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अथर्ववेद > काण्ड 5 > सूक्त 15

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  • अथर्ववेद - काण्ड 5/ सूक्त 15/ मन्त्र 1
    सूक्त - विश्वामित्रः देवता - मधुलौषधिः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - रोगोपशमन सूक्त

    एका॑ च मे॒ दश॑ च मेऽपव॒क्तार॑ ओषधे। ऋत॑जात॒ ऋता॑वरि॒ मधु॑ मे मधु॒ला क॑रः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ‍एका॑ । च॒ । मे॒ । दश॑ । च॒ । मे॒ । अ॒प॒ऽव॒क्तार॑: । ओ॒ष॒धे॒ । ऋत॑ऽजाते । ऋत॑ऽवारि । मधु॑ । मे॒ । म॒धु॒ला । क॒र॒:॥१५.१॥


    स्वर रहित मन्त्र

    एका च मे दश च मेऽपवक्तार ओषधे। ऋतजात ऋतावरि मधु मे मधुला करः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    ‍एका । च । मे । दश । च । मे । अपऽवक्तार: । ओषधे । ऋतऽजाते । ऋतऽवारि । मधु । मे । मधुला । कर:॥१५.१॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 5; सूक्त » 15; मन्त्र » 1

    भाषार्थ -
    (मे) मेरी (एका च) एक इन्द्रिय-वृत्ति, (मे) मेरी (दश च) दस इन्द्रिय-वृत्तियां (अपवक्तारः१) निन्दनीय [कर्मों का] कथन करती हैं, तो (ऋतजाते) हे सत्यमय जीवन मे प्रकट हुई, (ऋतावरि) सत्यमयी (ओषधे) ओषधि ! (मधुला) मधुरस्वरूपा तु ( मे ) मेरे जीवन को ( मधु) मधुमय अर्थात् मीठा (कर:) कर दे, या तूने कर दिया है। ऋतावरी यथा ऋतम्भरा प्रज्ञा में ऋत=सत्य ।

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