपा तु ( मे ) मेरे जीवन को ( मधु) मधुमय अर्थात् मीठा (कर:) कर दे, या तूने कर दिया है।

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top