अथर्ववेद - काण्ड 5/ सूक्त 15/ मन्त्र 9
सूक्त - विश्वामित्रः
देवता - मधुलौषधिः
छन्दः - भुरिगनुष्टुप्
सूक्तम् - रोगोपशमन सूक्त
नव॑ च मे नव॒तिश्च॑ मेऽपव॒क्तार॑ ओषधे। ऋत॑जात॒ ऋता॑वरि॒ मधु॑ मे मधु॒ला क॑रः ॥
स्वर सहित पद पाठनव॑ । च॒ । मे॒ । न॒व॒ति: । च । मे॒ । अ॒प॒ऽव॒क्तार॑: । ओ॒ष॒धे॒ । ऋत॑ऽजाते । ऋत॑ऽवारि । मधु॑ । मे॒ । म॒धु॒ला । क॒र॒:॥१५.९॥
स्वर रहित मन्त्र
नव च मे नवतिश्च मेऽपवक्तार ओषधे। ऋतजात ऋतावरि मधु मे मधुला करः ॥
स्वर रहित पद पाठनव । च । मे । नवति: । च । मे । अपऽवक्तार: । ओषधे । ऋतऽजाते । ऋतऽवारि । मधु । मे । मधुला । कर:॥१५.९॥
अथर्ववेद - काण्ड » 5; सूक्त » 15; मन्त्र » 9
भाषार्थ -
(नव च) ९, इन्द्रियों की नवविध [९ प्रकार की] वृत्तियाँ, तथा १० आयतनों सम्बन्धी दस-दस प्रकार की ९० इन्द्रियवृत्तियां, ये ९९ अपवक्तारः हैं। ये ९९ इन्द्रियवृत्तियाँ गन्त्र १ से ९ तक की मिश्रित अर्थात् सब मिलकर वृत्तियाँ हैं। (ऋतजाते) हे सत्यमय जीवन मे प्रकट हुई, (ऋतावरि) सत्यमयी (ओषधे) ओषधि ! (मधुला) मधुरस्वरूपा तु ( मे ) मेरे जीवन को ( मधु) मधुमय अर्थात् मीठा (कर:) कर दे, या तूने कर दिया है।