अथर्ववेद - काण्ड 5/ सूक्त 15/ मन्त्र 8
सूक्त - विश्वामित्रः
देवता - मधुलौषधिः
छन्दः - अनुष्टुप्
सूक्तम् - रोगोपशमन सूक्त
अ॒ष्ट च॑ मेऽशी॒तिश्च॑ मेऽपव॒क्तार॑ ओषधे। ऋत॑जात॒ ऋता॑वरि॒ मधु॑ मे मधु॒ला क॑रः ॥
स्वर सहित पद पाठअ॒ष्ट । च॒ । मे॒ । अ॒शी॒ति: । च॒ । मे॒ । अ॒प॒ऽव॒क्तार॑: । ओ॒ष॒धे॒ । ऋत॑ऽजाते । ऋत॑ऽवारि । मधु॑ । मे॒ । म॒धु॒ला । क॒र॒:॥१५.८॥
स्वर रहित मन्त्र
अष्ट च मेऽशीतिश्च मेऽपवक्तार ओषधे। ऋतजात ऋतावरि मधु मे मधुला करः ॥
स्वर रहित पद पाठअष्ट । च । मे । अशीति: । च । मे । अपऽवक्तार: । ओषधे । ऋतऽजाते । ऋतऽवारि । मधु । मे । मधुला । कर:॥१५.८॥
अथर्ववेद - काण्ड » 5; सूक्त » 15; मन्त्र » 8
भाषार्थ -
(अष्ट च) ८ इन्द्रियों की अष्टविध [८ प्रकार की] वृत्तियाँ तथा १० आयतनों सम्बन्धी दस-दस प्रकार की ८० इन्द्रियवृत्तियां, ये ८८ अप-वक्तारः हैं। ये ८८ इन्द्रिय वृतियाँ मन्त्र १ से ८ तक की मिश्रित अर्थात् सब मिलकर वृत्तियाँ हैं। (ऋतजाते) हे सत्यमय जीवन मे प्रकट हुई, (ऋतावरि) सत्यमयी (ओषधे) ओषधि ! (मधुला) मधुरस्वरूपा तु ( मे ) मेरे जीवन को ( मधु) मधुमय अर्थात् मीठा (कर:) कर दे, या तूने कर दिया है।