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  • यजुर्वेद - अध्याय 21/ मन्त्र 1
    ऋषिः - शुनःशेप ऋषिः देवता - वरुणो देवता छन्दः - निचृद्गायत्री स्वरः - षड्जः
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    इ॒मं मे॑ वरुण श्रु॒धी हव॑म॒द्या च॑ मृडय। त्वाम॑व॒स्युरा च॑के॥१॥

    स्वर सहित पद पाठ

    इम॒म्। मे॒। व॒रु॒ण॒। श्रु॒धि। हव॑म्। अ॒द्य। च॒। मृ॒ड॒य॒। त्वाम्। अ॒व॒स्युः। आ। च॒के॒ ॥१ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    इमम्मे वरुण श्रुधी हवमद्या च मृडय । त्वामस्वस्युरा चके ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    इमम्। मे। वरुण। श्रुधि। हवम्। अद्य। च। मृडय। त्वाम्। अवस्युः। आ। चके॥१॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 21; मन्त्र » 1
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    पदार्थ -
    हे (वरुण) उत्तम विद्यावान् जन! जो (अवस्युः) अपनी रक्षा की इच्छा करनेहारा मैं (इमम्) इस (त्वाम्) तुझ को (आ, चके) चाहता हूँ वह तू (मे) मेरी (हवम्) स्तुति को (श्रुधि) सुन (च) और (अद्य) आज मुझ को (मृडय) सुखी कर॥१॥

    भावार्थ - सब विद्या की इच्छा वाले पुरुषों को चाहिए कि अनुक्रम से उपदेश करने वाले बड़े विद्वान् की इच्छा करें, वह विद्यार्थियों के स्वाध्याय को सुन और उत्तम परीक्षा करके सब को आनन्दित करे॥१॥

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