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अथर्ववेद > काण्ड 5 > सूक्त 27

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  • अथर्ववेद - काण्ड 5/ सूक्त 27/ मन्त्र 5
    सूक्त - ब्रह्मा देवता - इळा, सरस्वती, भारती छन्दः - द्विपदा साम्नीत्रिष्टुप् सूक्तम् - अग्नि सूक्त

    अ॒ग्निः स्रुचो॑ अध्व॒रेषु॑ प्र॒यक्षु॒ स य॑क्षदस्य महि॒मान॑म॒ग्नेः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अ॒ग्नि: । स्रुच॑: । अ॒ध्व॒रेषु॑ । प्र॒ऽयक्षु॑ । स: । य॒क्ष॒त्। अ॒स्य॒ । म॒हि॒मान॑म् । अ॒ग्ने: ॥२७.५॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अग्निः स्रुचो अध्वरेषु प्रयक्षु स यक्षदस्य महिमानमग्नेः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अग्नि: । स्रुच: । अध्वरेषु । प्रऽयक्षु । स: । यक्षत्। अस्य । महिमानम् । अग्ने: ॥२७.५॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 5; सूक्त » 27; मन्त्र » 5

    भाषार्थ -
    (स: अग्निः) वह यज्ञियाग्नि (अध्वरेषु) हिंसारहिंत (प्रयक्षु) प्रयाज [और अनुयाज] यज्ञों में (अस्य अग्नेः) इस महान्-अग्नि की ( महिमानम् ) महिमा का (यक्षत् ) यजन करती है, (जुचः) इसी प्रकार स्रुचाएं भी [घृताहुतियों द्वारा इसकी महिमा का यजन करती हैं।] [अग्नि: है व्यष्टि-यज्ञियाग्नि। अग्नेः= समष्टि महान्-अग्नि परमेश्वर।

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