अथर्ववेद - काण्ड 5/ सूक्त 15/ मन्त्र 3
सूक्त - विश्वामित्रः
देवता - मधुलौषधिः
छन्दः - अनुष्टुप्
सूक्तम् - रोगोपशमन सूक्त
ति॒स्रश्च॑ मे त्रिं॒शच्च॑ मेऽपव॒क्तार॑ ओषधे। ऋत॑जात॒ ऋता॑वरि॒ मधु॑ मे मधु॒ला क॑रः ॥
स्वर सहित पद पाठति॒स्र: । च॒ । मे॒ । त्रिं॒शत् । च॒ । मे॒ । च॒ । मे॒ । अ॒प॒ऽव॒क्तार॑: । ओ॒ष॒धे॒ । ऋत॑ऽजाते । ऋत॑ऽवारि । मधु॑ । मे॒ । म॒धु॒ला । क॒र॒:॥१५.३॥
स्वर रहित मन्त्र
तिस्रश्च मे त्रिंशच्च मेऽपवक्तार ओषधे। ऋतजात ऋतावरि मधु मे मधुला करः ॥
स्वर रहित पद पाठतिस्र: । च । मे । त्रिंशत् । च । मे । च । मे । अपऽवक्तार: । ओषधे । ऋतऽजाते । ऋतऽवारि । मधु । मे । मधुला । कर:॥१५.३॥
अथर्ववेद - काण्ड » 5; सूक्त » 15; मन्त्र » 3
भाषार्थ -
(तिस्र: च) तीन इन्द्रियों की त्रिविध [तीन प्रकार की] वृत्तियाँ, तथा आयतनों सम्बन्धी दस-दस प्रकार की ३० इन्द्रियवृत्तियाँ ये ३३ अपवक्तारः हैं। ये ३३ इन्द्रियवृत्तियां मन्त्र १, २, ३ की मिश्रित वृत्तियाँ हैं। (ऋतजाते) हे सत्यमय जीवन मे प्रकट हुई, (ऋतावरि) सत्यमयी (ओषधे) ओषधि ! (मधुला) मधुरस्वरूपा तु ( मे ) मेरे जीवन को ( मधु) मधुमय अर्थात् मीठा (कर:) कर दे, या तूने कर दिया है।