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अथर्ववेद > काण्ड 5 > सूक्त 27

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  • अथर्ववेद - काण्ड 5/ सूक्त 27/ मन्त्र 6
    सूक्त - ब्रह्मा देवता - इळा, सरस्वती, भारती छन्दः - द्विपदा विराड्गायत्री सूक्तम् - अग्नि सूक्त

    त॒री म॒न्द्रासु॑ प्र॒यक्षु॒ वस॑व॒श्चाति॑ष्ठन्वसु॒धात॑रश्च ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    त॒री । म॒न्द्रासु॑ । प्र॒ऽयक्षु॑ । वस॑व: । च॒ । अति॑ष्ठन् । व॒सु॒ऽधात॑र: । च॒ ॥२७.६॥


    स्वर रहित मन्त्र

    तरी मन्द्रासु प्रयक्षु वसवश्चातिष्ठन्वसुधातरश्च ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    तरी । मन्द्रासु । प्रऽयक्षु । वसव: । च । अतिष्ठन् । वसुऽधातर: । च ॥२७.६॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 5; सूक्त » 27; मन्त्र » 6

    भाषार्थ -
    (मन्द्रासु ) मोदप्रद तथा हर्षप्रद (प्रया) प्रयाज [और अनुयाज] यज्ञों में, (तरी) तैरानेवाली नौका रूप में परमेश्वर, ( वसव: च ) और वसु कक्षा के ब्रह्मचारी, (वसुधातरः च ) और वसूुब्रह्मचारियों के धारण-पोषण करनेवाले आचार्य (अतिष्ठन्) स्थित होते हैं [अर्थात् इन यज्ञों का सम्पादन करते हैं।]

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