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अथर्ववेद > काण्ड 8 > सूक्त 10 > पर्यायः 1

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  • अथर्ववेद - काण्ड 8/ सूक्त 10/ मन्त्र 9
    सूक्त - अथर्वाचार्यः देवता - विराट् छन्दः - साम्नी सूक्तम् - विराट् सूक्त

    यन्त्य॑स्य स॒भां सभ्यो॑ भवति॒ य ए॒वं वेद॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यन्ति॑ । अ॒स्य॒ । स॒भाम् । सभ्य॑: । भ॒व॒ति॒ । य: । ए॒वम् । वेद॑ ॥१०.९॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यन्त्यस्य सभां सभ्यो भवति य एवं वेद ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    यन्ति । अस्य । सभाम् । सभ्य: । भवति । य: । एवम् । वेद ॥१०.९॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 8; सूक्त » 10; पर्यायः » 1; मन्त्र » 9

    भाषार्थ -
    (यः) जो (एवम्) इस प्रकार (वेद) सभा-संस्था के महत्त्व को जानता है (अस्य) इसकी (सभाम्) सभा में [दक्षिणाग्नि संस्था के सदस्य] (यन्ति) जाते हैं, प्राप्त होते हैं, और वह सभा के महत्त्व जानने वाला (सभ्यः) सभासद् होकर सभा का सभापति हो जाता है।

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